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जयपुर10 मिनट पहलेलेखक: समीर शर्मा
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राजस्थान के 5 करोड़ से अधिक मतदाता 4 जून को आने वाले चुनावी नतीजों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इससे पहले दैनिक भास्कर और कुछ अन्य के एग्जिट पोल में वोटर्स का रुझान सामने आया है।
राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में झुंझुनूं, दौसा, बाड़मेर-जैसलमेर जैसी आधा दर्जन से अधिक सीटों पर मुकाबले ने रहस्य बनाकर रखा है। यानी यहां कौन जीतेगा और किसकी हार होगी, अंदाजा लगा पाना मुश्किल है।
इन सबके बीच, दैनिक भास्कर ने 25 सीटों के समीकरणों का आकलन किया और समझा कि कौन सी पार्टी किस सीट पर मजबूत है। एनालिसिस में बीजेपी 15 तो कांग्रेस 3 सीट पर मजबूत स्थिति में है। वहीं, 7 सीट ऐसी हैं, जो कांटे की टक्कर में फंसी हुई हैं? आइए जानते हैं सीटवार एनालिसिस…
इस चुनाव में बीजेपी ने राजस्थान में किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया हैं, लेकिन कांग्रेस ने 3 सीटों पर सीपीआई, आरएलपी (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी) और बीएपी (भारतीय आदिवासी पार्टी) के साथ गठबंधन किया है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
इस सीट पर चेहरों से ज्यादा मुद्दे हावी हैं। शहरी सीट होने के कारण राम मंदिर, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाना, राष्ट्रीयता जैसे बड़े स्तर के मुद्दे अधिक प्रभावी हैं, जो बीजेपी को फायदा दे रहे हैं। जयपुर शहर की सीट पर हिन्दू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण भी देखा जाता रहा है। राम मंदिर मुद्दा भी बीजेपी को फायदा दे रहा है। शहरी वोटर बीजेपी के पक्ष का माना जाता है। कांग्रेस के प्रचार में भी दम दिखाई नहीं दिया। इसलिए यहां बीजेपी मजबूत है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने गहलोत सरकार के कैबिनेट मंत्री लालचंद कटारिया को पार्टी में शामिल कर लिया, इससे बीजेपी को फायदा मिला। ग्रामीण क्षेत्र में भाजपा के प्रत्याशी राव राजेंद्र सिंह का प्रभाव है और अनुभवी भी हैं। कांग्रेस के प्रत्याशी अनिल चोपड़ा पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। सचिन पायलट के प्रभाव का उन्हें लाभ मिलेगा, लेकिन ओवरऑल बीजेपी यहां मजबूत दिख रही है।
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मजबूत कौन? : कांटे की टक्कर
आरएलपी के हनुमान बेनीवाल इंडिया गठबंधन की ओर चुनाव लड़ रहे हैं। हनुमान ने इसी सीट से पिछला चुनाव भाजपा गठबंधन में लड़ा था और जीते थे। इस बार बीजेपी ने पांच महीने पहले पार्टी में शामिल होने वाली ज्योति मिर्धा को लोकसभा चुनाव में उतारा है। मिर्धा इस सीट से हनुमान बेनीवाल से ही पिछला लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं।
दोनों एक ही समाज से आते हैं, जो यहां सबसे बड़ा वोट बैंक है। जाट समाज से जो ज्यादा वोट खींचेगा, उसे फायदा होगा। राजनीतिक परिवार से जुड़े होने और लगातार हारने के कारण ज्योति मिर्धा को लेकर स्थानीय लोगों में सहानुभूति है, तो बेनीवाल को कांग्रेस वोट बैंक का सहारा मिल रहा है। यहां दोनों में कांटे की टक्कर है।
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मजबूत कौन? : त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस मजबूत
त्रिकोणीय मुकाबले के कारण इस चुनाव में बाड़मेर सबसे ज्यादा हॉट सीट बनी हुई है। मोदी टीम में मंत्री कैलाश चौधरी को भाजपा ने फिर टिकट दिया। लेकिन कांग्रेस ने आरएलपी नेता उम्मेदाराम बेनीवाल को पार्टी में शामिल कर इस सीट पर एक मजबूत कैंडिडेट उतार दिया। वहीं, निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी भी मजबूती से मैदान में हैं। राजपूत वोट बैंक भाजपा का समर्थक माना जाता है, लेकिन भाटी के कारण वह भाजपा से छिटक रहा है। इस कारण इस सीट पर मुकाबला बहुत रोचक हो गया। इधर, कैलाश और उम्मेदाराम दोनों जाट समाज से हैं और इस बड़े वोट बैंक में भी दोनों एक दूसरे के वोट काट रहे हैं। त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस बाजी मार सकती है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
