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राज्य के सरकारी स्कूलों में लगभग 42 लाख बच्चे पढ़ते हैं। मई में नया सत्र प्रारंभ हो चुका है, लेकिन इनकी पढ़ाई अब तक शुरू नहीं हो पाई है। राज्य सरकार पहली से 12वीं कक्षा तक के छात्रों को नि:शुल्क पुस्तकें देती है। दावा किया जा रहा है कि प्रकाशकों ने प्र
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उनका कहना है कि बहुतायत प्रखंडों में पुस्तकें या तो नहीं पहुंची हैं, या पहुंची भी हैं तो सिर्फ जूनियर कक्षाओं की ही। यह कहानी लगभग हर साल की है। किसी भी वर्ष निश्चित समय पर बच्चों को किताबें या जरूरत की सामग्री नहीं मिलती है। मासिक बैठकों में इसकी समीक्षा होती है। शिक्षा सचिव या राज्य परियोजना निदेशक डीईओ और डीएसई को निर्देश देते हैं, पर किताबों के वितरण की गति धीमी ही बनी रहती है। पिछले साल तो अक्टूबर तक यह प्रक्रिया चलती रही थी। इस बार भी स्थिति अनुकूल नहीं दिख रही।
लोकसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता लगने के कारण शिक्षा विभाग ने निर्वाचन आयोग से किताब वितरण की अनुमति मांगी थी। आयोग ने स्पष्ट कहा था कि जो योजना पूर्व से चल रही है, उसे नहीं रोका जा सकता। राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के. रवि कुमार ने प्रेस वार्ता में भी स्पष्ट कहा था कि शिक्षा विभाग किताबें और कॉपियों का वितरण छात्रों के बीच कर सकती हैं। इस पर कोई रोक नहीं है। बाद में निर्वाचन आयोग को विभागीय अधिकारियों ने बताया कि किताबों में झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन के बारे में भी एक पाठ है, तब कहा गया था कि उक्त पुस्तक को छोड़ कर शेष सभी पुस्तकें बांटी जा सकती हैं। पर, ऐसा नहीं हुआ।
डायरेक्टर का दावा-30 जून तक सभी बच्चों के हाथ में होंगी किताबें
जेसीईआरटी डायरेक्टर आदित्य रंजन ने गुरुवार को दावा किया कि 30 जून तक सभी बच्चों के हाथ में किताबें होंगी। उन्होंने कहा कि अधिकतर प्रखंडों तक किताबें पहुंच गई हैं। रोज इसकी मॉनिटरिंग हो रही हैं। उम्मीद है कि 20 जून तक 80 प्रतिशत स्कूलों में किताबें पहुंच जाएंगी। जिला और प्रखंडों के सभी शिक्षा अधिकारियों को इस संबंध में निर्देश दिया जा चुका है। आदित्य रंजन ने कहा कि संसदीय चुनाव को लेकर कुछ परेशानियां आईं, अब तेज गति से काम हो रहा है।
पुस्तकों की छपाई व वितरण पर खर्च होते हैं ~190 करोड़
शिक्षकों ने कहा- किसी भी वर्ष निश्चित समय पर बच्चों को नहीं मिलती हैं किताबें या जरूरत की सामग्री
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