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– फोटो : अमर उजाला
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बसपा सरकार में दो सीएमओ की हत्या राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के बजट की बंदरबांट के चलते हुई थी। तत्कालीन डिप्टी सीएमओ डॉ. वाईएस सचान उस समय परिवार कल्याण विभाग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर भी थे। जब उनसे सीएमओ डॉ. विनोद आर्य ने बजट का ब्योरा मांगा तो उन्हें यह नागवार गुजरा। जांच में सामने आया कि इससे परेशान डॉ. सचान ने सीएमओ डॉ. आर्य की हत्या की साजिश रची थी। इसके बाद सीएमओ परिवार कल्याण बने डॉ. बीपी सिंह ने जब उनसे बजट का हिसाब मांगा तो उन्हें भी ठिकाने लगा दिया गया।
तत्कालीन बसपा सरकार ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग को अलग-अलग बांटते हुए बजट आवंटित किया था। मंत्री अनंत कुमार मिश्रा उर्फ अंटू को स्वास्थ्य और बाबू सिंह कुशवाहा को परिवार कल्याण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसके बाद सभी जिलों में सीएमओ परिवार कल्याण और डिप्टी सीएमओ की तैनाती की जाने लगी। परिवार कल्याण विभाग को दवाओं की खरीद का 1500 करोड़ रुपये का सालाना बजट था और इसकी बंदरबांट शुरू हो गई। इसी तरह स्वास्थ्य विभाग में भी कई घोटाले हुए। इसी बजट की लूट ही दो सीएमओ की हत्या की वजह बन गई। पुलिस ने इस मामले में अभय सिंह (वर्तमान में सपा विधायक), अजय मिश्रा, विजय दुबे, अंशु दीक्षित, सुमित दीक्षित को गिरफ्तार किया था। वहीं, सीतापुर के अपराधी सुधाकर पांडेय को फरार घोषित कर दिया। सुधाकर ने तो खुद सीबीआई के विवेचक को फोन कर बताया कि वह घटना में शामिल नहीं था।
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7 हजार करोड़ का था घोटाला
सीबीआई ने जब जांच शुरू की तो राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के बजट में करीब 7 हजार करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया। सीबीआई ने इस मामले में दर्जन एफआईआर दर्ज की और तत्कालीन परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा, प्रमुख सचिव प्रदीप शुक्ला समेत कई चिकित्सा अधिकारियों, डॉक्टरों, दवा सप्लायरों को गिरफ्तार किया था। जांच में पता चला कि कबाड़ का कारोबार करने वालों को मॉड्यूलर ऑपरेशन थिएटर बनाने का काम दिया गया था। सीबीआई की गिरफ्त में आए एक दवा कारोबारी ने सरकारी गवाह बनकर पूरा चिट्ठा खोल दिया। इस दौरान कुछ आरोपियों ने आत्महत्या भी कर ली थी। इनमें डिप्टी सीएमओ डॉ. वाईएस सचान, एनआरएचएम के प्रोजेक्ट डायरेक्टर सुनील वर्मा आदि शामिल थे। कई तो सड़क दुर्घटना का शिकार हो गए थे।
तत्कालीन जज ने जताई थी हत्या की आशंका
डॉ. सचान का शव 22 जून 2011 को लखनऊ जेल के शौचालय में मिला था। लखनऊ के तत्कालीन जज राजेश कुमार उपाध्याय ने अपनी रिपोर्ट में हत्या की आशंका जताई थी। हालांकि, सीबीआई ने रिपोर्ट को दरकिनार कर डॉ. सचान द्वारा आत्महत्या करने की क्लोजर रिपोर्ट अदालत में पेश कर दी। परिजनों की आपत्ति के बाद अदालत ने मामले की पुनर्विवेचना का आदेश दिया। जांच में यह भी सामने आया था कि दोनों सीएमओ की हत्या के लिए शूटरों को 5-5 लाख रुपये दिए गए थे। सीबीआई ने आनंद प्रकाश तिवारी को गिरफ्तार करने के बाद बरामद दोनों पिस्टल और घटनास्थल से मिले खोखे की फोरेंसिक जांच कराई जिससे पूरे मामले का खुलासा होता चला गया।
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