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IRC के सेमिनार में मौजूद डॉ संजय श्रीवास्तव(पैनलिस्ट), आरके मेहरा (ENC), एसके निर्मल(महासचिव, इंडियन रोड कांग्रेस) और डॉ एम रेड्डी(प्रोफेसर IIT खड़गपुर)….बाएं से दाएं
भोपाल के रवीन्द्र भवन में रविवार को दो दिवसीय इंडियन रोड कांग्रेस के सेमीनार का समापन हुआ। रविवार को इस सेमीनार के समापन सत्र में जबलपुर पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर एसके वर्मा ने भारतीय सड़क कांग्रेस (IRC) के महासचिव एसके निर्मल से सड़कों के निर्माण म
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PWD के चीफ इंजीनियर बोले- डामर टेस्ट करने इंस्ट्रूमेंट नहीं
अंतिम सत्र के बाद प्रश्नोत्तर के दौरान पीडब्ल्यूडी जबलपुर के सीई एसके वर्मा ने IRC के महासचिव एसके निर्मल से कहा- डामर की क्वालिटी को लेकर बहुत समस्या है मुझे कहने में यह अच्छा नहीं लग रहा लेकिन, यह हकीकत है। इसको कैसे कंट्रोल करें? आपने मिनिस्ट्री से सर्कुलर निकाल दिया कि टेस्ट करके ठेकेदार एक्सपोर्ट वाला डामर उपयोग कर सकता है। लेकिन वह टेस्ट नहीं हो पाता क्योंकि उस टेस्ट के लिए हमारे पास कोई इंस्ट्रूमेंट ही नहीं है।
पीडब्ल्यूडी जबलपुर के चीफ इंजीनियर एसके वर्मा ने डामर में बडे़ रैकेट का मामला उठाया।
चीफ इंजीनियर एसके वर्मा ने कहा- सर, डामर को लेकर बड़े स्तर पर प्लानिंग करनी पड़ेगी। मैं छिंदवाड़ा में 2010-11 में था। वहां उस दौरान 27 रोड बनाए। सारे 27 रोड जिंदा हैं। केवल हम 5-6 साल में उसका 5 -6 साल में रिन्युअल कर रहे हैं। छिंदवाड़ा के ईई भी यहां बैठे हैं वे भी बता सकते हैं। आप जो कोड बनाते हैं अगर हम 70 प्रतिशत उसका पालन कर लेंगे तो इससे हमारा सरफेस रोड खराब नहीं होगा।
डामर की बहुत बड़ी समस्या है, उसमें बहुत बड़ा रैकेट कम कर रहा है और वह रैकेट इतना बड़ा है कि अगर हम टच करेंगे तो बहुत बड़ी प्रॉब्लम होगी इसलिए आप मिनिस्ट्री में मंत्री जी गडकरी साहब से बात करके इसमें कुछ सर्कुलर जारी करें कि डामर के ऊपर कंट्रोल हो जाए। एसके वर्मा, चीफ इंजीनियर, पीडब्ल्यूडी, जबलपुर
इंडियन रोड कांग्रेस के महासचिव बोले- ये हाई लेवल मैटर
चीफ इंजीनियर एसके वर्मा की बात सुनकर इंडियन रोड कांग्रेस(IRC) महासचिव एसके निर्मल ने कहा- बिटुमिन इम्पोर्ट अलाउड नहीं हैं तब ये प्रॉब्लम है। यानि सारा रिफाइनरी बिटुमिन है। करीब छह महीने पहले सेक्रेटरी ने मीटिंग बुलाई। मैं भी उसमें शामिल हुआ। उसमें रिफाइनरी के चैयरमैन, जनरल मैनेजर और मिनिस्ट्री के एडिशनल सेक्रेटरी भी शामिल हुए थे। उसमें यह बात हुई थी कि क्वालिटी को लेकर शिकायतें आ रहीं हैं। इसे कैसे अड्रेस किया जाए? तो उसमें साफ तौर पर यह निर्देश दिए थे कि आप जिस तरह से कैरोसिन, पेट्रोल, डीजल को कंट्रोल करते हो वैसे बिटुमिन (डामर) को कंट्रोल क्यों नहीं करते?
