[ad_1]
जेएमएम से बगावत करने वाले नेताओं में दो ही सफल हुए हैं। अब देखना होगा कि चंपाई सोरेन के हिस्से क्या आता है।
कोल्हान टाइगर के नाम से मशहूर चंपाई सोरेन के भाजपा में शामिल होने की चर्चा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है। जेएमएम राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है। राज्य में यह पार्टी किसी भी दूसरी राष्ट्रीय पार्टिंयों पर अपना प्रभाव
.
भाजपा हो या कांग्रेस, झारखंड में सरकार बनाती है तो उसे जेएमएम का सहयोग लेना ही होगा। बात संथाल की हो या फिर कोल्हान की, जेएमएम आदिवासियों पर खासी पकड़ रखती है। बीते विधानसभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि कैसे यह पार्टी, मजबूत पार्टी है।
हालांकि चंपाई सोरेन प्रकरण ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के अंदर की खींचतान और अन्तर्द्वन्द की राजनीति को सार्वजनिक कर दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि 50 साल पुरानी इस पार्टी में क्या पहली बार केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं। क्या पहली बार ऐसा हो रहा है, जब पार्टी का कोई बड़ा नेता अलग होने जा रहा है।
इसका जवाब है – नहीं
आलम यह रहा है कि जेएमएम को छोड़ कर जाने वाले नेता फिर कभी उस कद को नहीं पा सके, जो उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा में मिला था। कोल्हान से आने वाले विद्युत वरण महतो और अर्जुन मुंडा अपवाद हैं। शायद, यही वजह रही कि कई नेताओं ने घर वापस की। जबकि हाल में पार्टी छोड़ भाजपा गई सीता सोरेन सांसद तो नहीं बनीं पर विधायकी जरूर चली गई।
इस रिपोर्ट में हम ऐसे ही कुछ नेताओं को जानते हैं…
कृष्णा मार्डी ने बना ली थी अलग पार्टी
झारखंड मुक्ति मोर्चा के बड़े नेता में एक थे कोल्हान से आने वाले कृष्णा मार्डी। जेएमएम में साल 1981 से जुड़े। ये सरायकेला से दो बार के विधायक और सिंहभूम लोकसभा से साल 1991 में जेएमएम से सांसद भी हुए। इन्होंने पार्टी से सीधी बगावत की थी। फिर जेएमएम के नौ विधायकों को साथ ले साल 1992 झामुमो से इस्तीफा दिया और झामुमो मार्डी गुट बनाया। लेकिन यह गुट लंबा नहीं चला सके और अंतत: 1996 में झामुमो में ही अपने गुट का विलय कर दिया। इसके बाद साल 2006 में भाजपा में शामिल हुए। दो साल उसे छोड़ साल 2008 में आजसू आए। फिर इसे छोड़ 2013 में कांग्रेस में शामिल हो गए। साल 2014 कांग्रेस को भी इन्होंने बाय-बाय कर दिया। बीच में साल 2015 में झामुमो उलगुलान संगठन बनाया, लेकिन उसे भी ज्यादा लंबा नहीं चला सके।
विधायकी की हैट्रिक लगा, जेएमएम छोड़ जेवीएम गए
झारखंड मुक्ति मोर्चा से साल 1995 में पहली बार जुगसलाई सुरक्षित सीट से विधायक चुने गए। 2000 में झामुमो से दोबारा विधायक बने। 2005 में जीत की हैट्रिक लगाई। 2009 के विस चुनाव में झामुमो ने चौथी बार जुगसलाई से उतारा, लेकिन आजसू प्रत्याशी रामचंद्र सहिस ने उन्हें हरा दिया। इसके बाद दुलाल झामुमो छोड़कर झाविमो में चले गए। 2014 विधानसभा चुनाव से पहले समरेश सिंह के नेतृत्व में दुलाल भुइयां भाजपा में शामिल हुए, लेकिन जुगसलाई सीट गठबंधन के तहत आजसू के खाते में चली गई और कांग्रेस में चले गए। जुगसलाई से कांग्रेस के टिकट पर 2014 में चुनाव लड़े, मगर इस बार भी हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद साल 2019 में बसपा का दामन थामा।
जेएमएम से करियर शुरू किए, भाजपा में जा चुनाव हारा
जेएमएम से राजनीति करियर की शुरुआत करने वाले युवा नेता कुणाल षाड़ंगी अब एक बार फिर जेएमएम का दामन थाम सकते हैं। हालांकि उन्होंने पहली बार बहरागोड़ा विधानसभा से विधायकी का स्वाद साल 2014 की विधानसभा चुनाव में जेएमएम की टिकट पर ही चखा था। इसके बाद साल 2019 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने उन्हें बहरागोड़ा विधानसभा से ही टिकट दिया, पर समीर मोहंती से चुनाव हार गए।
शिबू सोरेन का दाहिना हाथ थे सूरज मंडल
युवा कांग्रेस से राजनीति का सफर शुरू करने वाले सूरज मंडल, जेएमएम सुप्रिमो शिबू सोरेन का दाहिना हाथ कहे जाते थे। उन्होंने नीतियों का विरोध कर पार्टी से अलग हो गए थे। जेएमएम छोड़ने के बाद अपनी अलग पार्टी झारखंड विकास दल बनाया, लेकिन सफलता नहीं मिली। फिलहाल वह भाजपा का दाम थाम, राजनीति की दुकान चला रहे हैं। वे पहली बार जेएमएम के टिकट पर साल 1991 में गोड्डा लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए थे। झारखंड अलग राज्य निर्माण के पूर्व झारखंड क्षेत्रीय परिषद की कमेटी में सूरज मंडल उपाध्यक्ष भी रहे।
जेएमएम से सांसद बने, भाजपा जाते ही सब गंवाए
हेमलाल मुर्मू की पहचान 2014 तक झामुमो के कद्दवार नेता के रूप में रही। वे बरहेट विधानसभा सीट से पहली बार 1990 में झामुमो के टिकट पर चुनाव जीकर आये। इस सीट पर 1995, 2000 और 2009 में भी उनका कब्जा रहा। झामुमो कोटे से राज्य सरकार में 2 बार मंत्री रहे। 2004 में वे झामुमो के टिकट पर राजमहल सीट से सांसद भी चुने गए। भाजपा में शामिल होने के बाद हेमलाल ने राजमहल लोकसभा सीट से 2014 व 2019 में दो बार पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा दोनों बार चुनाव हार गए।
झामुमो से अलग होकर सिर्फ दो हुए सफल
झारखंड मुक्ति मोर्चा से बगावत करने वालों की लिस्ट में तो कई नाम हैं पर पार्टी से अलग होने के बाद अपनी साख बनाए रखने वाले तीन ही नेता है। इसमें दो कोल्हान से आते हैं। इसमें पहला नाम अर्जुन मुंडा का है। इनका भी राजनीतिक सफर झारखंड मुक्ति मोर्चा से शुरू हुआ और फिर भाजपा में शामिल होकर तीन-तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। केंद्र में मंत्री पद भी संभाला।
इसके बाद दूसरा नाम जमशेदपुर से सांसद विद्युतवरण महतो का है। इन्होंने भी झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलग होकर भी अपनी पहचान कायम रखी। लगातार तीसरी बार 2024 में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। कड़ी में तीसरा नाम जयप्रकाश भाई पटेल का जोड़ा जा सकता है। जिन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलग होकर भाजपा में गए और मांडू से विधानसभा चुनाव जीता।
[ad_2]
Source link