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इस बार मानसून राजस्थान पर खास मेहरबान नजर आया। औसत से ज्यादा बारिश के मामले में राज्य देश में नंबर 1 रहा। बाढ़ के लिए बदनाम बिहार और अरूणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में औसत से 27% कम बारिश हुई। वहीं राजस्थान में औसत (422.3MM) से 58 फीसदी ज्यादा (669.3 MM)
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राजस्थान में 116 साल में तीसरी बार ऐसी बारिश हुई है। इससे पहले 1917 में 844.2MM और 1908 में 682.2MM बारिश हुई थी। रिकॉर्ड बारिश के कारण 691 में से 392 बांध ओवर-फ्लो हो चुके हैं।
भास्कर एक्सप्लेनर में मौसम विज्ञान केन्द्र जयपुर के निदेशक राधेश्याम शर्मा बता रहे हैं मानसून का पूरा अपडेट। राजस्थान में रिकॉर्ड बारिश की वजह क्या रही ? फसलों पर इसका क्या प्रभाव होगा? क्या इस बार सर्दी भी नए रिकॉर्ड बनाएगी?
जैसलमेर में बारिश का 25 साल का रिकॉर्ड टूट गया। 1999 में 373 एमएम के मुकाबले इस बार 600 एमएम से ज्यादा बारिश हुई। यही वजह है कि सम के धोरों का नजारा इस बार ऐसा दिख रहा है।
क्या वजह रही कि राजस्थान में देश में सबसे ज्यादा बारिश हुई?
पहली वजह : ट्रफ लाइन
मानसून ट्रफ लाइन का लंबे समय तक नॉर्मल पॉजिशन में रहना अच्छी बारिश की सबसे बड़ी वजह रहा। ये न तो ज्यादा समय तक उत्तर दिशा में शिफ्ट हुई और न दक्षिण में। यही कारण रहा कि एंट्री के बाद से सितंबर के पहले सप्ताह तक मानसून एक्टिव फेज में रहा। मानसून ब्रेक जैसी कोई स्थिति नहीं बनी।
दूसरी वजह : बारिश का ट्रेंड
पिछले 10 से 15 सालों में बारिश का ट्रेंड चेंज हुआ है। जिन एरिया (पूर्वोत्तर भारत के राज्यों) में पहले ज्यादा बारिश होती थी, वहां आंकड़ा घटा है। वहीं जिन एरिया (मध्य और पश्चिमी भारत) में कम पानी बरसता था, वहां मानसून में ज्यादा बरसात होने लगी है।
तीसरी वजह : बैक टू बैक सिस्टम बने
बैक टू बैक सिस्टम बनना और उनका राजस्थान तक आना मानसून में रिकॉर्ड तोड़ बारिश की बड़ी वजह रहा। बंगाल की खाड़ी में इस सीजन में कई हल्के और तेज प्रभाव वाले लो प्रेशर सिस्टम बने। ये सिस्टम मध्य प्रदेश, राजस्थान की सीमा तक पहुंचे। जुलाई-अगस्त में एक के बाद एक 7 से ज्यादा छोटे-बड़े सिस्टम बने। इसके अलावा इस बार बंगाल की खाड़ी के साथ-साथ अरब सागर की मानसून ब्रांच भी एक्टिव थी। जिससे लगातार मॉइश्चर राज्य को मिल रहा था।
ट्रफ लाइन क्या है और बारिश के लिए इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?
आसान भाषा में कहें तो मानसून ट्रफ लाइन एक निम्न दबाव की रेखा (लो प्रेशर लाइन) होती है जो मानसून के दौरान उत्तर-पश्चिम भारत से लेकर बंगाल की खाड़ी तक फैली होती है। इसका मुख्य काम हवा के निम्न दबाव वाले क्षेत्रों को जोड़ना है। यह मानसून की बारिश का प्रमुख कारण होती है। इस सिस्टम के बीच और उसके आसपास के एरिया में ही मानसून के बादल बनते हैं और बारिश करते हैं।
क्या राजस्थान में पहली बार ऐसी बारिश हुई है?
राजस्थान में 2011 से लेकर लगातार 12 साल में एक भी सीजन में सामान्य से कम बारिश नहीं हुई है। इन 12 सालों में भी सबसे कम बरसात 2018 में दर्ज हुई थी। तब राजस्थान में महज 393 एमएम ही पानी बरसा था। उस साल माइनस 6 प्रतिशत बरसात राजस्थान में दर्ज की गई थी। वहीं सबसे ज्यादा 2011 में 590 एमएम बरसात दर्ज की गई थी। तब यह बारिश 41 प्रतिशत ज्यादा थी।
रिकॉर्ड बारिश से बांधों को कितना फायदा मिला?
