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नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने पत्नी के समर्थन में गुरुवार को हुई चुनावी सभा में ये बयान दिया। हालांकि, खींवसर के वर्तमान समीकरण बेनीवाल के बयान जितने आसान नहीं हैं। खींवसर में बीजेपी-आरएलपी में कांटे की टक्कर दिख रही है। कांग्रेस का दावा दोनों पार्टियों के मुकाबले कमजोर नजर आ रहा है।
चौरासी में भी कांग्रेस की स्थिति खींवसर जैसी ही नजर आई। यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और बीएपी के बीच है। सलूंबर में दिवंगत एमएलए अमृतलाल मीणा की पत्नी भाजपा प्रत्याशी शांता देवी को सहानुभूति की लहर का फायदा मिलता दिख रहा है।
राजस्थान में 7 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में एक सप्ताह से भी कम वक्त बचा है। हवा का रुख जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम 3 विधानसभा क्षेत्रों खींवसर, चौरासी और सलूंबर में पहुंची।
पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
खींवसर के जनाना गांव में पहुंचे तो एक चाय की दुकान पर चुनावी चर्चा चल रही थी। भास्कर रिपोर्टर ने इस चर्चा में शामिल होकर हवा का रूख समझने की कोशिश की।
3 पॉइंट्स में समझिए तीन सीटों के रुझान
- खींवसर में आरएलपी से प्रत्याशी कनिका बेनवाल हैं, लेकिन चुनाव में चेहरा उनके पति सांसद हनुमान बेनीवाल ही बने हुए हैं। बीजेपी के रेवंतराम डांगा को पार्टी वोटर्स व मिर्धा परिवार के साथ के अलावा साफ छवि का फायदा भी मिल रहा है। कांग्रेस की रतन चौधरी के लिए समीकरण फिलहाल पक्ष में नहीं दिख रहे।
- चौरासी के चुनावी चौसर में बीजेपी के कारीलाल ननोमा और बीएपी के अनिल कटारा के बीच टक्कर है। कांग्रेस की रेशमा मीणा उतनी मजबूत नहीं दिख रहीं। आदिवासी युवाओं में बीएपी के लिए जुनून दिखाई दे रहा है। युवा बीजेपी से छिटका है, तो आदिवासी कांग्रेस के हाथ से। समीकरण बीएपी के पक्ष में नजर आ रहे हैं।
- सलूंबर फिलहाल नया जिला है। पहले ये क्षेत्र उदयपुर जिले में आता था। मुख्यालय पर और ग्रामीण क्षेत्रों में दिवंगत एमएलए अमृतलाल मीणा की जमीनी नेता की छवि व कामों को याद किया जा रहा है। सहानुभूति का सहारा उनकी पत्नी बीजेपी प्रत्याशी शांता देवी को मिलता नजर आ रहा है। यहां बीजेपी की टक्कर बीएपी के जितेश कटारा से है। कांग्रेस के महेश रोत के लिए राह काफी मुश्किल भरी है।
खींवसर : उम्मीदवार पत्नी, चुनाव पति के नाम पर लड़ा जा रहा
विधानसभा के उपचुनाव को लेकर अपने सफर के पहले पड़ाव में भास्कर टीम खींवसर विधानसभा क्षेत्र के जनाना गांव में चाय की एक दुकान पर रुकी। यहां राजनीतिक समीकरणों को लोग उत्साह के साथ बयान कर रहे थे। बात आरएलपी और बीजेपी की चल रही थी। रोचक बात यह थी कि यहां चर्चा में बीजेपी के रेवंतराम डांगा का नाम तो लिया जा रहा था, लेकिन आरएलपी उम्मीदवार कनिका बेनीवाल के नाम का जिक्र तक नहीं था। मानो, आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल और डांगा के बीच मुकाबला हो।
बीजेपी और आरएलपी में विधानसभा चुनाव 2023 जैसी ही कड़ी टक्कर है। उस चुनाव में आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल और तब आरएलपी से बीजेपी में शामिल हुए रेवंतराम डांगा के बीच ही टक्कर थी। डांगा ने कड़ी टक्कर दी, लेकिन करीब 2000 वोट से हार गए। हनुमान बेनीवाल विधानसभा चुनाव जीते, इसके बाद बेनीवाल के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद ये सीट खाली हो गई।
- खींवसर के चाय की दुकान चलाने वाले पप्पू शर्मा का कहना है कि मुझे पार्टी से नहीं, केवल हनुमान बेनीवाल से मतलब है। हनुमान भाटे (पत्थर) को भी खड़ा कर दें तो मैं भाटे को वोट दे दूंगा।
- मिर्धा परिवार के गांव कुचेरा में श्रवण कुमार का कहना है कि पहले हम हनुमान बेनीवाल के साथ थे, लेकिन विकास नहीं हुआ। शायद इसका कारण सरकार बनाने वाली पार्टी का एमएलए नहीं होना रहा है। इस बार वोट डालने से पहले विचार करेंगे।