बॉर्डर एरिया होने के कारण मोदी कैबिनेट में मंत्री और 3 बार से सांसद अर्जुन राम मेघवाल को राष्ट्रीयता, राम मंदिर, धारा 370 हटाने, सीमा सुरक्षा के मुद्दे से फायदा मिल रहा है। कांग्रेस के प्रत्याशी गोविंदराम मेघवाल को स्थानीय बागियों से नुकसान होगा। यहां बीजेपी मजबूत नजर आ रही है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी शेखावत ने पिछले चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को बड़े अंतर से हराया था। इस हार के बाद वैभव ने इस बार सीट बदल ली। प्रत्याशी बदलने का नुकसान कांग्रेस को हो रहा है। शेखावत यहां काफी मजबूत हैं। बीजेपी की जीत तय मानी जा रही है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
यहां दो ब्यूरोक्रेट्स के बीच मुकाबला है। बीजेपी प्रत्याशी रावत उदयपुर में पूर्व परिवहन उपायुक्त रह चुके हैं। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी मीना उदयपुर कलेक्टर रह चुके हैं और यहीं से रिटायर हुए हैं। तीसरा वजूद यहां बीएपी का है। बीएपी से कांग्रेस का एक सीट पर गठबंधन जरूर है, लेकिन उदयपुर सीट पर बीएपी प्रत्याशी प्रकाश चंद्र बुझ यहां कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रहे हैं। आरएसएस का दबदबा और हिंदू संगठनों की सक्रियता बीजेपी के पक्ष में है।
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मजबूत कौन? : यहां कांटे की टक्कर
बीजेपी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को तीसरी बार इसी सीट से मौका दिया। बीजेपी से बगावत कर कांग्रेस में शामिल हुए प्रहलाद गुंजल ने मुकाबले को रोचक बना दिया। शहर-कस्बों में बिरला, तो ग्रामीण क्षेत्रों में गुंजल की अच्छी पकड़ है। भाजपा को मोदी फैक्टर का लाभ मिलने की उम्मीद है। वहीं गुंजल को कांग्रेस का सपोर्ट, लेकिन पार्टी में आने से भीतरघात का खतरा और शांति धारीवाल समर्थकों की नाराजगी का नुकसान भी हो सकता है। सभी समीकरणों को देखें, तो यहां कांटे की टक्कर है।
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मजबूत कौन? : कांग्रेस
इस सीट पर स्थानीय जातिगत समीकरण ज्यादा हावी हैं, जिसमें बीजेपी के राम मंदिर और अन्य मुद्दे दब गए। इस कारण यहां सीधा फायदा कांग्रेस को मिलता दिख रहा है। कांग्रेस ने बीजेपी पर आरक्षण खत्म करने की साजिश का आरोप लगाया, यह एससी-एसटी वोटर्स में बड़ा मुद्दा बना, जिससे बीजेपी को नुकसान हो सकता है। बीजेपी उम्मीदवार कन्हैयालाल मीणा की बस्सी तक ही वोटर्स में पहचान है, पूरे क्षेत्र में प्रभाव नहीं होने का नुकसान होगा। यहां कांग्रेस मजबूत नजर आ रही है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
दीया कुमारी के विधानसभा सीट जीतने के बाद बीजेपी ने यहां मजबूत कैंडिडेट के रूप में उदयपुर के पूर्व राजघराने की सदस्य महिमा विश्वेराज सिंह को उतारा। यहां से कांग्रेस के दामोदर गुर्जर हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में आने वाली सभी विधानसभा सीटें बीजेपी ने जीतीं, ये समीकरण कांग्रेस पर भारी पड़ रहा है। जातिगत वोट बैंक के ध्रुवीकरण भी बीजेपी के पक्ष में हैं। कांग्रेस ने प्रत्याशी बदला था, इसका नुकसान भी होगा। बीजेपी यहां मजबूत है।
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मजबूत कौन? : कांटे की टक्कर
महंत बालकनाथ के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद खाली हुई, इस सीट पर भाजपा ने मोदी टीम के मंत्री भूपेंद्र यादव को उतारा। यादव समाज का यहां अच्छा खासा वोट बैंक है। कांग्रेस ने भी इस वोट बैंक का फायदा उठाने के लिए ललित यादव को टिकट दिया। भूपेंद्र यादव को मोदी के चेहरे एवं बीजेपी के मुख्य मुद्दों का सहारा है। बीजेपी की शहरी क्षेत्रों में मजबूत स्थिति है।
