[ad_1]
राजस्थान में पिछले 5 साल में हुई सरकारी भर्तियां जांच की रडार पर आ गई हैं। सरकार ने अब फर्जी डिग्रियों से नौकरी पाने वालों को जेल में डालने की तैयारी कर ली है।
.
इस फैसले से सरकारी नौकरी में सिलेक्ट हुए करीब सवा लाख सरकारी कर्मचारी जांच के दायरे में आ गए हैं। साथ ही झूठे तलाक देकर नौकरियां पाने वालों की भी पहचान की जाएगी।
पेपर लीक, फर्जी ओएमआर शीट भरने, डमी कैंडिडेट बैठाने जैसे मामलों की जांच में जुटी एंटी चीटिंग सेल सहित अन्य जांच एजेंसियों ने पुरानी भर्तियों को खंगालने में जुट गई हैं।
दैनिक भास्कर ने एसआईटी, एसओजी (स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप) और एंटी चीटिंग सेल के अधिकारियों और लीगल एक्सपट्र्स के जरिए सरकार की तैयारियों को लेकर पड़ताल की। मंडे स्पेशल स्टोरी में पढ़िए पूरी रिपोर्ट
सरकार ने क्या आदेश निकाले हैं?
चुनावी नतीजों के 2 दिन बाद ही 6 जून 2024 को भर्ती पक्रोष्ठ कार्मिक विभाग ने आदेश जारी किए। जिनमें पिछले 5 साल में हुई सरकारी भर्तियों में सिलेक्ट हुए अभ्यर्थियों के शैक्षणिक दस्तावेजों की जांच की जाएगी। इसके लिए हर विभाग में एक इंटरनल कमेटी बनाए जाने के निर्देश दिए हैं।
कार्मिक विभाग की ओर से जारी आदेश की कॉपी।
पिछली सरकार में 12 से ज्यादा अलग-अलग विभागों में नौकरियां निकाली गई थीं। उनमें भर्ती हुए सभी कर्मचारी इस दायरे में आएंगे। राजस्थान के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब इतनी बड़ी तादाद में नौकरी कर रहे सरकारी कर्मचारियों के रिकॉर्ड खंगाले जाएंगे। फर्जी दस्तावेजों के साथ-साथ झूठे तलाक लेकर नौकरी पाने वाले कार्मिक भी एजेंसियों की रडार पर होंगे।
यहां हम आपको स्टेप वाइज स्टेप बताएंगे कि आखिर सरकार किस तरह से इतनी सारी भर्तियों की जांच करवाएगी, जांच में कौन-कौनसी एजेंसियां इन्वॉल्व रहेंगी? कौन-कौन लोग दायरे में आएंगे? दोषी पाए जाने पर क्या एक्शन होगा?
जांच कौनसी एजेंसियों के हाथ में होगी?
एक्सपर्टस ने बताया कि राजस्थान पुलिस का स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी), स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) और नव गठित एंटी चीटिंग सेल के जरिए पेपर आउट-नकल करने व डमी कैंडिडेट बैठाने वालों के साथ अब फर्जी डिग्री लगाकर सरकारी नौकरी पाने वाले की जांच की जाएगी।
प्रतियोगी परीक्षाओं में हो रही धांधली के खिलाफ अब तक 2.5 हजार से ज्यादा शिकायतें एसओजी में दर्ज करवाई गई हैं।
जांच के स्टेप क्या होंगे?
