विवाह एक संस्कार है जो मनुष्य को संयमित रहते हुए अपने दांपत्य जीवन के उत्तरदायित्व को पूर्ण करने में सहायक होता है। विवाह का तात्पर्य विधि पूर्वक जीवन साथी के साथ उत्तदायित्व का निर्वहन करना और दांपत्य जीवन की मर्यादाओं का पालन करना है। हिंदू धर्मशास्त्रों में पत्नी को अर्धांगिनी माना गया है, जो यह दर्शाता है कि विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक बंधन भी है। किंतु वर्तमान समय में मूल्यों के पतन के कारण वैवाहिक संस्था की पवित्रता प्रभावित होती दिख रही है। समाज में बढ़ती स्वार्थपरता और नैतिक मूल्यों के ह्रास के कारण कतिपय लोगों ने विवाह को एक शोषण का माध्यम मात्र बना दिया गया है, जिससे आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक शोषण की घटनाएँ सामने आ रही हैं।
सोनभद्र जनपद में घटी घटना इसी नैतिक पतन का एक ज्वलंत उदाहरण है। जिस व्यक्ति ने छलपूर्वक विवाह किए, महिलाओं को धोखा दिया और उनके साथ संतानोत्पत्ति भी हुई, उसने न केवल इन महिलाओं के साथ विश्वासघात किया बल्कि उनके पूरे परिवार को भी सामाजिक अपमान और मानसिक पीड़ा में धकेल दिया। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि समाज में ऐसे अपराधी सक्रिय हैं जो विवाह जैसे पवित्र संबंध को अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए एक साधन के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। इस तरह की घटनाएँ केवल व्यक्तिगत स्तर पर हानिप्रद नहीं होतीं, बल्कि यह संपूर्ण समाज की नैतिकता और पारिवारिक संरचना को भी कमजोर करती हैं।
यह अपराध महज एक धोखाधड़ी का मामला नहीं है बल्कि यह महिलाओं के अधिकारों, उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा और उनके जीवन पर गहरा आघात करने वाला अपराध है। यह अभियुक्त पेशेवर अपराधी प्रतीत होता है जिसने कई परिवारों को छला और निर्दोष संतानों को सामाजिक रूप से अपमानजनक स्थिति में डाल दिया। महिलाओं की मानसिक, आर्थिक, सामाजिक और प्रतिष्ठात्मक क्षति की भरपाई करना संभव नहीं है। इस तरह के अपराधों पर रोक लगाने के लिए केवल मौजूदा कानूनों का सहारा लेना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि कठोर दंडात्मक प्रावधानों की आवश्यकता है।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 में विभिन्न धाराओं के तहत इस अपराध को संबोधित किया जा सकता है। धारा 319 (2) के अंतर्गत यह धोखाधड़ी का स्पष्ट मामला है, जिसमें आरोपी प्रतिरूपण द्वारा छल किये और महिलाओं को आर्थिक एवं भावनात्मक रूप से क्षति पहुँचाई। धारा 318 (4) के अंतर्गत यदि इस व्यक्ति ने झूठे वादों के आधार पर महिलाओं से धन प्राप्त किए, तो इसे गंभीर अपराध माना जाएगा। इसी प्रकार, धारा 316 (2) के तहत यदि अभियुक्त ने आर्थिक लाभप्राप्त करने के लिए महिलाओं का उपयोग किया और उनका विश्वास भंग किया, तो इसे आपराधिक विश्वासघात की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त, धारा 351 (2) इस मामले में भी लागू होती है, क्योंकि महिलाओं को मानसिक एवं सामाजिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है और उन्हें धमकाया गया है। इसके अलावा, बहुविवाह पर रोक लगाने वाली धारा 82 और छलपूर्वक विवाह करने से संबंधित धारा 83 भी इस मामले में प्रासंगिक हैं।

किन्तु, यह स्पष्ट है कि वर्तमान विधिक प्रावधान इस प्रकार की जघन्य घटनाओं को नियंत्रित करने में पूरी तरह सक्षम नहीं हैं। भारतीय न्याय संहिता में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, जिसके अंतर्गत इस प्रकार के अपराध में संलिप्त अभियुक्त को मृत्युदंड दिया जा सके। यह अत्यंत आवश्यक है कि इस प्रकार के अपराधियों को दंडित करने के लिए दंड की मात्रा में वृद्धि की जाए। जब तक ऐसे अपराधियों को कठोरतम दंड नहीं मिलेगा, तब तक समाज में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी। इस मामले में, मृत्युदंड जैसी कठोर सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए, जिससे यह दंडादेश समाज के लिए नजीर बने और अन्य अपराधियों को इस तरह के कृत्यों से पहले गंभीरता से सोचने पर मजबूर करे।
