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नई दिल्ली5 मिनट पहले
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सुप्रीम कोर्ट ने NOTA से जुड़ी एक याचिका पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। याचिका शिव खेड़ा ने लगाई, जिसमें आयोग को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि यदि NOTA (नन ऑफ द अबव) को किसी कैंडिडेट से ज्यादा वोट मिलते हैं, तो उस सीट पर हुए चुनाव को रद्द कर दिया जाए, साथ ही नए सिरे से चुनाव कराए जाएं।
याचिका में यह नियम बनाने की भी मांग की गई है कि NOTA से कम वोट पाने वाले उम्मीदवारों को 5 साल के लिए सभी चुनाव लड़ने से बैन कर दिया जाए। साथ ही नोटा को एक काल्पनिक उम्मीदवार के तौर पर देखा जाए।
याचिका सूरत में 22 अप्रैल को BJP कैंडिडेट मुकेश दलाल की निर्विरोध जीत के संदर्भ में दायर की गई है। दरअसल यहां से कांग्रेस कैंडिडेट नीलेश कुंभाणी का पर्चा रद्द हो गया था। उनके पर्चे में गवाहों के नाम और हस्ताक्षर में गड़बड़ी थी। इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस समेत 10 प्रत्याशी मैदान में थे।
21 अप्रैल को 7 निर्दलीय कैंडिडेट्स ने अपना नामांकन वापस ले लिया। बीएसपी कैंडिडेट प्यारे लाल भारती ही बचे थे, जिन्होंने सोमवार 22 अप्रैल को पर्चा वापस ले लिया। इस तरह मुकेश दलाल निर्विरोध चुने गए।
निर्वाचन अधिकारी ने 22 अप्रैल को को मुकेश दलाल को जीत का सर्टिफिकेट सौंप दिया था।
क्या है नन ऑफ द अबव (NOTA)
नन ऑफ द अबव (NOTA) एक वोटिंग ऑप्शन है, जिसे वोटिंग सिस्टम में सभी उम्मीदवारों पर अस्वीकृति दिखाने के लिए डिजाइन किया गया है। इसे भारत में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के फैसले में 2013 के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद पेश किया गया था। हालांकि, भारत में नोटा राइट टू रिजेक्ट के लिए नहीं दिया गया है। क्योंकि सबसे ज्यादा वोट पाने वाला उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है, चाहे नोटा वोटों की संख्या कितनी भी हो।
नोटा का मौजूदा पैटर्न
देश में होने वाले तीनों लेयर के चुनावों में नोटा वोटिंग के आंकड़े अभी भी कम हैं। 2013 में चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में नोटा ने कुल मतदान का 1.85% हिस्सा बनाया। 2014 में आठ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में यह घटकर 0.95% रह गया।
2015 में दिल्ली और बिहार में हुए विधानसभा चुनावों में यह बढ़कर 2.02% हो गया। दिल्ली में मात्र 0.40% मतदान हुआ, जबकि बिहार में 2.49% नोटा वोट पड़े, जो विधानसभा चुनावों में किसी भी राज्य में अब तक डाले गए सबसे ज्यादा नोटा वोट हैं।
2013 से अब तक हुए लोकसभा चुनावों में 261 विधानसभा क्षेत्रों और 24 निर्वाचन क्षेत्रों में डाले गए नोटा वोटों की संख्या जीत के अंतर से ज्यादा थी। इसलिए इन निर्वाचन क्षेत्रों में नोटा वोटों ने चुनाव परिणामों पर असर डाला
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