तो उस मीटिंग में रिफाइनरीज के रिप्रेंजेंटेटिव्स का कहना था कि हमारी जिम्मेदारी रिफाइनरी के गेट तक है। गेट के बाहर डामर का क्या हो रहा है उसकी हमारी जिम्मेदारी नहीं होती। गेट के बाहर जो ठेकेदार है हम आउटसोर्स कर देते हैं गेट के बाहर उसकी जिम्मेदारी होती है। वो क्या कर रहा है हमें मतलब नहीं। सेक्रेटरीज ने कहा था कि ये तर्क हम नहीं सुनना चाहेंगे। रिफाइनरीज के चेयरमैन से यह कमिटमेंट आना चाहिए। साइट तक डिलेवरी की पूरी जिम्मेदारी आपको लेना पडे़गी। उसकी जियो टैगिंग करो या जो करना है करो। लेकिन क्वालिटी की जिम्मेदारी लेना पडे़गी। ये मैटर हाइएस्ट लेवल पर चल रहा है। हम इम्पोर्ट को इसलिए अलाऊ नहीं कर रहे हैं क्योंकि क्वालिटी का इश्यु है। तो इंडियन रिफाइनरी से क्यों कंप्रोमाइज करें?
इंजीनियर्स को गधा कहने पर हुआ विरोध, मंच पर थे कई सीनियर अफसर सेमीनार के अंतिम सत्र में निर्माण क्षेत्र में नई तकनीकों पर पैनल डिस्कसन भी हुआ। इस चर्चा में आईआरसी के महासचिव एसके निर्मल, मध्य प्रदेश पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर-इन-चीफ (ENC)आरके मेहरा, एनएचएआई, भोपाल के क्षेत्रीय अधिकारी एसके सिंह, आईआईटी खड़गपुर के प्रोफेसर एमए रेड्डी और सीएसआईआर-सीआरआरआई, नई दिल्ली के डॉ. अभिषेक मित्तल, और मप्र की एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी के पूर्व अधिकारी डॉ संजय श्रीवास्तव जैसे विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। पैनल ने निर्माण में नई तकनीकों के विकास, उनकी संभावनाओं और उनसे जुड़े चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की। पैनल ने विशेष रूप से यह चर्चा की कि किस प्रकार इन तकनीकों का उपयोग करके निर्माण कार्यों की गुणवत्ता और गति को बेहतर किया जा सकता है।
सेमिनार के समापन से पहले की रविन्द्र भवन सभागार की बिजली गुल हो गई। उस दौरान मंच पर एक्सपर्ट अपनी बात रख रहे थे।
आईआईटी से डिजाइन अप्रूव कराने में छह महीने लग जाते हैं डॉ संजय श्रीवास्तव ने बतौर पेनलिस्ट टेक्निकल सेशन में अपना प्रेजेंटेशन दिया। डॉक्टर संजय श्रीवास्तव ने कहा आईआईटी के रिसर्च को लेकर कहा कि पढ़ाई छोड़कर रिसर्च में घुसा दिया है। जो बेसिक काम है आईआईटी का वो तो पढ़ाना है और बच्चों को निकालना है। उनसे प्रोजेक्ट प्रोविजन बनवा लो, सब कुछ वहीं से होगा तो फिर होगा कैसे? उनके पास चले जाओ तो एक डिजाइन अप्रूफ कराने में 6-6 महीने लग जाते हैं। फिर हम वहां से शिफ्ट कराने के लिए घूमते हैं कि इस आईआईटी को छोड़ दो, आप दूसरी जगह से करा दो एनआईटी से करा दो। यह प्रैक्टिकल प्रॉब्लम है। जिसके बारे में बात कर रहा हूं इसको हमें समझने की जरूरत है।
अब पढ़िए गधे का जिक्र आते ही कैसे हुआ विवाद सब चीज मॉनिटरिंग सपोर्ट से ही चल रही है। कैपेसिटी बिल्डिंग और ट्रेनिंग बहुत जरूरी है हर साल रेफरेशन कोर्स होने चाहिए। रेगुलर इंप्लीमेंटेशन हो जाए, ये हो जाएगा। बाकी जगह हो रहा है ब्यूरोक्रेट्स रेगुलर जा रहे हैं बाहर जा रहे हैं इंटरनेशनल लेवल पर घूम रहे हैं। मगर हमारे यहां सब गधे की तरह लगे हुए हैं सारे इंजीनियर्स… कि सुबह साइट पर चले जाओ शाम को वहां आ जाओ । एसके वर्मा- सर, गधा मत बोलिए, ये गलत है… संजय श्रीवास्तव – गधा हम्माली का मतलब.. एसके वर्मा- नहीं, ये गलत बात है। इसे आप वापस लीजिए। संजय श्रीवास्तव- सर, मैंने इसे वापस ले लिया। मगर हम एक टाइप ऑफ वर्किंग में बंध गए हैं। एक रेगुलर फैकल्टी वर्किंग है।
डॉ. संजय श्रीवास्तव सेमिनार के टेक्निकल सेशन में बतौर पैनलिस्ट शामिल हुए थे। उन्होंने कई तकनीकी विषयों पर अपना प्रजेंटेशन दिया। वे भोपाल की एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी में रह चुके हैं।
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