कांग्रेस ने इस लोकसभा क्षेत्र में आने वाली विधानसभा सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया, ये समीकरण ललित यादव के पक्ष में है। लेकिन तीसरे फैक्टर के तौर पर बसपा से मेव मुस्लिम लीडर तैयब हुसैन के बेटे फजल हुसैन खड़े हैं। फजल हुसैन की मेव और एससी-एसटी वोटर्स पर अच्छी पकड़ है, जो कांग्रेस के वोट बैंक में सेंधमारी मानी जा रही है। इस सीट पर कांटे की टक्कर है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
कांग्रेस ने इस सीट पर सीपीआई से गठबंधन किया और अपना प्रत्याशी उतारने के बजाय सीपीआई को मौका दिया। सीपीआई प्रत्याशी अमराराम यहां से लगातार 6 लोकसभा चुनाव हारे हैं। इस जिले से प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद कांग्रेस को प्रत्याशी नहीं मिलने को लेकर स्थानीय लोगों ने मुद्दा बनाया। सुमेधानन्द सरस्वती दो बार यहां से जीत चुके हैं। बीजेपी के मुद्दे माने जाने वाले भगवा और हिन्दुत्व उन्हें सहारा देते हैं। अल्पसंख्यक वर्ग का एक धड़ा सुमेधानंद के पक्ष में खड़ा दिखाई दे रहा है, लेकिन ओवरऑल समीकरण बीजेपी के पक्ष में मजबूत नजर आ रहे हैं।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी यहां से प्रत्याशी हैं और उनके सामने कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे उदयलाल आंजना हैं। ये भी हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण वाली सीट है। राम मंदिर और हिन्दुत्व जैसे मुद्दे बीजेपी के पक्ष में हैं। यहां बीजेपी की स्थिति बेहतर है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
इस सीट से कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत प्रत्याशी हैं और भाजपा ने स्थानीय नेता लुम्बाराम चौधरी को टिकट दिया। वैभव के लिए अशोक गहलोत ने अधिकतर समय इस सीट पर काटा और अपने बेटे के लिए पूरी रणनीति बनाई, लेकिन स्थानीय नेता होने के कारण लुम्बाराम की पकड़ इस क्षेत्र में अच्छी खासी है। स्थानीय नहीं होने के कारण वैभव को सीट बदलने का फायदा नहीं मिलेगा। यहां भाजपा मजबूत है।
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मजबूत कौन? : कांटे की टक्कर
विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा के दिग्गज नेता राजेंद्र राठौड़ ने स्थानीय सांसद राहुल कस्वां को जयचंद कह कर विवाद को हवा दे दी। भाजपा से टिकट कटने के बाद राहुल कस्वां कांग्रेस से प्रत्याशी हैं। राहुल दो बार और उनके पिता इस सीट से चार बार सांसद रहे हैं। कांग्रेस को इस राजनीतिक विरासत का फायदा मिल सकता है।
भाजपा ने नए चेहरे पैरा ओलिंपियन देवेंद्र झाझड़िया को उतारा है। यहां भाजपा का पूरा कैंपेन राठौड़ ने संभाला। देवेंद्र को साफ छवि का फायदा मिल सकता है। जाट वोट बैंक सबसे बड़ा है। यहां चुनाव में जाट-राजपूत ध्रुवीकरण भी देखने को मिला। इस सीट पर कस्वां-झाझड़िया के बीच अच्छी खासी टक्कर है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
इस सीट पर बीजेपी ने युवा महिला प्रियंका बैलान को प्रत्याशी बनाकर चौंकाया, जिसका फायदा मिलेगा। बॉर्डर एरिया होने के कारण मोदी का चेहरा, सीमा सुरक्षा, राष्ट्रीयता स्थानीय मुद्दे हैं, जो बीजेपी के फेवर में रहते हैं। कांग्रेस के प्रत्याशी कुलदीप इंदौरा हैं। यहां कांग्रेस में गुटबाजी नजर आ रही थी। चुनाव से ठीक पहले टिकट के कई मजबूत दावेदारों ने पार्टी छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया था। यहां बीजेपी मजबूत नजर आ रही है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने गहलोत सरकार के कैबिनेट मंत्री रहे और क्षेत्र के दिग्गज नेता महेंद्रजीत मालवीया को पार्टी में शामिल कर प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस ने बीएपी से गठबंधन कर बीएपी प्रत्याशी राजकुमार रोत के लिए प्रचार किया। खास बात यह रही कि कांग्रेस के प्रत्याशी अरविंद डामोर ने पर्चा वापस नहीं लिया। इससे कांग्रेस गठबंधन को नुकसान होगा। बीजेपी यहां मजबूत है।
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मजबूत कौन? : कांग्रेस
