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राजस्थान में करीब 900 करोड़ के जल जीवन मिशन घोटाले में एसीबी ने पूर्व मंत्री महेश जोशी सहित 22 अफसरों को आरोपी बनाया है। इनके खिलाफ FIR दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। जल्द ही पूछताछ के लिए कुछ गिरफ्तारियां हो सकती हैं।
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एसीबी ने किस आधार पर पूर्व मंत्री महेश जोशी पर मुकदमा बनाया है? इस घोटाले में उनकी क्या भूमिका है? एसीबी के हाथ कौनसे सबूत लगे हैं? यह जानने के लिए भास्कर ने इस मामले में ईडी की एसीबी को सौंपी गई जांच रिपोर्ट और एसीबी की ओर से दर्ज FIR खंगाली।
रिपोर्ट के अनुसार जयपुर की दो ट्यूबवेल कंपनियों को करोड़ों के टेंडर देने में पीएचईडी के अधिकारियों से लेकर विभाग के तत्कालीन मंत्री तक का कनेक्शन था। पूरे टेंडर का 4 प्रतिशत कमिशन तक एडवांस भुगतान हुआ था। इस खेल में नीचे से लेकर ऊपर तक सबका हिस्सा और कमीशन तय था।
संडे बिग स्टोरी में पढ़िए पूरी रिपोर्ट..
सबसे पहले घोटाले की कुछ शुरुआती कहानी समझते हैं
यह घोटाला केंद्र सरकार की हर घर नल पहुंचाने वाली ‘जल जीवन मिशन योजना’ से जुड़ा है। वर्ष 2021 में श्री श्याम ट्यूबवेल कंपनी और मैसर्स श्री गणपति ट्यूबवेल कंपनी के ठेकेदार पदमचंद जैन और महेश मित्तल ने फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र दिखाकर जलदाय विभाग (PHED) से करोड़ों रुपए के 4 टेंडर हासिल किए थे।
श्री गणपति ट्यूबवेल कंपनी ने फर्जी कार्य प्रमाण पत्रों से पीएचईडी की 68 निविदाओं में भाग लिया था। उनमें से 31 टेंडर में एल-1 के रूप में 859.2 करोड़ के टेंडर हासिल किए।
वहीं श्री श्याम ट्यूबवेल कंपनी ने 169 निविदाओं में भाग लिया और 73 निविदाओं में एल -1 के रूप में भाग लेकर 120.25 करोड़ के टेंडर हासिल किए थे।
घोटाले का खुलासा होने पर एसीबी ने जांच शुरू की। कई भ्रष्ट अधिकारियों को दबोचा। फिर ईडी ने केस दर्ज कर महेश जोशी और उनके सहयोगी संजय बड़ाया सहित अन्य के ठिकानों पर दबिश दी। इसके बाद सीबीआई ने 3 मई 2024 को केस दर्ज किया। ईडी ने अपनी जांच पूरी कर 4 मई को सबूत और दस्तावेज एसीबी को सौंपे दिए थे।
FIR में 18 बार महेश जोशी का नाम
एसीबी ने ईडी से रिपोर्ट मिलने के बाद दीपावली से एक दिन पहले 30 अक्टूबर को पूर्व मंत्री महेश जोशी सहित 22 अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज की है। एफआईआर में महेश जोशी और उनके पद ( तत्कालीन मंत्री) का 18 बार और संजय बड़ाया का 16 बार जिक्र आया है। अधिकांश बार दोनों के नामों का एक साथ उल्लेख किया गया है।
रिपोर्ट में खुलासा : बतौर कमीशन टेंडर राशि का 4% एडवांस भुगतान!