न्यायिक दृष्टि से इस समस्या के समाधान हेतु कानून में संशोधन की आवश्यकता है। सर्वोच्च न्यायालय के सीमा बनाम अश्विनी कुमार मामले में दिए गए निर्देशों के अनुसार विवाह पंजीकरण को अनिवार्य किया जाना चाहिए। यदि विवाह पंजीकरण की प्रक्रिया को सख्त कर दिया जाए और इसे डिजिटल माध्यम से जोड़ दिया जाए, तो इस प्रकार के अपराधों की संभावना को काफी हद तक कम किया जा सकता है। सभी विवाहों की ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया लागू करने से किसी भी व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति की पुष्टि आसानी से की जा सकेगी, जिससे कोई भी व्यक्ति धोखाधड़ी करके कई विवाह न कर सके। विवाह से संबंधित सभी दस्तावेज ऑनलाइन पंजीकृत किए जाएं, जिससे किसी भी व्यक्ति के वैवाहिक स्थिति की तुरंत पुष्टि की जा सके। कई बार लोग बिना जांच-पड़ताल किए विवाह कर लेते हैं, जिससे धोखाधड़ी के मामलों में वृद्धि होती है। सरकार को एक ऐसा डेटाबेस तैयार करना चाहिए, जहां विवाह संबंधी जानकारी सुरक्षित रूप से दर्ज हो और जरूरत पड़ने पर न्यायिक या प्रशासनिक संस्थाएँ इसकी जांच कर सकें।
इसके अतिरिक्त, समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। परिवारों को विवाह से पहले वर और वधू की पृष्ठभूमि की अच्छी तरह जांच करनी चाहिए। महिलाओं को भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना आवश्यक है, ताकि वे अपने जीवनसाथी के चयन में सतर्कता बरत सकें। सामुदायिक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए, जिनमें महिलाओं को उनके वैवाहिक अधिकारों और कानूनी सुरक्षा के उपायों के बारे में जानकारी दी जाए।
इस घटना के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव भी अत्यंत गंभीर हैं। जिन महिलाओं को धोखा दिया गया है, वे न केवल मानसिक आघात का शिकार हुई हैं, बल्कि उनके आत्मसम्मान और सामाजिक स्थिति पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। इसके अलावा, इस घटना से उत्पन्न संतानों का भविष्य भी संकट में है। उन्हें समाज में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनका मानसिक और सामाजिक विकास प्रभावित होगा।
इसलिए, इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए समाज और कानून दोनों को मिलकर कार्य करना होगा। इसके लिए हमारा सरकार से आग्रह है कि इस मामले में न्याय प्रणाली को तेजी से कार्य करना चाहिए और ऐसे मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की व्यवस्था की जानी चाहिए, जिससे पीड़ितों को शीघ्र न्याय मिल सके, विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य किया जाना चाहिए जिससे इस तरह की घटनाओं को घटित होने से रोका जा सके। इसके अतिरिक्त, मीडिया और सामाजिक संगठनों को इस प्रकार के अपराधों को उजागर करने और समाज को जागरूक करने की दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। यह घटना एक चेतावनी है कि यदि कानून और समाज ने इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो भविष्य में इस प्रकार के अपराध और अधिक बढ़ सकते हैं। विवाह जैसी पवित्र संस्था को बचाने के लिए कठोर कानूनी प्रावधान, सामाजिक जागरूकता और नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। तभी हम इस प्रकार की घटनाओं को रोककर एक सशक्त और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।