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जी 7 शिखर सम्मेलन में इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी और पीएम नरेंद्र मोदी का सेल्फी वीडियो काफी चर्चा में है. वीडियो में पीएम मेलोनी ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ खड़े होकर टीम मेलोडी का जिक्र किया. जॉर्जिया मेलोनी के नेतृत्व में भारत और इटली के रिश्ते काफी मजबूत हुए हैं. दोनों ही नेताओं की स्थानीय राजनीति में पकड़ बहुत मजबूत है और यह मेलोडी टीम आने वाले समय में यूरोप की सियासत में बड़ा बदलाव लेकर आ सकती है.
दोनों देशों में राइट विंग की राजनीति मजबूत हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 9 जून को लगातार तीसरी बार देश के पीएम बने हैं. उधर, जॉर्जिया मेलोनी के नेतृत्व में इटली और यूरोप में राइट विंग की राजनीति बढ़ती दिख रही है. वहीं, जी7 के बाकी देश जहां पर लिबरल डिप्लोमेसी है, वहां की मौजूदा राष्ट्रध्यक्ष अपनी सत्ता बचाने के लिए जूझ रहे हैं.
पूर्व राजदूत जे के त्रिपाठी ने कहा कि मेलोनी के नेतृत्व में इटली की सरकार राइट विंग यानी दक्षिणपंथ की ओर झुकी हुई है. ऐसी स्थिति मे मेलोनी के लिए जरूरी हो जाता है कि वह दिखाएं कि उनका देश न सिर्फ यूनियन यूरोपियन बल्कि जी7 में कितना महत्वपूर्ण है और विश्व के पटल पर भी कितना मजबूत है. इटली के साथ बढ़ती साझेदारी भारत के लिए न सिर्फ चीन को घेरने में अच्छी साबित होगी, बल्कि यूरोप में वह इटली के जरिए अपने व्यापार को बढ़ाने में भी सक्षम होगा. इस तरह यूरोप में चीन के बड़े स्तर पर हो रहे व्यापार को बड़ा झटका लगेगा.
पिछले साल 2023 में जॉर्जिया मेलोनी ने चीन की महत्वकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से बाहर होने का ऐलान किया था. हालांकि, उन्होंने चीन के साथ रिश्तों को बेहतर बनाए रखने की भी बात कही थी, लेकिन इस तरफ उनकी खास कोशिश नजर नहीं आई है. वहीं, पीएम मोदी के साथ सेल्फी वीडियो जारी कर और इस टीम को मेलोडी बताकर उन्होंने चीन को मिर्ची जरूर लगा दी है. बीआरआई का मकसद चीन को यूरोप और एशिया के अन्य हिस्सों से जोड़ना है.
चीन को चित करने के लिए भारत की ज्यादा ध्यान दे रहीं जॉर्जिया मेलोनी?
बीआरआई से बाहर आने का उनका फैसला बताता है कि जॉर्जिया मेलोनी का चीन से मोह भंग हो गया है. वह जानती हैं कि इटली के लिए पैसा जरूरी है, लेकिन चीन जिन शर्तों पर पैसा दे रहा था, वो मेलोनी को मंजूर नहीं है. इस बीच उन्होंने भारत की तरफ जो रुख अपनाया है, वह इस ओर इशारा करता है कि वह भारत को सबसे अहम साझेदार के तौर पर देख रही हैं. वह एशिया में चीन को चित करने के लिए भारत की तरफ ध्यान दे रही हैं. इस बार के जी7 समिट में जॉर्जिया मेलोनी ने जिस तरह राष्ट्रध्यक्षों का स्वागत किया, वह काफी दिलचस्प था. वह हाथ जोड़कर राष्ट्रध्यक्षों का वेलकम करती नजर आईं.
किन क्षेत्रों में बढ़ेगी भारत और इटली की साझेदारी?