राजस्थान में भारी बारिश के कारण इस बार 57 फीसदी बांध ओवर-फ्लो होकर छलक गए हैं। राजस्थान में 691 बांध में से 392 बांध ओवर-फ्लो हो चुके हैं। 192 बांध आंशिक तौर पर भरे हैं। 107 बांध अब भी सूखे है, जिनमें पानी नहीं है।
राजस्थान में इन 691 बांधों में पानी स्टोरेज की क्षमता 12 हजार 900.82 मिलियन क्यूबिक मीटर है, जिसमें से 11 हजार 110.87 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी का स्टोरेज हो चुका है, जो कुल क्षमता का 72.80 फीसदी है।
22 बड़े ऐसे बांध जिनकी स्टोरेज क्षमता (प्रत्येक बांध की) 4.25 मिलियन क्यूबिक मीटर से ज्यादा है, उनमें से केवल 3 ही बांध ऐसे हैं जो खाली हैं। वहीं 13 बांध फुल है और शेष 6 बांधों में जलस्तर 50 से लेकर 90 फीसदी तक है।
राजस्थान में कहीं कम, कहीं ज्यादा बारिश की वजह?
राजस्थान में इस बार झालावाड़ में औसत से कम बारिश हुई। झालावाड़ में औसत बारिश का आंकड़ा 857MM रहता है। इस सीजन में अब तक 815MM ही पानी बरसा। वहीं दौसा, धौलपुर, टोंक, करौली और जैसलमेर में औसत से दोगुना पानी बरसा।
मौसम विशेषज्ञ पूर्वी जयपुर, भरतपुर, अजमेर संभाग में इस बार अच्छी बारिश का कारण बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसून की ब्रांच का लान्ग टर्म एक्टिव रहना मान रहे हैं।
इस बार बारिश के कितने दिन रहे?
राजस्थान में इस सीजन मानसून के एक्टिव-डे भी औसत से कहीं ज्यादा रहे। इस बार मानसून की एंट्री तय समय पर यानी 25 जून को हुई। तब से 17 सितंबर तक यानी 85 दिन में से 58 दिन मानसून एक्टिव मोड पर रहा। एक्टिव मोड का मतलब इस दौरान औसत से ज्यादा बारिश हुई। वहीं रेनी-डे की बात करें तो मानसून के आने से लेकर 13 सितंबर तक एक भी दिन ऐसा नहीं रहा जब राजस्थान के किसी भी हिस्से में बारिश नहीं हुई हो।
बिहार, असम, अरूणाचल जैसे राज्यों में कम बारिश की वजह?
देश में इस बार बिहार, असम, अरूणाचल प्रदेश समेत नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में बारिश औसत से कम हुई। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि यहां बारिश कम होने के पीछे बड़ा कारण मानसून ट्रफ मूवमेंट और क्लाइमेंट चेंज ही है।
ये ट्रफ जब उत्तर की तरफ शिफ्ट होती है तो हिमाचल, उत्तराखंड, बिहार, जम्मू-कश्मीर, पंजाब समेत हिमालय की तलहटी वाले एरिया में भारी बरसात होती है। वहीं जब ये लाइन दक्षिण की तरफ शिफ्ट होती है तो दक्षिणी राजस्थान, गुजरात, दक्षिणी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उड़ीसा राज्यों में भारी बारिश होती है।
क्या रिकॉर्ड तोड़ बारिश हाड़ गलाने वाले सर्दी की वजह बनेगी?
सिर्फ ज्यादा बारिश के आंकड़े देखकर ये अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि राजस्थान में इस बार सर्दी भी रिकॉर्ड तोड़ होगी। सर्दी के ज्यादा या कम होने के पीछे दूसरे फैक्टर काम करते हैं। नवंबर से लेकर फरवरी तक आने वाले वेस्टर्न डिर्स्टबेंस की फ्रीक्वेंसी, जेट विंड, अल-नीनो, ला-नीना कंडीशन समेत अन्य फैक्टर हैं, जो सर्दी की दिशा तय करते हैं।
बारिश का फसलों पर क्या असर रहा और आगे क्या असर रहेगा?
खरीफ में नुकसान : तेज बारिश से खरीफ की फसल करने वालों को नुकसान हुआ। पूरे प्रदेश में इस बार खरीफ का रकबा भी पिछले सीजन की तुलना में कम रहा। साल 2023 में पूरे प्रदेश में खरीफ का रकबा करीब 163 लाख हैक्टेयर का था, जो इस सीजन घटकर 159.80 लाख हैक्टेयर का ही रह गया।
रबी में फायदा : औसत से ज्यादा बरसात का फायदा आगामी सीजन में रबी की फसल पर देखने को मिलेगा। जमीन में पर्याप्त मात्रा में नमी होने से इस बार किसान बुआई समय से पहले कर सकेंगे। छोटे-बड़े बांध, एनीकट, तालाब फुल होने से सिंचाई के लिए भी पर्याप्त पानी है।
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