[ad_1]
जब आग लगी तो कुछ समझ नहीं आया. चारों ओर बस धुआं ही धुआं था. खिड़कियों से भी कुछ नहीं दिख रहा था. आग की लपटें सबकुछ जला देने पर आमादा थीं. जब लगा कि अब बचना मुश्किल है, मैं तो मर जाऊंगा, तो बिना सोचे समझे नीचे रखी पानी की टंकी में कूद गया…शुक्र है कि मैं आज भी जिंदा हूं… यह खौफनाक कहानी बताई कुवैत अग्निकांड में जिंदा बचे नलिनाक्षन ने…घटना के घंटे भर बाद जब उन्होंने अपने परिवार को फोन किया, तो हालात बयां करते-करते रो पड़े.
कुवैत अग्निकांड में 49 लोगों की जान चली गई, इनमें से 42 भारतीय थे. ज्यादातर केरल और मलयालम के रहने वाले थे और कमाने के लिए कुवैत गए हुए थे. इस अग्निकांड ने कई बच्चों के पिता छीन लिए तो किसी के माथे का सिंदूर लुट गया. लेकिन केरल के त्रिकारीपुर के रहने वाले नलिनाक्षन उन लोगों में हैं, जो मौत को मात देकर जिंदा बच गए. जब उनका फोन आया तो घरवालों ने राहत की सांस ली. उनके कई दोस्त इस अग्निकांड की भेंट चढ़ गए.
लोगों को जिंदा जला रही थीं आग की लपटें
नलिनाक्षन ने कहा, जब आग की लपटें लोगों को जिंदा जला रही थीं…लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे. एक अजीब सी दौड़ थी. मैं खुद को तीसरी मंजिल पर आग और धुएं के बीच फंसा पाया. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. जब आग मेरे और करीब आ गई, मुझे लगा कि अब मर जाऊंगा… तभी मुझे नीचे पानी की टंकी याद आ गई. मैं बिना सोचे-समझे उसमें कूद गया. मेरे शरीर के निचले हिस्से में काफी चोट आई, और अस्पताल पहुंचने से पहले ही मैं बेहोश हो गया. लेकिन शुक्र है कि मैं जिंदा बचकर आ गया.
जुलाई में आने वाले थे रंजीत
कुवैत अग्निकांड में मरे ज्यादातर भारतीय थे. अधिकांश अपने परिवारों के लिए कमाने गए थे. सभी एक ही मकान में रह रहे थे. पीड़ितों में से 24 केरल के और 5 तमिलनाडु के थे. मरने वालों में कोट्टायम के पंपडी के एक इंजीनियर 29 वर्षीय स्टीफ़िन अब्राहम साबू भी शामिल थे. उनके परिवार में उनकी मां शर्ली और उनके भाई फेबिन और केविन हैं. त्रिकारीपुर के रहने वाले केलू पोनमलेरी की भी मौत हो गई, तो कासरगोड के 34 वर्षीय रंजीत भी जिंदा नहीं बचे. रंजीत अपने नए घर के गृहप्रवेश का जश्न मनाने के बाद डेढ़ साल पहले कुवैत गया था. उसने जुलाई में छुट्टियों के लिए अपने गांव लौटने की योजना बनाई थी. अब इन सबका परिवार सदमे में है.
FIRST PUBLISHED : June 13, 2024, 15:55 IST
[ad_2]
Source link