स्टेप-1 : जांच की शुरुआत भर्ती के लिए किए गए आवेदनों से होगी। राज्य सरकार के निर्देश के बाद जांच एजेंसियां सभी सवा लाख भर्तियों की जांच के दौरान उनके प्रमाण पत्रों की भी बारीकी से जांच करेगी।
स्टेप-2 : एजेंसियों की ओर से देखा जाएगा कि कैंडिडेट्स ने किस राज्य के किस संस्थान से डिग्री ली हैं। विशेष तौर पर उन आवेदनों को अलग किया जाएगा, जिन पर निजी संस्थानों या यूनिवर्सिटी के कोर्स के प्रमाण पत्र लगाए हुए हैं। खासतौर से राज्य के बाहर की निजी यूनिवर्सिटी और संस्थानों की डिग्रियों वाले छात्रों की सूची तैयार की जाएगी।
स्टेप-3 : पुलिस अधिकारियों के अनुसार संबंधित सभी निजी यूनिवर्सिटी व संस्थानों से संबंधित कैंडिडेट्स की डिग्रियों की पुष्टि की जाएगी। खास तौर पर देखा जाएगा कि ये डिग्रियां छात्र ने रेगुलर (कक्षा में उपस्थित होकर) परीक्षा दी हैं या प्राइवेट (कक्षा में जाने की जरूरत नहीं, सीधे परीक्षा में बैठ सकते हैं)।
स्टेप-4 : सूत्रों के अनुसार उन कैंडिडेट्स की सूची अलग से तैयार की जाएगी, जिनके आवेदन में बताए कोर्स की तारीखें आपस में क्लैश कर रही हैं। थोड़ा भी शक होने पर राज्य के बाहर इन निजी यूनिवर्सिटी व संस्थानों को रजिस्टर्ड डाक से आवेदन की कॉपी भेज कर जानकारी ली जाएगी और जरूरत पड़ने पर टीम भेजी जाएगी।
फर्जी डिग्री से नौकरी पाने वालों के खिलाफ क्या होगा एक्शन?
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार सरकार फर्जी दस्तावेजों के जरिए नौकरी पाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना चाहती है। सरकार ने जांच एजेंसियों को फर्जी दस्तावेज पाए जाने पर एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दे दिए हैं। जिन कैंडिडेट्स ने फर्जी डिग्री या डिप्लोमा के कागजात लगाए हैं, उन पर धोखाधड़ी की धारा 420 में मामले दर्ज किए जाएंगे।
लीगल एक्सपर्ट राम प्रताप सैनी के अनुसार फर्जी डिग्रियों से नौकरी पाने के मामले इन पांच सालों में नहीं, बल्कि इससे पहले भी होते रहे हैं। फर्जी डिग्री या डिप्लोमा के आधार पर नौकरी पाने वालों को एफआईआर के बाद राज्य सरकार बर्खास्त कर सकती है। वहीं, धोखाधड़ी में केस दर्ज होगा, तो इसमें 7 साल की जेल का प्रावधान है।
सैनी के अनुसार जब भी भर्तियां निकलती हैं, तब फर्जी डिग्री-डिप्लोमा की व्यवस्था करने वालों की एक गैंग सक्रिय हो जाती है। जो कैंडिडेट्स से पैसा इकट्ठा करती हैं। लेकिन देखा गया है कि इन मामलों में गैंग का नुकसान नहीं होता, जितना कैंडिडेट्स का हो जाता है।
नौकरी के लिए तलाक लेने वाली महिलाओं की कैसे होगी जांच?
राज्य सरकार की भर्तियों में तलाकशुदा महिलाओं के लिए हर सरकारी भर्ती में दो प्रतिशत कोटे की व्यवस्था है। एडवोकेट राम प्रताप सैनी के अनुसार जांच एजेंसियों के लिए ये मामले किसी चुनौती के कम नहीं होंगे। जिन महिलाओं ने तलाक अदालत से ले लिया और उसके कागजात आवेदन में लगा कर नौकरी पा ली, यदि वे अब भी अपने पति के साथ रह रही हैं, तो कानून उसमें कुछ नहीं कर सकता।
सैनी के अनुसार ऐसे मामलों को रोकने के लिए अदालत को ये देख लेना चाहिए कि मर्जी से तलाक लेने वाले आवेदन बढ़ रहे हैं, तो क्या राज्य सरकार की कोई भर्ती तो नहीं निकली हुई। क्या तलाक से पहले पत्नी ने पति या ससुराल वालों के खिलाफ कहीं एफआईआर दर्ज करवाई भी है या नहीं। क्योंकि असल में तलाक के जो मामले होते हैं, उनमें 99 फीसदी एफआईआर दर्ज होती हैं।
तलाक वाले मामले ज्यादा नहीं होंगे, लेकिन जांच एजेंसियां लोकेशन वेरीफाई कर सकती हैं। यदि तलाक हुआ होगा, तो पत्नी अपने पति से अलग रह रही होगी। लेकिन यदि मोबाइल लोकेशन भर्ती के समय में भी साथ ही आ रही हो, तो जरूर ऐसे मामलों में जांच करनी चाहिए।
उनके अनुसार यदि अदालत से तलाक लेने के बाद सरकारी नौकरी पर लगने वाली पत्नी अपने पति के साथ रह रही है, तो उसमें कानून को कोई समस्या नहीं है। एजेंसियों के पास ऐसे मामले में खास करने को कुछ नहीं रह जाता।
फर्जी डिग्री देने वाले कॉलेज/यूनिवर्सिटीज/खेल संघ पर भी होगा एक्शन?
