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सिर्फ इमरजेंसी की ही बात करें, तो यहां रोजाना औसतन 20 अति गंभीर (मोस्ट क्रिटिकल) मरीज पहुंचते हैं।
अमन मिश्रा रिम्स का सालाना बजट 300 करोड़ है। इस राशि का करीब 30% हिस्सा अस्पताल में सुविधाएं बढ़ाने के लिए खर्च किया जाना है। राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल होने के कारण मरीजों को कई सुविधाएं देने का दावा भी किया जाता है, लेकिन हकीकत इसके उलट है। 2020 के ब
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लेकिन, उन्हें इमरजेंसी के बाहर घंटों तक इंतजार करना पड़ता है। यह कहा जाता है कि अभी बेड खाली नहीं है, इंतजार करिए। कई बार तो एंबुलेंस में लगे वेंटिलेटर के सहारे सांसें ले रहे मरीज इलाज के अभाव में अस्पताल की दहलीज पर दम भी तोड़ देते हैं। लेकिन, अस्पताल प्रबंधन है कि हर बार सिर्फ सीमित मात्रा में ही वेंटिलेटर होने की बात कह कर अपना पल्ला झाड़ लेता है। कई बार घंटों इंतजार करने के बाद भी बेड खाली नहीं होने की बात कह कर मरीजों को लौटा भी दिया जाता है।
कई बार तो ऐसी स्थिति भी देखी जाती है कि इमरजेंसी के बाहर एक साथ 7 एंबुलेंस मरीजों को लेकर दो घंटे से ज्यादा बाहर खड़े रहते हैं। सभी में मरीज वेंटिलेटर सपोर्ट पर रहते हैं। परिजन बार-बार ट्रॉली मैन के पास स्ट्रेचर लाने की बात कहते हैं, लेकिन वे बार-बार वेंटिलेटर खाली नहीं है, बताते हुए उन्हें लौटा देते हैं। हैरानी वाली बात यह कि वेंटिलेटर सपोर्ट में इलाजरत अधिकांश मरीज 24 से 72 घंटे तक से इमरजेंसी में ही पड़े हुए थे।
इस बाबत जब ड्यूटी डॉक्टरों से पूछा गया, तो उनका कहना था कि वार्ड में भी सीमित वेंटिलेटर हैं। उनमें मरीज इलाजरत हैं। इमरजेंसी में भर्ती गंभीर मरीजों को वेंटिलेटर से हटाया भी नहीं जा सकता। अगर इन्हें वार्ड में शिफ्ट किया भी जाए तो वेंटिलेटर के साथ ही करना होगा। मरीज ज्यादा हैं, इसलिए सभी वेंटिलेटर फुल हैं।
परिजन से अस्पतालकर्मी कहते हैं-अभी बेड खाली नहीं है, इंतजार करिए पीएम केयर से मिले 104 वेंटिलेटर में से 82 खराब 2100 बेड की क्षमता वाले अस्पताल में अंतिम बार कोविड के समय यानी 2020 में वेंटिलेटर की खरीद की गई थी। वहीं, पीएम केयर से अस्पताल को 104 वेंटिलेटर मिले थे। इनमें से 82 पूरी तरह खराब हैं। किसी की किट खराब है, तो किसी का डिस्प्ले काम नहीं कर रहा है। करीब 20 वेंटिलेटर सेंट्रल इमरजेंसी के पीछे वॉशरूम के बगल वाले कमरे और 40 से 45 वेंटिलेटर ट्रॉमा सेंटर के दूसरे तल्ले में एक कमरे में बंद हैं। इसकी शिकायत मिलने पर कंपनी से इंजीनियर आए थे। उन्होंने 22 वेंटिलेटर ही ठीक किए, जो विभिन्न वार्डों में अब भी फंक्शनल हैं।
जरूरत है 400 वेंटिलेटर की, पर मात्र 150 ही हैं रिम्स में 30 से ज्यादा विभाग हैं। इनमें से 20 विभाग ऐसे हैं, जहां वेंटिलेटर की जरूरत है। डॉक्टरों के अनुसार, हर विभाग में कम से कम 20 वेंटिलेटर युक्त बेड की आवश्यकता है। इस लिहाज से देखें तो 20 वार्ड में 400 वेंटिलेटर की जरूरत है, जबकि वर्तमान में 150 वेंटिलेटर ही फंक्शनल हैं। किसी विभाग में 2 तो कहीं 5 वेंटिलेटर ही हैं। सिर्फ सुपरस्पेशियलिटी आईसीयू और क्रिटिकल केयर में 20-20 वेंटिलेटर सपोर्टेड बेड हैं। वहीं, पीएम केयर से आए वेंटिलेटर रिम्स के बंद कमरे में रखे हैं। बीतते समय के साथ अब उनमें जंग लग गया है और वे मशीनें अब पूरी तरह से खराब हो चुकी हैं।
चुनाव के बाद खरीदी जाएंगी नई मशीनें वेंटिलेटर बेड कम होने के कारण मरीज को दिक्कत होती है, प्रबंधन क्या कर रहा है? – किसी भी अस्पताल में वेंटिलेटर सपोर्टेड बेड की संख्या सीमित होती है। वहीं, अगर पहले से वेंटिलेटर पर कोई मरीज भर्ती हैं ताे वे जबतक वेंटिलेटर से बाहर नहीं आ जाते, उन्हें ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड में शिफ्ट करना मुश्किल है। रिम्स में बाकी अस्पतालों से गंभीर मरीजों को रेफर किया जाता है, रेफरल रुकने से इस समस्या से निजात मिल सकती है। रिम्स में जरूरत के हिसाब से वेंटिलेटर की संख्या कम है, नई खरीद की पहल हुई है या नहीं? – सभी विभागों से वेंटिलेटर को लेकर रिक्वाॅयरमेंट मांगे गए थे। जिसके बाद प्रबंधन ने नए वेंटिलेटर खरीद की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। आचार संहिता के कारण अभी प्रक्रिया रूकी हुई है। लोकसभा चुनाव के बाद मशीनें खरीदी जाएगी। पीएम केयर से वेंटिलेटर मिले थे, उनमें कुछ न कुछ तकनीकी खराबी थी। कुछ रिपेयर कराए गए हैं, जिसका इस्तेमाल किया जा रहा है।
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