- गृहिणी रामी देवी किसी नेता की प्रशंसक नहीं है। बोलीं – चुनाव आते हैं तो पार्टी और प्रत्याशी बिजली–पानी और सड़क जैसे कई वादे करते हैं। चुनाव बाद कोई आता ही नहीं है।
- ग्रामीण हीर सिंह बोले- मेरे भाइयों ने जितनी सरकारी भर्तियां नहीं देखी, उससे कई गुना ज्यादा राजनीतिक रैलियां देख लीं। उच्च शिक्षा लेकर युवा चौराहों पर पकौड़े और पानी की बोतलें बेच रहे हैं।
- किसान रामूराम का कहना है कि किसान पानी की कमी से काफी परेशान हैं। सिंचाई के लिए नहर से पानी नहीं आ रहा। इस समस्या का समाधान करने का कोई प्रयास नहीं कर रहा।
चौरासी : युवाओं का साथ और आदिवासी प्रदेश की गूंज
चौरासी विधानसभा सीट के उपचुनाव में बीएपी के लिए युवाओं की भागीदारी बढ़-चढ़कर दिख रही है। यहां आदिवासियों के भरपूर धक्के से बीएपी की गाड़ी दौड़ रही है। चुनाव बिल्कुल जातिवाद पर सिमट गया है।
रोचक बात यह है कि युवा वोटर्स आदिवासी प्रदेश के मुद्दे पर बीएपी के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं, लेकिन ऐसे प्रदेश से उनका क्या फायदा होगा…इस सवाल का जवाब खुद उनके पास भी नहीं है। बस एक चुप्पी के साथ इस सवाल का जवाब मिल रहा है।
बीएपी के राजकुमार रोत के सांसद बनने के बाद ये विधानसभा सीट खाली हुई। अब अनिल कटारा यहां बीएपी का चेहरा हैं। इस सीट पर करीब 75 फीसदी आदिवासी वोटर्स हैं। इस सीट पर एक वर्ग विशेष के उग्र होने के कारण अपराध बढ़ने और इस चुनाव में जातिवाद की तासीर से कुछ वर्ग खफा चल रहे हैं। लेकिन ऐसे वोटर्स की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है, जिससे उनकी नाराजगी का प्रभाव परिणामों पर पड़ता नजर नहीं आ रहा।
- चौरासी के किसान जीवराम ननोमा का कहना है कि आदिवासी प्रदेश की मांग बड़ी है। जो इस मांगों को पूरा कर सकता है, उसके साथ चल रहे हैं। बाकी बेरोजगारी, महंगाई भी मुद्दे हैं।
- नर्सिंग स्टूडेंट रौनत रोत का कहना है कि अलग राज्य का मुद्दा तो है, लेकिन लगता नहीं कि ये संभव है। आदिवासी प्रदेश को लेकर पार्टी बोल रही हैं। अभी विकास के नाम पर काफी पीछे ये ये क्षेत्र।
- व्यापारी महेश कुमार जैन का कहना है कि वोटर्स जातिवाद को लेकर बंट गए हैं। एक पार्टी अपना एजेंडा सेट करने में लगी हुई है। आमतौर पर ये क्षेत्र शांत प्रवृत्ति का रहा है, लेकिन अब अपराध बढ़ रहे हैं।
सलूम्बर : अमृतलाल के लिए जज्बात और बीएपी का दबदबा
सलूम्बर विधानसभा क्षेत्र में पिछले तीन बार से बीजेपी का कब्जा है। अमृतलाल मीणा लगातार तीन बार जीते। उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन चुनावों में उनका ही जिक्र है। संवेदना की ये लहर उनकी पत्नी बीजेपी प्रत्याशी शांता देवी को सहारा दे रही है।
यहां के आदिवासी वोटर्स में बीएपी की छाप भी है। जो पार्टी के प्रत्याशी जितेश कटारा को चुनावी मैदान में मजबूत खिलाड़ी के तौर पर स्थापित कर रही है। इधर, कांग्रेस प्रत्याशी रेशमा मीणा का रास्ता खींवसर और चौरासी जैसा ही कठिनाइयों भरा है। कांग्रेस की पिछली बड़ी हार का कारण बीएपी रही। कांग्रेस का एक बड़ा वोट बैंक खिसककर बीएपी के पास चला गया।
- किसान डूंगरभाई पटेल ने इस बात को लेकर नाराजगी जताई कि प्रत्याशी वोट लेने के बाद जनता को भूल जाते हैं। केवल अमृतलाल थे, जो जीतने के बाद भी क्षेत्र में दिखाई देते थे। अब उनकी पत्नी को संवेदना का फायदा मिल सकता है।
- गृहिणी पुष्पा देवी पिछले स्थानीय एमएलए रहे नेता से नाराज हैं। उनका कहना है कि लोग वोट लेने आते हैं, शुद्ध पेयजल का वादा भी करते हैं, लेकिन फिर दिखाई नहीं देते। यहां पीने का पानी खारा है। नदी से दूषित पानी लाना पड़ता है। सालों से ये समस्या खड़ी है।
- युवा खेमराज ने बताया कि यहां काम नहीं मिला तो राेजगार की तलाश में अहमदाबाद गया। अभी त्योहार मनाने आया हूं। बेरोजगारी के मुद्दे पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
- दुकान चलाने वाले लक्ष्मण सेवक ने बताया कि यहां 12वीं तक का स्कूल तो है, कॉलेज दूर है। लड़के तो बाहर चले जाते हैं, बच्चियां कॉलेज नहीं जा पाती।
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