राज्य सरकार के निर्देश हैं कि कैंडिडेट्स के खिलाफ ही नहीं, बल्कि फर्जी डिग्री जारी करने वाली यूनिवर्सिटीज, कॉलेज और खेल संघ के खिलाफ भी धोखाधड़ी के मामले दर्ज किए जाएं।
स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG) के डीआईजी परिस देशमुख ने बताया कि बैक डेट के डॉक्यूमेंट और फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर सिलेक्शन पाने वाले स्टूडेंट्स के डॉक्यूमेंट का भी वेरिफिकेशन होगा, क्योंकि हमारी जांच में पता चला है कि कुछ फर्जी कॉलेज और खेल संघों की मदद से इस तरह के फर्जी सर्टिफिकेट और डिग्रियां बनाकर युवाओं के भविष्य को बर्बाद किया जा रहा है।
कर्मचारी चयन बोर्ड और राजस्थान लोक सेवा आयोग के पास पिछले पांच साल में आयोजित भर्ती परीक्षाओं का पर्याप्त रिकॉर्ड है। इसमें उनके पास अभ्यर्थी के आवेदन के वक्त की फोटो और बेसिक जानकारी के साथ ही परीक्षा के वक्त की फोटो, डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के वक्त की फोटो और उनके मूल दस्तावेजों की प्रति भी होती है।
पारिस देशमुख ने बताया कि इसी आधार पर आसानी से इस पूरे मामले की जांच की जा सकती है। यही कारण है कि हमने सरकार से पिछले 5 साल में हुई भर्ती परीक्षाओं की जांच की मांग की है। हालांकि इससे पहले की भी अगर किसी भर्ती परीक्षा में धांधली या शिकायत मिलेगी तो उसके खिलाफ भी हम एक्शन लेंगे।
किन राज्यों से बनवाई फर्जी डिग्री-डिप्लोमा, दशकों से हो रहा खेल
फर्जी डिग्री से नौकरी पाने वाले मामले केवल पांच साल से ही नहीं है, बल्कि दशकों से कैंडिडेट्स-दलाल मिलकर खेल कर रहे हैं। सरकारी यूनिवर्सिटीज या अन्य संस्थान में बमुश्किल ऐसी गड़बड़ियां होती हैं। लेकिन जब भी भर्ती निकलती है, तब दलाल कैंडिडेट्स से संपर्क कर पैसा लेकर निजी विश्वविद्यालय और निजी संस्थान से बैक डेट में फर्जी डिग्री या डिप्लोमा बनवा लेते हैं। इन संस्थाओं को भी मोटा पैसा जाता है।
राजस्थान में 90 फीसदी से अधिक मामले बाहरी राज्यों से ली गईं डिग्री या डिप्लोमा के हैं। दलालों की ये गैंग दशकों से काम कर रही है। कई भर्तियां और कई मामले हैं, जिनमें राज्य के बाहर से डिग्रियां-डिप्लोमा बनवा लिए…
1998 : तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती
बिहार और दक्षिण भारत के राज्यों से करीब 400 कैंडिडेट्स ने गैर मान्यता प्राप्त संस्थानों से बीएड की डिग्री बनवाई। ये संस्थान एनसीईटी (राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद्) से मान्यता प्राप्त नहीं थे। सरकार ने गंभीरता दिखाई, जांच के दौरान जिनकी डिग्रियां फर्जी थीं उन्हें नियुक्ति नहीं दी गई।
एसओजी ने चूरू की एक यूनिर्वसिटी में गिरोह का खुलासा 2 महीने पहले किया था। दो आरोपियों के कब्जे से 81 खेल प्रमाण, 117 मार्क शीट, आधार, डिग्री मिले थे।
1998 : पीटीआई भर्ती
