*खदानों, क्रशर प्लांटों से निकलने वाले धूलकणों-डस्ट, वाहनों से मानव जीवन को पैदा हो रहा है खतरा
*रोक लगाने को कौन कहें, बढ़ती ही जा रही है समस्या
अजित सिंह
सोनभद्र। जिले के खदानों और क्रशर प्लांटों से भले ही सरकार को भरपूर राजस्व लाभ होता आया है, लेकिन इससे मानों जीवन खतरा बना हुआ है। जिस पर रोक लगाने के साथ-साथ ठोस जतन नहीं किए गए तो वह दिन दूर नहीं जब लोग क्रशर प्लांटों खदानों से निकलने वाले धूलकणों-डस्ट से लेकर खदानों से निकलने वाले वाहनों के जरिए प्रदूषण की जद में आकर विभिन्न प्रकार की घातक बीमारियों से घिर जाएंगे। बताते चलें कि वैध अवैध दोनों तरह से जिले के खदानों में खनन कार्य जोरों पर किया जा रहा है। बात करते हैं जिले के ओबरा, डाला, चोपन क्षेत्र में चल रही खदानों का जहां नियमों को ताक पर रख कर अंधाधुंध खनन और ब्लास्टिंग किया जा रहा है जिससे मानव जीवन के साथ-साथ जंगली जीवों को भी खतरा बढ़ने लगा है। क्षेत्र के घरों में दरार पड़ने के साथ लोगों को अपना घर ढ़हने का भय बना हुआ रहता है। ओबरा कस्बे के रहने वाले छात्र नेता अभिषेक अग्रहरी बताते हैं कि नियमों को ताक पर रख कर हो रहे खनन से जहां पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है, वहीं अंधाधुंध मनमाने ब्लास्टिंग से मकानों से लेकर धरती तक में कंपन होने से बीमार, कमजोर दिल के लोगों की सांस अटकी हुई रहती है। गौरतलब हो कि ओबरा क्षेत्र के चारों ओर खनन और ब्लास्टिंग, क्रेशर प्लांट के शोर से लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। उपर से कस्बे की सड़कों से लेकर अगल बगल के ग्रामीण मार्गों पर गिट्टी बोल्डर ढुलाई में लगे टीपर, ट्रक आदि के फर्राटे भरते हुए आवागमन करने से बराबर दुर्घटना का भय बना हुआ रहता है। खदानों क्रशर प्लांटों से निकलने वाले धूलकणों-डस्ट के गुबार से इलाके के पेड़ पौधे, हरियाली धीरे-धीरे समाप्त हो चुके हैं थोड़े बहुत जो बचे हुए हैं उनकी भी अब तब की स्थिति बनी हुई है जो कब सूख कर लकड़ी का रुख कर लेंगे कहा नहीं जा सकता है। यों कहें कि खदानों और क्रेशर प्लांटों की वज़ह से पर्यावरण संतुलन भी तेजी से बिगड़ता जा रहा है। जो आने वाले दिनों में गंभीर रूप अख्तियार कर लेगा। जानकर बताते हैं कि वह दिन दूर नहीं दिखाई देता है जब ओबरा क्षेत्र में बेतहाशा बढ़ते खनन और क्रशर-पत्थर प्लांटों के शोर में जीवन बचाने के लिए लोगों को यहां से पलायन का रास्ता अख्तियार करना पड़ सकता है। हालांकि अधिकारी भी पूछे जाने पर बस एक ही रटा रटाया जबाब देते हैं कि परमिट और नियमों के तहत खनन और क्रशर-पत्थर प्लांटों के संचालन के लिए समय-समय पर जांच पड़ताल की जाती है। शिकायत मिलने पर कार्रवाई भी की जाती है। लेकिन ऐसा होता नहीं है बल्कि शिकायत होने पर शिकायतकर्ता को ही चुप रहने के लिए हिदायत दी जाती है। छात्र नेता अभिषेक अग्रहरी बताते हैं कि पिछले दिनों उन्होंने अवैध खनन क्रेशर प्लांटों की मनमानी, खदानों में नियम विरुद्ध होने वाले ब्लास्टिंग इत्यादि मसलों पर शिकायत दर्ज करा कर मानव जीवन को बचाने के मुद्दे पर अनशन पर बैठने की बात कर अनुमति मांगी तो उल्टा उन्हें जेल में ठूंस देने की चेतावनी दी गई। इस प्रकार से देखा जाए तो आवाज उठाने वालों की आवाज को ही दबाने की साज़िश रची दी जाती है, ताकि कोई इनके इस काले कारोबार की ख़िलाफत न करने पाएं।
बाक्स मैटर —-
*सफाई और पानी छिड़काव के नाम किया जाता है कोरमपूरा—–
सोनभद्र। मुख्य मार्ग से लगाए ओबरा कस्बे से और खनन क्रशर-पत्थर प्लांटों से निकलने वाले मार्ग पर धूलकणों-डस्ट से निजात पाने के लिए निरंतर पानी का छिड़काव होना चाहिए ताकि हवा में उड़ते हुए धूलकणों डस्ट से लोगों को बचाया जा सके। लेकिन देखने में आता है कि नाम मात्र का कहीं कहीं पानी का छिड़काव कर कोरम पूरा कर लिया जाता है जिससे लोगों के घरों, दरों-दिवार, विभिन्न मार्गों, पेड़-पौधों पर धूलकणों-डस्ट की जमीं हुई परतों को आसानी से देखा जा सकता है। इससे न केवल विभिन्न बीमारियों को बढ़ावा मिल रहा है, बल्कि मानव जीवन से लेकर जीव जंतुओं, पेड़-पौधों का भी जीवन ख़तरे में पड़ गए हैं। जिसकी ओर किसी का ध्यान न जाने से यह समस्या बढ़ती ही जा रही है।
—–जन सुनवाई के नाम पर हो रहा कोरम पूरा—-
सोनभद्र में खदानों क्रशर प्लांटों में होने वाले हादशा के बाद महज कोरम पूरा करने के लिए जन सुनवाई का दिखावा किया जाता है। इसमें भी उन्हीं लोगों को बुलाया जाता है जो कुछ न बोले ना ही कुछ कहें। यदि कुछ बोले और कहें तो उनकी ही बात में हां में हां मिलाते हुए। सोमवार को क्रेशर प्लांट में आपरेटर की मौत के बाद आयोजित जन सुनवाई का भी कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला है। जहां जब तक लोग कुछ कहने बोलने का साहस करते कि उसके पहले ही मिष्ठान वितरण कर जन सुनवाई की घोषणा कर सबकुछ चकाचक दिखा दिया गया।