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Sheikh Hasina: बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर शेख हसीना भागकर भारत तो आ गईं, लेकिन अब यहां से उनका कहीं और जाना बेहद मुश्किल है. अब उनके पास दो ही रास्ते हैं. या तो वो वापस बांग्लादेश जाएं जहां सरकार उनपर केस चलाने के लिए तैयार बैठी है या फिर वो भारत में ही रह जाएं, जिसके लिए शायद यहां की सरकार कभी तैयार नहीं होगी. तो अब शेख हसीना के पास रास्ता क्या है. आखिर वो क्यों किसी और दूसरे देश की शरण में नहीं जा रही हैं, आखिर बांग्लादेश वापसी उनके लिए ताउम्र क्यों मुश्किल है?
जब शेख हसीना आनन-फानन में भागकर भारत आईं, तो भारत को भी उम्मीद थी कि कुछ दिन यहां रहने के बाद शेख हसीना अपना ठिकाना खोज लेंगी. लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है, क्योंकि कोई भी दूसरा देश उन्हें शरण देने के लिए तैयार नहीं है. अब आगे शायद दुनिया का कोई भी मुल्क उन्हें अपने यहां शरण देगा भी नहीं, क्योंकि शेख हसीना के पास अब पासपोर्ट ही नहीं है कि वो दुनिया के किसी भी दूसरे देश की यात्रा कर सकें.
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने रद्द किया शेख हसीना का पासपोर्ट
बांग्लादेश में मोहम्मद युनूस के नेतृत्व में जो अंतरिम सरकार बनी है, उसने शेख हसीना का राजनयिक पासपोर्ट रद्द कर दिया है. यानी कि अब शेख हसीना किसी भी दूसरे देश की यात्रा नहीं कर सकती हैं, तो उनके पास एक ही उपाय है कि वो जहां हैं अब वहीं रहें. यानी कि भारत में ही रहें. हालांकि, ऑप्शन तो शेख हसीना के पास ये भी है कि वो बांग्लादेश वापस लौट जाएं. लेकिन अगर शेख हसीना बांग्लादेश जाती भी हैं तो तुरंत ही उनकी गिरफ्तारी हो जाएगी.
पासपोर्ट रद्द करने के पीछे जानिए क्या है कारण?
तीन बार देश की पीएम रहने वाली शेख हसीना पर नई अंतरिम सरकार ने हत्या, नरसंहार और अपहरण के कुल 30 से भी ज्यादा मुकदमे दर्ज किए हैं. इनमें 26 केस हत्या के, 4 नरसंहार के और एक किडनैपिंग का केस है. शेख हसीना के अलावा उनके बेटे, बेटी और बहन के खिलाफ भी ऐसे ही गंभीर मुकदमे दर्ज हैं. ऐसे में अभी कुछ और मुकदमे उनके पूरे परिवार के खिलाफ दर्ज करने की तैयारी चल रही है. अगर शेख हसीना या उनके परिवार का कोई भी शख्स बांग्लादेश में कदम भी रखता है, तो उसकी गिरफ्तारी तय है.
लिहाजा शेख हसीना भारत में ही हैं. तब तक जब तक कि बांग्लादेश में परिस्थितियां शेख हसीना के अनुकूल न हो जाएं. लेकिन वो होने में तो वक्त लगेगा. तब तक शेख हसीना क्या भारत में ही रहेंगी. रहने को तो वो रह ही सकती हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि अगर बांग्लादेश की सरकार ने भारत सरकार से शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर दी, तो फिर भारत क्या करेगा. आखिर भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि तो है ही. ये संधि साल 2013 से ही है.
जानिए क्या है प्रत्यर्पण संधि?
दरअसल, प्रत्यर्पण संधि कहती है कि अगर किसी एक देश का अपराधी दूसरे देश में है, तो उस देश को उस अपराधी को उसके असल देश की सरकार को लौटाना ही होगा. भारत ने भी अपने कई अपराधियों का प्रत्यर्पण करवाया है और दुनिया के अलग-अलग देशों से उन्हें वापस लाया गया है.
जैसे अबू सलेम को पुर्तगाल से भारत वापस लाया गया. छोटा राजन को भारत सरकार इंडोनेशिया से लेकर आई. मलकीत कौर और सुरजीत बदेशा कनाडा से भारत लाए गए. और भी कई बड़े अपराधी विदेश से भारत लाए गए और उन्हें यहां भारत के कानून के मुताबिक सजा दी गई. दूसरे देशों को छोड़िए, भारत सरकार बांग्लादेश से भी अपने अपराधी अनूप चेतिया को प्रत्यर्पित कर अपने यहां ले आई, क्योंकि वो उल्फा का बड़ा आतंकी था, जो बांग्लादेश में शरण लिए हुए था.
शेख हसीना पर मर्डर-किडनैपिंग का केस दर्ज
अगर बांग्लादेश ने शेख हसीना को भी अपराधी के तौर पर प्रत्यर्पित करने की मांग कर दी, तो फिर भारत के पास रास्ता क्या होगा. जब तक शेख हसीना पर कोई आपराधिक केस नहीं था, उनकी भारत में शरण राजनीतिक शरण थी. और उस मामले में भारत शेख हसीना को बांग्लादेश सरकार को सौंपने के लिए मजबूर नहीं था. लेकिन अब बांग्लादेश के लिए शेख हसीना अपराधी हैं. और अपराध भी छोटे-मोटे नहीं, उनपर हत्या, नरसंहार और अपहरण के गंभीर आरोप हैं.
इसको लेकर बांग्लादेश की राजनीतिक पार्टी की मुखिया और शेख हसीना की धुर विरोधी खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी बीएनपी ने शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर दी है. हालांकि ये मांग राजनीतिक है तो भारत को इससे अभी कोई परेशानी नहीं है. लेकिन अगर यही मांग बांग्लादेश की सरकार की तरफ से भी आ गई, तो फिर भारत को तो सोचना ही पड़ेगा.
क्योंकि मामला किसी एक शख्स का नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों और खास तौर से अपने सबसे अच्छे पड़ोसी में से एक बांग्लादेश के साथ संबंध का होगा, जिसके साथ शांति भारत के लिए बेहद जरूरी है. लेकिन शेख हसीना को हमेशा के लिए भारत में ही रखने पर सरकार के सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो सकता है. बाकी ये मामला केंद्र सरकार और उसके विदेश मंत्रालय को देखना है.
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