फॉरेन अफेयर्स एक्सपर्ट शीतल शर्मा ने कहा, ‘आने वाले सालों में ट्रेड और इनवेस्टमेंट, डिफेंस, क्लाइमेट एनर्जी और कल्चरल हेरीटेज में भारत और इटली की साझेदारी और उभर कर सामने आएगी. भारत के जो अपने इंटरेस्ट हैं, जैसे कि हम जानते हैं कि भारत की फॉरेन पॉलिसी में निरंतरता बनने वाली है. हमारी फॉरेन पॉलिसी इंटरेस्ट बेस्ड भी रहेगी और वैल्यू बेस्ड भी रहेगी. अगर हम ट्रेड की तरफ देखें तो हमारे ट्रेड के स्टेटिक्स 15 बिलियन यूरो के आसपास हैं, जो काफी इंप्रेसिव नहीं हैं, लेकिन काफी स्कोप है. अनस्कसप्लॉड पोटेंशियल है भारत और इटली के बीच में, जिसको टैप किया जा सकता है.’
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के साथ इटली के अच्छे रिश्ते हैं, लेकिन ब्रिटेन और यूएसए को छोड़कर इन सभी देशों में या तो दक्षिणपंथी सरकार आ चुकी है या आने की कगार पर है. जी7 के ज्यादातर देशों के नेता अपनी साख बचाने के लिए जूझ रहे हैं. वहीं, नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं. भारत की सरकार स्थिर है और दुनिया के लिए भी अच्छा संकेत है. जॉर्जिया मेलोनी और पीएम मोदी दोनों ही अपने देश में लोकप्रिय नेता हैं और आतंकवाद जैसे कई मुद्दों पर एक जैसी राय रखते हैं. वहीं, कई देश चीन से ज्यादा भारत को तरजीह देते हैं क्योंकि चीन पर भरोसा रखना बेहद जोखिम भरा होता है.
G7 देशों में सबसे मजबूत नेता मेलोनी?
जी7 में जॉर्जिया मेलोनी उन चुनिंदा लीडर्स में से हैं, जो अपनी स्थानीय राजनीति में मजबूत हो रहे हैं. पूर्व राजदूत दीपक वोहरा का कहना है कि यूरोपीयन संघ में भी मेलोनी की लोकप्रियता बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि ब्रिटेन के प्राइम मिनिस्टर ऋषि सुनक का इलेक्शन होने वाला है वह हार जाएंगे. फ्रांस के राष्ट्रपति ने पार्लियामेंट को डिजॉल्व कर दिया है और अब आसार नजर आ रहे हैं कि कोई ऑपोजिशन वाला प्रधानमंत्री बनेगा. अमेरिका में भी इलेक्शन होने वाले हैं और कनाडा में जस्टिन ट्रूडो साहब हैं उनकी कुर्सी डगमगा रही है तो बस एक ही लीडर है जी7 का जो स्थिर है, वो हैं जॉर्जिया मेलोनी. उनका सबसे बड़ा मुद्दा इमीग्रेशन है और जब वह चुनाव जीतीं तो यह बहुत बड़ा मुद्दा था. वह कई बार कह चुकी हैं कि इमीग्रेशन उनके लिए बहुत अहम समस्या है, अगर यूरोप इमीग्रेंटस को नहीं चाहता तो उन्हें सक्षम बनाएं ताकि वह इसको रोक सकें.’
सत्ता बचाने में जुटे G7 देश?
ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, कनाडा और जापान जैसे देशों के शीर्ष नेता अपनी सत्ता बचाने में जुटे हैं. जो बाइडेन अपने बेटे हंटर बाइडेन के दोषी ठहराए जाने के बाद साख के लिए जूझ रहे हैं. वहीं, जापान के फूमिओ किशिदा भी प्रधानमंत्री के लिए दमदार उम्मीदवार के तौर पर नजर नहीं आ रहे हैं. ऐसी ही हालत बाकी जी7 देशों की भी और इस समय सबसे मजबूत इटली की जॉर्जिया मेलोनी ही दिख रही हैं.
जी7 देशों को क्यों है भारत की जरूरत?
जी7 शिखर सम्मेलन में भारत को 11 बार आमंत्रित किया गया है और प्रधानमंत्री मोदी लगातार पांचवीं बार समिट में शामिल हुए हैं. कई जी7 देशों में हाल के समय में चुनाव होने वाले हैं. वैश्विक स्तर पर चल रही उथल-पुथल, जिसके केंद्र में चीन और रूस हैं. ऐसे में पश्चिम देश भारत को अपनी तरफ चाहते हैं. मजबूत लोकतंत्र और बढ़ती अर्थव्यवस्था भारत को पश्चिमी देशों का मजबूत साझेदार बनाता है और इस वजह से प्रमुख नीतियों में भी ये देश भारत को तवज्जो देते हैं.
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