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Cancer Treatment Egypt: प्राचीन मिस्र के लोग 4 हजार साल पहले ही शल्य चिकित्सा की मदद से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का इलाज करने का प्रयास किए थे, इसका खुलासा हाल ही में हुए एक शोध के दौरान हुआ. इस नए शोध के लिए शोधकर्ताओं ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के डकवर्थ म्यूजियम से 2686 और 2345 ईसा पूर्व के बीच की मानव खोपड़ी का अध्ययन किया. मानव खोपड़ी में एक बड़े प्राइमरी ट्यूमर के अलावा 30 से अधिक छोटे मेटास्टेटिक घावों के निशान मिले हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि ये घाव संभवतः किसी नुकीले धातु के उपकरण से किए गए थे.
शोधकर्ताओं ने कहा कि इन घावों से पता चलता है कि प्राचीन मिस्र के लोगों ने मरीज के इलाज के लिए शल्य चिकित्सा करने का प्रयास किया था. अभी तक कैंसर का सबसे पुराना विवरण करीब 1600 ईसा पूर्व से आया है. मिस्र से एडविन स्मिथ पेपिरस ने अपनी किताब में कई स्तन ट्यूमर का वर्णन किया है, लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि इसका कोई उपचार नहीं है.
आधुनिक चिकित्सा की शुरुआत की बदल सकती है धारणा
दूसरी तरफ बुधवार को फ्रंटियर्स इन मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित हुए नए अध्यन में लेखकों ने बताया कि ये नए निष्कर्ष आधुनिक चिकित्सा की शुरुआत के बारे में हमारी धारणा को बदल सकते हैं. उन्होंने कहा कि हमने जो पाया है कि वह कैंसर से सबंधित शल्य चिकित्सा का पहला सबूत है. ‘स्पेन में सैंटियागो डे कॉम्पोस्टेला विश्वविद्यालय के एक पैलियोपैथोलॉजिस्ट, अध्ययन के सह-लेखक एडगार्ड कैमरोस पेरेज ने लाइव साइंस को बताया कि ‘यही वह जगह है जहां आधुनिक चिकित्सा शुरू होती है.’
इस टीम ने एक महिला खोपड़ी का भी अध्ययन किया, जो मृत्यु के समय 50 साल की थी. यह खोपड़ी 664 और 343 ईसा पूर्व के बीच की मानी जाती है. यह खोपड़ी भी डकवर्थ म्यूजियम में रखी गई थी. आदमी की खोपड़ी की तरह ही इस खोपड़ी में भी एक बड़ा घाव था, जो कैंसर का संकेत था. लेकिन इस घोपड़ी में दो अन्य घाव थे जो दर्दनाक चोट के कारण हुए थे. ऐसा लग रहा था कि किसी धारदार हथियार से हमला किया गया हो. टीम ने पाया कि दोनों दर्दनाक घाव ठीक हो गए थे. इससे यह पता चलता है कि प्राचीन मिस्र में शल्य चिकित्सा इतनी उन्नत थी.
कैंसर का इलाज मिस्र की चिकित्सा में था शामिल
कैरोस पेरोज ने कहा, ‘नए अध्ययन से पता चलता है कि कैंसर का इलाज मिस्र की पुरानी चिकित्सा में शामिल था.’ ऐस कुछ उन्होंने अजमाया होगा, लेकिन सफलता पूर्वक इलाज करने में असफल रहे. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि रोगियों के नैदानिक इतिहास के बिना वैज्ञानिक खुद के द्वारा अनुभव किए गए साक्ष्यों के आधार पर कैंसर की पूरी तस्वीर सामने नहीं रख सकते हैं.
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