एसीबी के एडिशनल एसपी विशनाराम की जांच और ईडी से मिले दस्तावेजों में बड़ा खुलासा हुआ है कि पूर्व मंत्री महेश जोशी, उनके सहयोगी संजय बड़ाया और पीएचईडी के अधिकारियों को टेंडर राशि का 4 प्रतिशत तक एडवांस भुगतान हुआ था। ये राशि दोनों संदिग्ध फर्मों मैसर्स श्री श्याम ट्यूबवेल कंपनी और मैसर्स श्री गणपति ट्यूबवेल के ठेकेदार पदमचंद जैन और महेश मित्तल ने दी थी।
ईडी ने इस संबंध में एसीबी को दस्तावेज उपलब्ध कराए हैं। ईडी ने अपनी जांच के आधार पर पूर्व मंत्री महेश जोशी को आरोपी बनाया। इसी आधार पर एसीबी ने भी महेश जोशी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इस संबंध में जांच शुरू हो चुकी है। अब एसीबी जल्द ही आरोपियों को तलब कर उनके बयान दर्ज करेगी।
FIR में संजय बड़ाया और महेश जोशी के नाम का कई बार जिक्र है। दोनों का आपस में कनेक्शन और घोटाले में भूमिका भी बताई गई है।
ट्रांसफर से एपीओ तक कराता था संजय बड़ाया
एसीबी के अनुसार जल जीवन मिशन घोटाले को अंजाम देने में पीएचईडी के पूर्व मंत्री महेश जोशी और संजय बड़ाया की बड़ी भूमिका थी। जांच एजेंसी ने संजय बड़ाया को राजस्थान के पूर्व पीएचईडी मंत्री महेश जोशी का एक विश्वसनीय सहयोगी बताया है। आरोपी संजय बड़ाया का दखल पीएचईडी कर्मचारियों की निगरानी से लेकर उनके ट्रांसफर तक में होता था।
महेश जोशी के माध्यम से संजय बड़ाया अधिकारियों को एपीओ तक करा देता था। ईडी की रिपोर्ट में इसका जिक्र है कि पूर्व मंत्री महेश जोशी के कहने पर ही संजय बड़ाया ट्रांसफर, पोस्टिंग और टेंडर से जुड़े काम देख रहा था। जबकि संजय बड़ाया न तो पीएचईडी के साथ काम कर रहा था और न ही पीएचईडी के साथ कोई आधिकारिक संबंध था।
अभियंता ने खोला राज, बोले- पूर्व मंत्री जोशी और बड़ाया में सांठगांठ
ईडी को अपनी जांच में मैसर्स श्री श्याम ट्यूबवेल कंपनी और मैसर्स श्री गणपति ट्यूबवेल कंपनी के ठेकेदारों से रिश्वत लेने में संजय बड़ाया की संलिप्तता के सबूत मिले हैं। जिसमें टेंडर के आवंटन में पूर्व मंत्री की ओर से सौंपे काम का जिक्र है।
प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट (पीएमएलए) 2002 के तहत की गई ईडी की जांच में तत्कालीन इंजीनियर विशाल सक्सेना का बयान धारा 50 के तहत दर्ज किया। विशाल सक्सेना पीएचईडी के शाहपुरा में कार्यकारी अभियंता थे।
कारोबारी संजय बड़ाया और पूर्व मंत्री महेश जोशी।
एसीबी ने अपनी एफआईआर में भी इसे महत्वपूर्ण आधार माना है। जिसमें विशाल ने जांच एजेंसी को बताया कि संजय बड़ाया पूर्व पीएचईडी मंत्री महेश जोशी के निर्देश पर पीएचईडी के विभिन्न वरिष्ठ अधिकारियों के साथ संपर्क में रहता था। एक घटना का जिक्र करते हुए विशाल सक्सेना ने ईडी को बताया कि जून 2022 के आसपास महेश जोशी से उनके निवास पर मुलाकात हुई थी।
तब विशाल ने खुद का ट्रांसफर रुकवाने और जयपुर जिले में बनाए रखने का अनुरोध किया था। इस पर महेश जोशी ने विशाल सक्सेना को संजय बड़ाया और पीएचईडी के अधिशासी अभियंता संजय अग्रवाल से मिलने को कहा था। पूर्व मंत्री ने तब बताया था कि ये दोनों ही उनके स्टाफ, टेंडर, सतर्कता, नकदी आदि से संबंधित कार्यों काे देखते हैं।
