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नई दिल्ली, वरिष्ठ संवाददाता। देश में अंग प्रत्यारोपण की जरूरतों को पूरा करने के लिए डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके लिए इंडियन सोसायटी ऑफ ट्रांसप्लांट सर्जन (आईएसटीएस) ने काम शुरू कर दिया है। एम्स दिल्ली में दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। पहले दिन मल्टी ऑर्गन प्रत्यार्पण विषय और दूसरे दिन सर्जनों के बीच भागीदारी बढ़ाने पर मंथन किया गया। पीजीआई चंड़ीगढ़ के रीजनल ट्रांसप्लांट विभाग के साथ मिलकर कार्यशाला का आयोजन किया। रविवार को कार्यशाला में मुख्य अतिथि व नीति आयोग के सदस्य प्रो. वीके पॉल, एम्स के निदेशक डॉ. श्रीनिवास, डॉ. अतुल गोयल (डीजीएचएस), एम्स के पूर्व निदेशक एमसी मिश्रा समेत 100 से ज्यादा वरिष्ठ डॉक्टरों ने भाग लिया। ऑर्गनाइजिंग चेयरमैन डॉ. वीके बंसल ने बताया कि सोसायटी को बनाने का उद्देश्य अंग प्रत्यारोपण के लिए ज्यादा से ज्यादा सर्जनों को तैयार करने का है। वर्तमान समय में डॉक्टरों और अन्य ट्रेंड स्टाफ की जरूरत को पूरा करना और प्रत्यारोपण के लिए अंगों की कम उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती है। फिलहाल अंगों की जरूरत के सापेक्ष महज 10-12 फीसदी ही अंग उपलब्ध हो रहे हैं।
नियमों में बदलाव की जरूरत
कार्यशाला में डॉक्टरों ने कहा कि अंगों के प्रत्यारोपण की जरूरतों को पूरा करने के लिए डॉक्टरों से संबंधित नियमों में भी बदलाव किए जाने की जरूरत है। फिलहाल नियम है कि अंग प्रत्यारोपण के लिए सर्जन को कम से कम तीन साल की ट्रेनिंग लेनी चाहिए। इसमें बदलाव कर इस अवधि को कम किया जाना चाहिए। यह देखा जाना चाहिए कि किसी सर्जन ने कितने अंग प्रत्यारोपण के मामलों में सहायक डॉक्टर की भूमिका निभाई है या कितने अंग प्रत्यारोपण किए हैं। इसके आधार पर सर्जन को सर्टिफाइड किया जाना चाहिए। इस संबंध में सोसायटी ने सरकार और अन्य संबंधित एजेंसियों से वार्ता शुरू कर दी है।
अंगदान बढ़ाने के लिए जागरूकता जरूरी
डॉक्टरों ने कहा कि जिस अनुपात में अंगों की जरूरत पड़ रही है, उस अनुपात में डोनर नहीं मिल रहे हैं। अंगदान को बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए और इसके लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाना जरूरी है। डॉक्टरों ने कहा कि अब परिवार छोटे हो रहे हैं और परिवार में डोनर मिलने मुश्किल हो रहे हैं। मरीज को भाई-बहन या अन्य परिजनों से अंग मिलने में दिक्कत आ रही है। उन्होंने बताया कि सालभर में सिर्फ चार हजार लीवर ट्रांसप्लांट हो पाए हैं और किड़नी प्रत्यारोपण के 18 हजार केस में अंगों की उपलब्ता हो पाई है। उन्होंने बताया कि यह सोसायटी तीन से छह माह में प्लान बनाकर उस पर काम करेगी, ताकि सर्जन और अंगों की कमी को दूर करने में मदद मिल सके।
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