यह सीट कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शीश राम ओला के नाम से पहचानी जाती है। मजबूत कैंडिडेट के रूप में कांग्रेस ने उनके बेटे विधायक बृजेंद्र ओला को उतार दिया। इस क्षेत्र में ओला परिवार का अच्छा प्रभाव है। ओला की राजनीतिक विरासत के कारण जाट समाज का एक बड़ा धड़ा उनको समर्थन दे रहा है। बीजेपी ने भी जाट समाज से ही शुभकरण चौधरी को टिकट दिया, लेकिन ओला भारी पड़ते दिख रहे हैं। यहां से सांसद नरेंद्र कुमार का टिकट कटने से उनके समर्थक भी बीजेपी से नाराज हैं। यहां कांग्रेस की स्थिति बेहतर है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
वसुंधरा राजे का गढ़ होने के कारण बीजेपी ने लगातार पांचवीं बार भी उनके बेटे दुष्यंत सिंह को प्रत्याशी बनाया। वे पिछले चारों चुनाव जीते हैं। राजे की गुडविल और उनके क्षेत्र में कराए गए कामों की बदौलत लोग उनके बेटे दुष्यंत सिंह को खुलकर समर्थन दे रहे हैं। बीजेपी की जीत तय मानी जा रही है।
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मजबूत कौन? : कांटे की टक्कर
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के गृह जिले की ये सीट जातिगत समीकरणों में फंसी हुई है। कोली समाज के मुकाबले जाटव समाज का वोट बैंक ज्यादा है, लेकिन जनरल वोट बैंक भाजपा का माना जाता है। इस सीट पर ओबीसी वोटर्स का रुख ही नतीजा तय करेगा। इस चुनाव में यहां जाट आरक्षण मुद्दा बना, इस कारण ओबीसी में शामिल करने की मांग को लेकर जाट समाज में बीजेपी (केंद्र सरकार) के लिए नाराजगी है। इस सीट पर दोनों प्रत्याशियों के बीच टक्कर है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
यहां से भाजपा ने पीपी चौधरी को तीसरी बार लगातार चुनाव में उतारा। दो चुनाव जीत चुके हैं। कांग्रेस ने महिला चेहरे के तौर पर संगीता बेनीवाल को मौका दिया है। लेकिन मोदी फैक्टर एवं अन्य मुद्दे यहां चौधरी को मजबूत बना रहे हैं। भाजपा की स्थिति यहां बेहतर नजर आती है।
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मजबूत कौन? : कांटे की टक्कर
भाजपा की इंदु देवी जाटव और कांग्रेस के भजनलाल जाटव, दोनों एक ही समाज के हैं। ये समाज यहां सबसे बड़ा वोट बैंक है। जो अपने समाज से ज्यादा वोट ले लेगा, वही जीत दर्ज करेगा। कांग्रेस को गुर्जर वोट बैंक का सहारा है, तो वहीं भाजपा को जनरल वोट बैंक का। इस सीट पर दोनों प्रत्याशियों में अच्छी टक्कर है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
हर चुनाव में इस सीट पर हिन्दू-मुस्लिम वोट बैंकों का ध्रुवीकरण बना रहता है। 2014 के बाद से लगातार बीजेपी जीत रही है। इस बार भी राष्ट्रीय मुद्दे ही यहां बीजेपी को मजबूती दे रहे हैं। यहां से बीजेपी के भागीरथ चौधरी मैदान में हैं और कांग्रेस से रामचंद्र चौधरी। दोनों एक समाज से आने के कारण एक दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगा रहे हैं। लेकिन धर्म, राम मंदिर जैसे मुद्दों पर ध्रुवीकरण बीजेपी के पक्ष में जा रहा है। यहां बीजेपी मजबूत है।
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मजबूत कौन? : बीजेपी
प्रत्याशी से ज्यादा चर्चा मोदी फैक्टर की है। कांग्रेस ने पहले यहां से गुर्जर समाज के दामोदर गुर्जर को टिकट दिया था। बाद में बदलकर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी को प्रत्याशी बनाया। इससे कांग्रेस की छवि को नुकसान पहुंचा है। भाजपा से दामोदर अग्रवाल प्रत्याशी हैं। ये लोकसभा क्षेत्र भी उनमें से है, जहां भाजपा का प्रत्याशी कोई भी हो, लेकिन चेहरा और मुद्दा मोदी ही बने हुए हैं। यहां भाजपा मजबूत।
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मजबूत कौन? : कांटे की टक्कर
बीजेपी ने मौजूदा सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया को तीसरी बार टिकट दिया और कांग्रेस ने हरीश चंद्र मीणा को। लगातार 10 साल से सांसद रहने से जौनपुरिया के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) देखी जा सकती है। वे मोदी के नाम पर चुनाव मैदान में हैं। दूसरी तरफ हरीश मीना को स्थानीय फैक्टर के साथ-साथ सचिन पायलट का सपोर्ट मिल रहा है। पायलट टोंक से विधायक हैं और उनकी साख भी जुड़ी हुई है। गुर्जर और मीणा वोट बैंक का ध्रुवीकरण रहा और अन्य जातियों से जो ज्यादा वोट लेगा उसे फायदा मिलेगा। यहां अच्छी टक्कर हैं।
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