विशाल सक्सेना ने ईडी के सामने स्वीकार किया कि उन्हें ठेका लेने वाली फर्मों मैसर्स श्री श्याम ट्यूबवेल कंपनी और मैसर्स श्री गणपति ट्यूबवेल कंपनी के ठेकेदारों के पास इरकॉन इंटरनेशनल कंपनी के फर्जी अनुभव प्रमाण पत्रों के बारे में जानकारी थी। लेकिन उन्होंने पूर्व मंत्री के करीबी संजय बड़ाया, रमेश चंद मीना और एक वरिष्ठ IAS अधिकारी के कहने पर ही इस मामले में पॉजिटिव रिपोर्ट दी थी। जिसके बाद कंपनियों को टेंडर जारी हुए थे।
विभाग के अधिकारियों ने शिकायत मिलने के बाद उसकी जांच करने की बजाय मामले को दबाने की कोशिश की।
मामला दबाने की दिल्ली तक नाकाम कोशिश, कर्मचारी को डराकर भगाया
श्री गणपति ट्यूबवेल कंपनी 5 और श्री श्याम ट्यूबवेल कंपनी 2 फर्जी कार्य अनुभव प्रमाण पत्र के जरिए पीएचईडी के टेंडरों में शामिल हुई थी। इनके फर्जी कार्य अनुभव प्रमाण पत्र का खुलासा उस समय हुआ जब इरकॉन इंटरनेशनल कंपनी के ऑफिस से पीएचईडी अधिकारियों के पास ईमेल पहुंचा।
इस ईमेल में दोनों कंपनियों के कार्य अनुभव प्रमाण पत्र को फर्जी बताते हुए दस्तावेज भेजे गए थे। इस पर गणपति ट्यूबवेल कंपनी के प्रोपराइटर महेश मित्तल के कहने पर मुकेश पाठक (इरकॉन इंटरनेशनल लिमिटेड में ऑफिस सहायक) इस मामले काे दबाने के लिए दिल्ली गया था। जहां उसने इरकॉन कंपनी के अधिकारियों को रिश्वत देकर मामला दबाने की नाकाम कोशिश की थी।
इससे पहले भी ठेकेदार और पीएचईडी के अधिकारियों ने इरकॉन कंपनी के कर्मचारी की शिकायत पर कार्रवाई करने की बजाय उसे डराकर भगा दिया था। 14 जून 2023 को एसीबी की कॉल रिकॉर्डिंग में इसका खुलासा हुआ है।
एसीबी के अनुसार ठेकेदार पदमचंद जैन ने कॉन्फ्रेंस कॉल की थी। इस दौरान पीएचईडी के डीडवाना में तत्कालीन अधीक्षण अभियंता एमपी सोनी ने गणपति ट्यूबवेल कंपनी के प्रोपराइटर महेश मित्तल को बताया,- ‘इरकॉन वाला आया था, भगा दिया सा## … को। लेकिन अब ये पत्र हमारे सेक्रेटरी साहब, एसई साहब और चीफ साहब के पास से होता हुआ आया है। इसलिए इसे अब हम नहीं रोक सकते हैं।’
घोटाले में पूर्व मंत्री से उच्च अधिकारियों तक की भूमिका
एसीबी का आरोप है कि महेश जोशी और संजय बड़ाया ठेकेदारों की ओर से पीएचईडी के विभिन्न वरिष्ठ अधिकारियों के साथ संपर्क करते थे। इन्हाेंने कुछ अन्य लोगों की मदद से टेंडर देने, बिलों के भुगतान, मैसर्स श्री श्याम ट्यूबवेल कंपनी और मैसर्स श्री गणपति ट्यूबवेल कंपनी के जाली कार्य अनुभव प्रमाण पत्र के मुद्दे को कवर करने के लिए अनुचित आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए मिलीभगत की थी, जो टेंडर देने का आधार था।
महेश जोशी पर ईडी की रिपोर्ट में साफ आरोप हैं कि वे टेंडर लेने वाली कंपनियों को बचाने के लिए किस तरह से वे संजय बड़ाया के साथ मिलकर अधिकारियों को प्राभावित करते थे।
पीएचईडी के कौन-कौन से उच्च अधिकारियों पर क्या आरोप :
- विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव सुधांशु अग्रवाल उस समय वित्तीय समिति के अध्यक्ष थे। इन पर विशाल सक्सेना ने संदिग्ध फर्मों को टेंडर जारी करने और इरकॉन के प्रमाण पत्र की सत्यापन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आरोप लगाया।
- उच्च अधिकारियों के लिए फंड एकत्रित करने की जिम्मेदारी अतिरिक्त मुख्य अभियंता सुधांशु दीक्षित के पास थी। जो फाइनेंशियल कमेटी के सदस्य थे और राजस्थान वाटर सप्लाई एवं सीवरेज मैनेजमेंट बोर्ड (RWSSMB) के सचिव थे।
- अधिशाषी अभियंता संजय अग्रवाल और स्पेशल प्रोजेक्ट के मुख्य अभियंता दिनेश गोयल साथ मिलकर बड़े प्रोजेक्ट को मैनेज करते थे।