फर्जी डिग्री के आधार पर 50 से अधिक कैंडिडेट्स ने नौकरी ले ली। दौसा सहित अन्य जिलों में नियुक्तियां हुईं। कैंडिडेट्स ने बीपीएड व सीपीएड की महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार से फर्जी डिग्री बनवाईं थी। अधिकतर को नौकरी से हटाया दिया गया, राजस्थान हाईकोर्ट में केस विचाराधीन है।
2004 और 2006 की तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती
कैंडिडेट्स मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार सहित अन्य राज्यों से बीएड और बीएसटीसी की डिग्री लाए। ये फर्जी खेल प्रमाण पत्र मान्यता प्राप्त नहीं पाए गए। जांच के बाद अधिकतर अभ्यर्थियों को हटा दिया गया। कई अभ्यर्थियों ने कोर्ट में याचिकाएं दायर की हुई हैं, जो विचाराधीन हैं। कैंडिडेट्स सरकार की जांच से संतुष्ट नहीं हैं, इस कारण हाईकोर्ट में चुनौती दी हुई है।
2013 की एलडीसी भर्ती
पंचायती राज विभाग की इस भर्ती में कम्प्यूटर डिप्लोमा बाहर के राज्य से लगाए। फर्जी पाए गए। पकड़े जाने पर सरकार ने बाहर का रास्ता दिखाया। मामला कोर्ट में है।
बाहरी राज्यों के निजी संस्थानों की व्यावसायिक डिप्लोमा-डिग्री में गड़बड़
एक्सपट्र्स का कहना है कि भर्ती विज्ञापन निकलते ही गिरोह सक्रिय हो जाते हैं। जो कैंडिडेट्स को बैकडेट की डिग्रियां या डिप्लोमा देने का लालच देते हैं और मोटा पैसा वसूलते हैं। इस खेल में बाहरी राज्यों की निजी संस्थाएं भी इन्वोल्व हैं। प्राइवेट यूनिवर्सिटीज व अन्य संस्थान बैक डेट में डिग्री या डिप्लोमा दे भी देते हैं।
यदि कैंडिडेट्स एक समय में ही दो रेगुलर कोर्स के बारे में बताते हुए आवेदन कर रहा है, तो भर्ती बोर्ड को सावधान हो जाना चाहिए। वहीं, जांच एजेंसियां मामला दर्ज कर कैंडिडेट्स के मोबाइल लोकेशन ट्रैक कर पता लगा सकती हैं कि संबंधित तारीखों के दौरान कभी संबंधित संस्थान में कैंडिडेट पढ़ने गया भी था या नहीं।
हाईकोर्ट ने पूछा डिग्री लेने सिक्किम कैसे जाते थे? जवाब देते ही पकड़ा गया कैंडिडेट
हाईकोर्ट में करीब 9 साल पहले एक रोचक लेकिन गंभीर वाकया हुआ, जिससे कैंडिडेट्स को मिलने वाले फर्जी कम्प्यूटर डिप्लोमा की पूरी कलई खुल गई। साल 2014 के दौरान हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में न्यायाधीश एमएन भंडारी पंचायती राज विभाग में एलडीसी भर्ती 2013 को लेकर एक मामले की सुनवाई कर रहे थे। उस दौरान याचिकाकर्ता खुद ही अपनी पैरवी कर रहा था।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आपने जो आपने कंप्यूटर का डिप्लोमा सिक्किम की यूनिवर्सिटी से लिया है, आप वहां कैसे जाते थे। तब याचिकाकर्ता ने जवाब दिया कि वह ट्रेन से सीधे सिक्किम जाता था। इस पर तत्काल हाईकोर्ट ने कहा कि वहां ट्रेन नहीं जाती। हाईकोर्ट काफी नाराज हुआ। इसके बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका ही वापस (विड्रो) ले ली।
इसके बाद इस भर्ती में सैंकड़ों कैंडिडेट्स को बाहर कर दिया गया। पता चला कि कैंडिडेट्स ने दलालों से डिग्रियां ली थी।
[ad_2]
Source link