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मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में एक 55 साल के किसान हल्दी की खेती कर रहे हैं। 30 साल पहले ट्रायल के तौर पर थोड़ी सी जमीन में शुरू की थी। आज करीब 2 बीघा में हर साल तीन लाख रुपए की कमाई हो रही है। इनकी सफलता देख आसपास के किसान भी हल्दी की खेती के बारे में
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दैनिक भास्कर की ‘स्मार्ट किसान’ सीरीज में इस बार श्योपुर जिले के बगदरी गांव के रहने वाले किसान हरभजन सिंह से मिलवाते हैं। हरभजन किसान फैमिली से ताल्लुक रखते हैं। खेती ही परिवार की आमदनी का जरिया रहा है। हल्दी के अलावा एक बीघा में कटहल और पपीता की भी खेती कर रहे हैं। इससे पहले गुलाब और केला भी लगाए थे।
हरभजन सिंह से जानते हैं कि कैसे शुरू की हल्दी की खेती
पहले मैं भी परंपरागत खेती करता था। धान, गेहूं और बाजरा, मक्का जैसे फसल उगाते थे। इसमें लागत बढ़ती जा रही थी। इनकम घटती जा रही है। हर साल आपदा और फसलों में रोगों से हो रहे नुकसान से भी परेशान था। फिर खेती बदलने के बारे में सोचने लगा। इसी बीच, रिश्तेदार के यहां उत्तरप्रदेश जाना हुआ। यहां पहली बार हल्दी की खेती देखी। फिर मैं खेती के बारे में जानकारी ली। इसके बाद हल्दी की खेती करने की ठानी। कुछ दिन वहीं ट्रेनिंग ली।
श्योपुर लौटकर ट्रायल के तौर पर कम जमीन में खेती शुरू की। पैदावार अच्छी होने लगी, तो धीरे-धीरे खेती बढ़ाने लगा। अब मैं करीब दो बीघा में हल्दी की खेती कर रहा हूं। इसमें 80 से 90 क्विंटल गीली हल्दी निकल जाती है। सुखाने के बाद 20 से 30 क्विंटल रह जाती है। इसे लोकल मार्केट में 150 से 200 रुपए किलो तक बेच देता हूं। इसमें सभी खर्चे काटकर करीब तीन लाख रुपए का प्रॉफिट हो रहा है। इसके अलावा, कटहल और पपीता से भी आमदनी हो जाती है। मैं अपने खेतों में मजदूरों के साथ-साथ खुद भी काम करता हूं।
न रोग लगता, न नुकसान का डर
हल्दी में बाकी फसलों की तरह नुकसान का खतरा नहीं होता। इसमें न तो बहुत रोग लगता है, न ही मौसम का डर होता है। हल्दी की फसल में एक खूबी यह भी है कि इसे आंधी, तूफान और जानवरों से कोई नुकसान नहीं होता। साधारण बारिश फसल को खराब नहीं करती। हालांकि, अधिक बारिश के कारण फसल में फंगस जरूर लग जाती है।
क्यूरिंग और पॉलिशिंग के बाद मिलता है अच्छा भाव
खुदाई के बाद हल्दी में लगी मिट्टी को साफ किया जाता है। इसके बाद पानी में उबालकर धूप में सुखाया जाता है। हल्दी का अच्छा भाव मिले, इसके लिए क्यूरिंग और पॉलिशिंग का भी काम किया जाता है। क्यूरिंग करने के लिए हल्दी को साफ करने के बाद इसे उबालने के लिए रख दिया जाता है। उबालने के बाद हल्दी को 15 दिन तक सुखाया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद हल्दी पॉलिश के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद हल्दी को पॉलिश किया जा सकता है या उसका पाउडर बनाकर बेचा जा सकता है।
जून-जुलाई में करें खेती की शुरुआत
हल्दी की खेती के लिए आम तौर पर जून-जुलाई का महीना सही होता है। अगर सिंचाई की व्यवस्था है तो अप्रैल से भी इसकी शुरुआत कर सकते हैं। इसके लिए किसी खास मिट्टी की जरूरत नहीं होती। मुलायम और भुरभुरी मिट्टी में इसकी खेती बेहतर तरीके से होती है। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि खेत में बहुत ज्यादा पानी या जलजमाव की स्थिति न हो।
20-25 दिन की अंतराल पर सिंचाई करें
बीज की बुआई समय ध्यान रखना चाहिए कि बीज अच्छी वैराइटी का हो और कम से कम 7 सेमी लंबा हो। हर 20-25 दिन की अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। मौसम ठंडा है या नमी वाली जगह पर आपने खेती की है तो फिर सिंचाई की जरूरत कम होगी।
हल्दी वैराइटी
हल्दी की कई वैराइटी होती है। किसी का कलर अलग होता है, तो किसी का साइज कम-ज्यादा होता है। वैराइटी के आधार पर प्रोडक्शन और क्वालिटी में भी फर्क पड़ता है।
आइए कुछ प्रमुख वैराइटी को जानते हैं…
सुगंधम: हल्दी की ये किस्म 200 से 210 दिन में तैयार हो जाती है। इसका आकार थोड़ा लंबा होता है और रंग हल्का पीला होता है। प्रति एकड़ 80 से 90 क्विंटल का प्रोडक्शन होता है।
पीतांबर: हल्दी की इस वैराइटी को (CIMAP) ने डेवलप किया है। यह बाकी हल्दी की तुलना में पहले तैयार हो जाती है। यानी 5-6 महीने का वक्त लगता है। एक एकड़ में 270 क्विंटल तक उपज होती है।
सुदर्शन: हल्दी की ये वैराइटी आकार में छोटी होती है, लेकिन दिखने में खूबसूरत होती है। 230 दिन में फसल पक कर तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ 110 से 115 क्विंटल की पैदावार होती है।
सोरमा: इसका रंग सबसे अलग होता है। हल्के नारंगी रंग वाली हल्दी की ये फसल 210 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ प्रोडक्शन 80 से 90 क्विंटल होता है।
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