- पूर्व मंत्री महेश जोशी के लिए संजय बड़ाया फंड एकत्रित करता था। संजय की मदद किशन गुप्ता, टेपन गुप्ता और नमन खंडेलवाल करते थे। इनके अलावा संजय अग्रवाल और दिनेश गोयल भी मदद करते थे।
तस्वीर एसीबी की कार्रवाई के बाद पदमचंद जैन के ऑफिस पर सर्च ऑपरेशन की है। जैन के ऑफिस में पीएचईडी विभाग सील और कई दस्तावेज मिले थे।
आरोप- रिश्वत की किस्तों ने रोकी फर्म पर कार्रवाई
एसीबी की एफआईआर के अनुसार पीएचईडी के जिन-जिन अधिकारियों पर आरोप है, उन्हें पदमचंद जैन और मुकेश मित्तल की फर्मों द्वारा टेंडर लेने में किए गए फर्जीवाड़े के बारे में पहले से पता था।
ठेकेदार की फर्मों के फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र की पूरी जानकारी थी। इस संबंध में वकील मनेश कुमार कलवानिया की ओर से 16 मार्च 2023 को तीन लीगल नोटिस भी भेजे गए थे। जिन पर कार्रवाई करने की बजाय अधिकारियों ने इन्हें दबा दिया।
तत्कालीन मुख्य अभियंता (जयपुर) रमेश चंद मीना, अतिरिक्त सीई (अजमेर) एमपी सोनी ने दोनों फर्मों के खिलाफ प्राप्त कानूनी नोटिस में लगे सभी आरोपों को भी नजरअंदाज कर दिया।
पीएचईडी के एसीएस सुबोध अग्रवाल को भी लीगल नोटिस मिला था। एसीएस ने इसे जांच के लिए मुख्य अभियंताओं के पास भेजा। लेकिन उन अधिकारियों ने आपत्तियों के बावजूद दोनों फर्मों को टेंडर दिए गए। 2021 में टेंडर के बाद से लगातार बिलों का भुगतान होता रहा।
2021 से ठेकेदार विभाग से टेंडर लेकर अधिकारियों को रिश्वत के पैसे दे रहे थे। जिससे वो कार्रवाई नहीं करें। अधिकारियों को रिश्वत किस्तों में मिल रही थी। हर बिल पास करने से पहले तय रिश्वत जाती थी। यही कारण है कि अधिकारी कार्रवाई नहीं कर रहे थे।
ऐसे हुआ था घोटाले का खुलासा, समझिए पूरी टाइमलाइन
गिरफ्तार अधिकारियों ने नहीं दिया ऑडियो सैंपल
जल जीवन मिशन में भ्रष्टाचार इस कदर व्याप्त था कि जब अगस्त 2023 में इसका खुलासा हुआ तो एसीबी के अधिकारियों के भी होश उड़ गए।
एसीबी की टीम को ठेकेदार के ऑफिस से सरकारी सील व मोहरें मिली। ठेकेदार के कर्मचारी ही बिल तैयार करते थे और पीएचईडी विभाग के अधिकारी केवल रिश्वत लेने और साइन करने आते थे।
एसीबी अधिकारियों ने बताया कि बिल तैयार होने के साथ ही ठेकेदार के ऑफिस से ही अप्रूव्ड हो रहे थे। एसीबी ने आरोपी ठेकेदार और अधिकारियों को सर्विलांस पर ले रखा था।
इस दौरान एसीबी ने इनकी बातचीत रिकॉर्ड की थी। जिसके आधार पर पूरे मामले का खुलासा हुआ। इस संबंध में एसीबी ने आरोपियों को ऑडियो सैंपल देने के लिए नोटिस भी दिया था लेकिन सभी ने सैंपल देने से मनाकर दिया।
अभी FIR दर्ज हुई है, आरोपों की पड़ताल बाकी
एसीबी के डीजीपी रवि प्रकाश मेहरड़ा ने बताया कि जल जीवन मिशन घोटाले में एसीबी की जांच के बाद ईडी ने भी अपनी डिटेल रिपोर्ट एसीबी को भेजी थी। इस रिपोर्ट में काफी डॉक्यूमेंट भी थे। इसके आधार पर एसीबी ने आगे जांच की।
जिसके आधार पर सरकार को 17 ए के अनुमोदन के लिए भेजा गया। सरकार की अनुमति मिलने पर 30 अक्टूबर को 22 लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज हुई है।
टेंडर के लिए क्या कंडीशन थी और किस को किस तरह फायदा पहुंचाया गया। ये सभी जांच के मुद्दे हैं। इस मामले में अगर कोई नया तथ्य या जानकारी सामने आती है तो उनके खिलाफ भी केस दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी।
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