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NOTA की यह तस्वीरें चुनाव प्रचार के दौरान की है, जिसे लेकर विवाद भी खूब हुए। भाजपा ने आपत्ति ली।
इंदौर लोकसभा सीट के चुनाव में NOTA ने इतिहास रच दिया। देश में पहली बार किसी सीट पर NOTA को 2.18 लाख वोट आए हैं। यह अब तक हुए चुनावों में किसी भी परिणाम से ज्यादा हैं। पिछले चुनावों में NOTA को सिर्फ 5 हजार और कुछ वोट मिलते आए थे। साथ ही नतीजे ने देश
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NOTA क्या होता है, कितना असरकारक..
- 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर NOTA (उपरोक्त में से कोई नहीं) का इस्तेमाल शुरू। कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं तो NOTA दबा सकते हैं वोटर
- चुनाव आयोग के मुताबिक, NOTA के वोट गिने जाएंगे लेकिन इसे रद्द श्रेणी में ही रखेंगे। 100% मत NOTA को आए तो ही रीपोलिंग का प्रावधान, वर्ना कोई मायने नहीं
- (लोकसभा चुनाव 2024 में इंदौर में नोटा भाजपा के बाद दूसरे नंबर पर रहा)
3 पॉइंट्स में NOTA के मायने
NOTA भी राजनीतिक तौर पर कुछ न बदल पाया हो लेकिन वोटों के दम पर देश में वोटिंग एनालिसिस का तरीका ही बदल दिया है। देश में पहली बार किसी निकटतम प्रतिद्वंद्वी के बजाय विजेता उम्मीदवार की जीत का अंतर चुनाव आयोग ने NOTA से किया है। उदाहरण के तौर बसपा प्रत्याशी संजय सोलंकी को 50 हजार से ज्यादा वोट मिले हैं। बावजूद चुनाव आयोग ने अपने रीयल टाइम आंकड़ों में भाजपा सांसद शंकर लालवानी की जीत के अंतर को NOTA से घटाकर दर्शाया है।
1. क्या नोटा को कांग्रेस जितना वोट मिल पाया या पिछड़ गया?
कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय बम के नामवापस लेने के बाद कांग्रेस ने NOTA को समर्थन देने का ऑप्शन चुना। कांग्रेस को पिछले चुनाव में 5.20 लाख वोट मिले थे। दावा किया था कि इस बार NOTA बीजेपी के समीकरण बिगाड़ेगा। नतीजों से तुलना करें तो NOTA को कांग्रेस की उम्मीद से ज्यादा 2.18 लाख वोट मिल गए हैं। इसके लिए न कोई सभा हुई, न रोड शो..। यहां तक कि, पोलिंग डे पर कोई एजेंट टेबल तक नहीं लगने दी गई। बावजूद, NOTA ने सबको चौंका दिया है। बीजेपी ने नोटा के खिलाफ बयान दिए और न के बराबर वोट मिलने का दावा किया। बावजूद, ऐसा नहीं हुआ।
मायने क्या : 2019 में कांग्रेस को मिले वोटों के मुकाबले NOTA को 3 लाख वोट कम मिले हैं। यानी कांग्रेस को 32% वोट मिले थे, NOTA को 14% ही मिल पाए हैं। बावजूद वह चुनाव में बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा वोट हासिल करने में कामयाब रहा। बसपा तीसरे पर आई है। पहली बार बीजेपी की जीत को प्रत्याशी के बजाय NOTA के वोटों से अंतर करके निकाला गया है।
2. क्या NOTA में भी इंदौर बन गया देश में नंबर वन?
2013 के बाद से अस्तित्व में आया NOTA कई विधानसभा चुनावों के साथ तीसरा लोकसभा चुनाव का हिस्सा बना है। अब तक रिकॉर्ड देंखे तो उसे सबसे ज्यादा वोट 2019 के लोकसभा चुनाव में मिले थे। यह नंबर 51 हजार 600 वोटों का था। वहां जेडीयू के डॉ.आलोक कुमार सुमन ने आरजेडी के सुरेंद्र राम को चुनाव हराया था।
इस बार 2024 के चुनाव में इंदौर को लेकर 30 अप्रैल तक से अचानक NOTA चर्चा में आया। जब प्रदेशाध्यक्ष कांग्रेस जीतू पटवारी ने कहा कि हम किसी प्रत्याशी का नहीं, NOTA को समर्थन कर बीजेपी को आइना दिखाएंगे। एक हद तक कांग्रेस अपनी अपील में कामयाब हुई। NOTA को देश में पहली बार सबसे ज्यादा 2.18 लाख वोट मिलना, इसकी मुख्य वजह है।
मायने क्या : कांग्रेस प्रत्याशी की नाटकीय नामवापसी से पार्टी ही नहीं, बीजेपी के नेता-कार्यकर्ता और आम लोग भी हताश हुए थे। वे यह खुलेआम कहते थे कि जिस सीट पर बीजेपी को 40 साल से कोई नहीं हरा सका, वहां इसकी जरूरत ही क्या थी। यही वजह है कि NOTA का रिकॉर्ड बन गया। इस बार पिछले चुनावों के मुकाबले NOTA का वोट 42 गुना बढ़ गया है।
3. क्या किसी प्रत्याशी के बजाय NOTA को समर्थन देना फायदेमंद रहा?
मध्य प्रदेश में कांग्रेस-INDIA दो जगह मैदान में नहीं थी। इंदौर और खजुराहो। खजुराहो में गठबंधन के प्रत्याशी मीरा यादव का पर्चा निरस्त हुआ जबकि इंदौर में कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय बम ने नामवापस ले लिया। दोनों जगह के लिए कांग्रेस ने अलग-अलग ऑप्शन चुने थे। खजुराहो में फॉरवर्ड ब्लॉक के उम्मीदवार IAS राजा भैया प्रजापति को समर्थन किया तो इंदौर में NOTA को..।
इंदौर में बीजेपी उम्मीदवार शंकर लालवानी ने 10 लाख से अधिक लीड दर्ज कर ली लेकिन NOTA दूसरे नंबर पर आया। उधर, खजुराहो में इंडिया फारवर्ड का प्रत्याशी राजा भैया 50 हजार 33 वोट ही ला पाए। वे तीसरे नंबर पर पहुंच गए हैं। यहां दूसरे नंबर पर बसपा प्रत्याशी कमलेश कुमार दूसरे नंबर पर आई है जिसे 2.31 लाख वोट मिले हैं।
मायने क्या : खजुराहो में प्रत्याशी को समर्थन देने के बावजूद कांग्रेस-INDIA कमाल नहीं कर पाया। जबकि इंदौर में NOTA को समर्थन देकर उसने पूरे देश में माहौल बनाने में कोशिश की। संविधान और आरक्षण खत्म करने के आरोपों को इंदौर में हुई नामवापसी से जोड़कर प्रचारित किया गया।
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