[ad_1]
इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. रविंद्र सिंह राव ने बिना सर्जरी, इंटरवेंशन के जरिए ही उनकी ब्लॉक नसों की कॉम्प्लेक्स एंजियोप्लास्टी की और टीएमवीआर तकनीक से माइट्रल वॉल्व भी बदल दिया।
करीब 10 साल पहले हार्ट की नसों में ब्लॉकेज और माइट्रल वॉल्व के खराब होने पर उनकी बायपास और वॉल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी हुई थी। पिछले एक साल से उन्हें सीने में भारीपन, सांस फूलने जैसे लक्षण सामने आ रहे थे और घबराहट से उनकी रात बैठे हुए ही बीत जाती थी। जब
.
डॉ. रविंद्र सिंह राव ने बताया कि हार्ट फेल्योर के कारण उन्हें सांस से जुड़े लक्षण सामने आ रहे थे।
डॉ. रविंद्र सिंह राव ने बताया कि हार्ट फेल्योर के कारण उन्हें सांस से जुड़े लक्षण सामने आ रहे थे। काफी समय से वे चैन से सो तक नहीं पाए थे। पिछले 6 महीने में उन्हें कई बार अस्पताल में भी भर्ती होना पड़ा। जब उनकी एक जांच की गई तो उसमें सामने आया कि उनका माइट्रल वाल्व खराब हो गया था जिसके कारण उन्हें चलने पर सांस फूलने एवं सीने में भारीपन महसूस होता था। इसे दवाइयां से नियंत्रित करने की कोशिश की गई लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ और 70 साल की उम्र में दोबारा सर्जरी करने में भी कई जोखिम थे। ऐसे में हमने निर्णय लिया कि नॉन सर्जिकल प्रोसीजर के जरिए ही उनका इलाज किया जाएगा।
तीनों बायपास ग्राफ्ट भी ब्लॉक मिले
जब मरीज की एंजियोग्राफी की गई तो उसमें भी 10 साल पहले की गई सर्जरी के दौरान लगाए तीनों बायपास ग्राफ्ट भी ब्लॉक मिले। ऐसे में बंद बाईपास ग्राफ्ट और खराब वॉल्व को एक साथ ठीक करना बहुत चुनौती पूर्ण कार्य था। इसके लिए टीएमवीआर (ट्रांसकैथेटर माइट्रल वॉल्व रिप्लेसमेंट) तकनीक से उनके खराब वॉल्व को जांघ की नस के जरिए पहुंच कर नया कृत्रिम वॉल्व इंप्लांट कर दिया गया। डॉ. रविंद्र सिंह राव ने बताया कि नए वॉल्व को इंप्लांट करने के लिए पुराने सर्जिकल माइट्रल वॉल्व को बैलून से फ्रैक्चर करके नया बड़ा वॉल लगाया गया। उन्होंने जानकारी दी कि मरीज को जितना बड़ा वॉल्व लगाया जाता है वह उतना ही लंबे समय तक चलता है।
पुरानी प्राकृतिक नसों में ही की एंजियोप्लास्टी
इंप्लांट होने के बाद वॉल्व तुरंत काम करने लगा और लंग्स में प्रेशर कम होने लगा। इससे मरीज को सांस में काफी आराम आया। साथ ही बंद हुए बायपास ग्राफ्ट को आइवस गाइड कॉम्प्लेक्स एंजियोप्लास्टी से ठीक किया गया। डॉ. रविंद्र सिंह राव ने बताया कि पूर्व में हुई बाईपास सर्जरी के ग्राफ्ट अगर बंद हो जाते हैं तो एंजियोप्लास्टी में प्राकृतिक नसों को ही स्टेंट इंप्लांट कर खोला जाता है। 6 महीने बाद मरीज पहली बार रात को बिना किसी परेशानी के सो पाए। प्रोसीजर के तीन दिन बाद ही मरीज ने बिना किसी समस्या के 30 मिनट वॉकिंग की इस दौरान उनकी सांस नहीं फूली।
डॉ. राव ने जानकारी दी कि अब पूर्व में की गई बायपास सर्जरी के बाद दोबारा समस्या होती है या वॉल्व भी दोबारा खराब होता है तो उन्हें इंटरवेंशन से ठीक किया जा सकता है। इससे मरीज को सर्जरी के दौरान होने वाले जोखिमों से बचाया जा सकता है। साथ ही प्रोसीजर के बाद मरीज जल्दी अपने सामान्य जीवन में लौट सकता है। उन्होंने कहा कि इस तरह का इलाज ऐसे मरीजों के लिए वरदान है जिन्हें ठीक होने की किसी तरह की आशा नहीं थी।
[ad_2]
Source link