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दिल्ली में इन दिनों रिज एरिया में काटे गए 1100 पेड़ सुर्खियों में छाए हुए हैं। अभी तक इस बात का पता नहीं चला है कि डीडीए को किसने इन पेड़ों को गिराने की इजाजत दी थी। कोर्ट ने भी डीडीए से जवाब मांगा है। इन्हें मैदान गढ़ी क्षेत्र में अप्रोच रोड बनाने के लिए गिराया गया था। अब कुछ सूत्रों का दावा है कि यह प्रस्ताव दिल्ली सरकार के वन विभाग द्वारा लाया गया था। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे मंजूरी के लिए उपराज्यपाल वीके सक्सेना के पास भेजा था।
टीओआई की रिपोर्ट के अुसार, वन विभाग के सूत्रों ने दावा किया कि दिल्ली सरकार के ई-फॉरेस्ट पोर्टल पर डीडीए से एक अनुरोध मिला था, जिसमें दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम के तहत 422 पेड़ों को गिराने और उनमें से कुछ को ट्रांसप्लांट (प्रत्यारोपित) करने की अनुमति मांगी गई थी। वन विभाग के एक अधिकारी के ग्राउंड इंस्पेक्शन और डिप्टी फॉरेस्ट कंजर्वेटर (दक्षिण) के क्रॉस इंस्पेक्शन के बाद, पर्यावरण और वन विभाग ने एक प्रस्ताव पेश किया, जिसे प्रमुख सचिव और बाद में संबंधित मंत्री ने अप्रूव किया।
वन विभाग के एक अधिकारी ने बताया, ‘पर्यावरण एवं वन मंत्री गोपाल राय ने 23 जनवरी को प्रस्ताव को मंजूरी दी और इसे मुख्यमंत्री के पास भेज दिया। मुख्यमंत्री ने अगले ही दिन प्रस्ताव पर मुहर लगा दी और फाइल को उपराज्यपाल के पास इस नोट के साथ भेज दिया कि वे इस विषय पर ‘सहायता और सलाह’ के लिए बाध्य हैं।’
अधिकारी ने बताया,’उपराज्यपाल ने फाइल को मंजूरी देकर वापस मुख्यमंत्री के पास भेज दिया। 14 फरवरी को इस संबंध में गजट नोटिफिकेशन जारी किया गया और 15 फरवरी को ट्री ऑफिसर (वृक्ष अधिकारी) ने डीडीए को अनुमति के बारे में सूचित किया। प्राधिकरण ने 16 फरवरी से पेड़ों को काटने का काम शुरू कर दिया।’ जिन 422 पेड़ों को काटा जाना था, उनमें से 142 को दूसरी जगह ट्रांसप्लांट करना था। अधिकारियों ने बताया कि जौनापुर में वन भूमि के एक हिस्से की पहचान 4,220 पेड़ों के प्लांटेशन के लिए की गई है, जबकि अंधेरिया मोड़ के पास एक और भूमि की पहचान 142 पेड़ों के ट्रांसप्लांटेशन के लिए की गई है।
मेन छतरपुर रोड से सार्क विश्वविद्यालय, एम्स-सीएपीएफआईएमएस (केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल आयुर्विज्ञान संस्थान) परिसर और दक्षिणी दिल्ली के मैदानगढ़ी, सयूरपुर और सतबारी में मौजूद अन्य प्रतिष्ठानों तक 10.5 किलोमीटर लंबी अप्रोच रोड बनाने के लिए पेड़ों को काटना जरूरी था। पेड़ों को काटने की कथित अनुमति दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम के तहत ली की गई थी। वहीं एजेंसियों ने इस तथ्य को नजरअंदाज किया कि इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों को काटने के लिए सुप्रीम कोर्ट की इजाजत जरूरी थी, जो कथित तौर पर नहीं ली गई।
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