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बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) के जवान और बीकानेर के रहने वाले जेठाराम बिश्नोई को 31 साल बाद शहीद का दर्जा मिला है। वे नवंबर 1993 में पेट्रोलिंग के दौरान नदी में डूबने से शहीद हो गए थे। तब उनकी पत्नी 7 महीने की गर्भवती थी। घटना के दो महीने बाद शहीद के
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बेटे ने अपने पिता को केवल फोटो में देखा। परिवार से उनके जीवन के बारे जाना। उसे अपने पिता की एक डायरी भी मिली, जिसमें उन्होंने- ‘कश्मीर में आतंकियों से मुठभेड़ का जिक्र और श्रीनगर के लाल चौक पर आतंकी संगठनों की धमकी के बाद भी तिरंगा लहराने की शौर्य गाथा को पढ़ा था। तब उसने पिता को शहीद का दर्जा दिलाने का ठान लिया। एक बेटे का ये प्रयास सफल भी हुआ।
भास्कर रिपोर्ट में पढ़िए कैसे एक बेटे ने अपने पिता को शहीद का दर्जा दिलाने की लड़ाई लड़ी…
BSF की तरफ से जवानों ने शहीद के घर जाकर उनकी पत्नी भंवरी देवी को शहादत प्रमाण-पत्र सौंपा।
घटनाक्रम जिसमें शहीद की जान गई जेठाराम बिश्नोई बीकानेर के बज्जू तहसील के मिठड़ियां गांव के रहने वाले थे। उन्होंने 17 सितंबर 1989 में 20 साल की उम्र में बीएसएफ जॉइन किया था। 1993 में वे बांग्लादेश की सीमा से सटी इच्छामति नदी के पास पेट्रोलिंग कर रहे थे। इस दौरान वे नदी में गिर गए और डूबने से मौत हो गई थी।
शहीद के बड़े भाई हरभजराम ने बताया- उस समय बीएसएफ के अधिकारी जेठाराम की अस्थियां लेकर उनके घर आए थे। शहादत की सूचना के साथ जेठाराम की निशानी के रूप में उसके कपड़े, कागज, पत्र और डायरी सौंपी थी।
शहीद की मां ने डरकर बड़े बेटे की नौकरी को छुड़वाया था जेठाराम के शहीद होने की खबर परिवार को मिली तो उनकी माता झम्मू देवी को यकीन नहीं हुआ था। एक बेटे को खोने के बाद अपने बड़े बेटे हरभजराम की होमगार्ड की नौकरी छुड़वा दी थी।
जेठाराम बिश्नोई ने केवल 20 साल की उम्र में बीएसएफ जॉइन किया था। यह तस्वीर ड्यूटी के दौरान की है, जिसमें जेठाराम और उनके साथी हैं।
पत्नी 7 महीने की गर्भवती थी शहीद की मौत के समय उनकी पत्नी भंवरी देवी 7 महीने की गर्भवती थी। दो महीने बाद उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया। उसका नाम हंसराज विश्नोई रखा, लेकिन पति की मौत के गम से उबर नहीं पा रही थीं। उनकी नवोदय स्कूल में मेस सहायिका के पद पर नौकरी लगी लेकिन जॉइन नहीं किया। पति की पेंशन और खेतीबाड़ी से अपना जीवनयापन किया।
बेटे को मिली पिता की डायरी बेटे हंसराज (31) ने अपने पिता को केवल फोटो में देखा है। पिता के जीवन के बारे में अपनी मां और परिवार के अन्य लोगों से जाना। उसे अपने पिता की एक डायरी मिली। जेठाराम इस डायरी में अपनी दैनिक गतिविधियों के बारे में लिखते थे। ये डायरी किसी शौर्य गाथा से कम नहीं थी। कश्मीर में आतंकियों से मुठभेड़ का जिक्र और लाल चौक पर आतंकी संगठनों की धमकी के बाद भी तिरंगा लहराने का भी जिक्र था।
डायरी में लिखा है-
पिता को शहीद का दर्जा दिलाने की ठानी शहीद के बेटे हंसराज ने बताया- पिता ने बीएसएफ में इतना साहस और शौर्य दिखाया। उनकी मौत भी ऑन ड्यूटी पेट्रोलिंग के दौरान हुई थी। इसके बाद भी उन्हें शहीद क्यों नहीं कहा जाता? तब ठान लिया कि वे अपने पिता को शहीद का दर्जा दिलाकर रहेंगे।
हंसराज ने बताया- भरतपुर के बीएसएफ जवान को मृत्यु के 30 साल बाद शहीद का दर्जा मिला था। इसकी खबर 2022 में दैनिक भास्कर में पढ़ने के बाद BSF को पत्र लिखा था। वहां से उचित जवाब नहीं मिलने पर 2022 में ही दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वकील अशक्रीत तिवारी और सुनील बेनिवाल ने उनकी अपील को दायर किया। कोर्ट में तारीखों का सिलसिला चल रहा था। फैसले से पहले ही BSF की टीम ने उनके घर पहुंचकर शहादत प्रमाण-पत्र सौंप दिया।
हंसराज ने कहा- पिता को शहीद का दर्जा मिलना ही उसके जीवन की सबसे बड़ी सफलता है। राज्य सरकार एक शहीद के परिवार को जो भी सहायता देगी, उसे वो स्वीकार करेंगे। उनका कहना है- एक सामान्य सेना के शहीद को जो लाभ मिलते हैं, वो ही लाभ उनकी मां को भी मिलने चाहिए। ये उनका अधिकार है।
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