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एनडीए सरकार के मंत्रियों की शपथ हो चुकी है। इस बार राजस्थान से 4 सांसदों को मंत्रिमंडल में जगह मिली। इनमें अर्जुनराम मेघवाल, गजेंद्र सिंह शेखावत, भागीरथ चौधरी और भूपेंद्र यादव शामिल हैं।
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इन चारों में सबसे चौंकाने वाला नाम रहा भागीरथ चौधरी का। 6 महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में भागीरथ चौधरी किशनगढ़ से विधानसभा चुनाव हार गए थे। इसके बाद वे जब पीएम नरेंद्र मोदी से मिले तो फूट-फूटकर रोए थे। मोदी ने गले लगाकर कहा था- हार-जीत चलती रहती है।
चारों सांसद मोदी और शाह के बेहद करीबी माने जाते हैं। मेघवाल चौथी बार सांसद चुने गए तो शेखावत तीसरी बार। यादव पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़कर एमपी बने। इनमें से तीन चेहरों मेघवाल, शेखावत और यादव को मंत्रिमंडल में रिपीट किया गया है, जबकि भागीरथ चौधरी को पहली बार मौका मिला।
विधानसभा चुनाव के बाद मोदी ने बुलाया था, बिना मिले ही निकल गए थे चौधरी
भागीरथ चौधरी के मंत्री बनने का किस्सा भी दिलचस्प है। भागीरथ चौधरी 2019 में भी अजमेर से सांसद थे। विधानसभा चुनाव-2023 में बीजेपी ने किशनगढ़ से टिकट दिया था। किशनगढ़ में वे बुरी तरह चुनाव हारे और तीसरे नंबर पर रहे। विधानसभा चुनाव हारने के बाद संसद सत्र के दौरान पीएम मोदी से पार्टी सांसद मिले थे। भागीरथ चौधरी चुनाव हारने से आहत थे, इसलिए मोदी से मिले बिना ही सीधे निकल गए थे।
फोटो 4 जून का है। भागीरथ चौधरी की जीत के बाद उनके समर्थकों ने कंधे पर बैठाकर खुशी जाहिर की थी।
पीएम ने टोका तो कहा था- किस मुंह से मिलता, मैं तीसरे नंबर पर रहा हूं
चौधरी ने ये किस्सा शेयर करते हुए बताया कि जब मैं बिना मिले निकलने लगा तो पीएम ने गार्ड को भेजा। गार्ड ने बताया कि आपको पीएम ने मिलने के लिए बुलाया है। इसके बाद मैं दोबारा पीएम से मिलने गया। इस पर मोदी ने टोकते हुए कहा-बिना मिले कैसे निकले?
इस पर चौधरी बोले-चुनाव में हारने की वजह से। मैं किस मुंह से आपसे मिलता। आपने टिकट दिया और मैं विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर रहा।
मोदी के सामने फूट-फूटकर रोने लगे थे, कहा- हार-जीत चलती रहती है
विधानसभा चुनाव का जिक्र होने के बाद चौधरी मोदी के सामने ही फूट-फूटकर रोने लगे। इस पर मोदी ने थप्पी देते हुए हौसला रखने काे कहा। पीएम ने कहा हार-जीत चलती रहती है। इस तरह हिम्मत हारने की जरूरत नहीं है। आगे भी अच्छा होगा।
भागीरथ चौधरी को पीएम से हुई इस मुलाकात में सांसद के टिकट का आश्वासन मिल गया था। पीएम ने उन्हें इशारों में ही संकेत दे दिए थे कि आगे और अच्छा होगा। उस समय ही तय हो गया था कि आगे बड़ी भूमिका मिलेगी।
मोदी-शाह को बताए थे अपनी हार के कारण
चुनाव हारने के बाद भागीरथ चौधरी को अमित शाह ने भी हौसला रखने को कहा था। पीएम से मुलाकात में चौधरी ने अपनी हार के कुछ कारण बताए थे। तब उनसे कहा गया था कि हार के कई कारण है, उसके बारे में सब रिपोर्ट है।
6 महीने पहले चौधरी विधानसभा चुनाव हारे थे। संगठन ने दोबारा मौका दिया और लोकसभा चुनाव में उतारा।
17 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ बिजनेस शुरू किया, जनसंघ से जुड़े
किशनगढ़ के रहने वाले चौधरी का राजनीतिक सफर काफी रोचक रहा। भागीरथ चौधरी कॉलेज की पढ़ाई के लिए जयपुर आए थे। हालांकि सेकेंड ईयर में पढ़ाई छोड़ी और किशनगढ़ लौट गए। 17 साल की उम्र में उन्होंने पढ़ाई छोड़ किराना की दुकान खोली।
20 साल की उम्र तक उन्होंने किराना की दुकान संभाली और 1990 के बाद उन्होंने मार्बल के बिजनेस में कदम रखा। किशनगढ़ में मार्बल का बिजनेस शुरू किया। यहीं से वे जनसंघ के संपर्क में आए। लगातार जनसंघ के संपर्क में रहे और भाजपा की स्थापना से ही वे लगातार संगठन में सक्रिय है। 2003 में उन्होंने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। चौधरी 2 बार विधायक रह चुके हैं। इसके अलावा 2003 से 2008 तक भाजपा उद्योग प्रकोष्ठ में प्रदेश उपाध्यक्ष और 2003 से 2019 तक प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य रहे हैं।
2003 से 2018 तक राजस्थान विधानसभा में पर्यावरण समिति के अध्यक्ष, लोकसभा में जल संसाधन समिति के सदस्य, लोकसभा में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय परामर्शदात्री समिति के सदस्य और सहकारिता मंत्रालय परामर्शदात्री समिति के सदस्य रहे हैं।
अर्जुनराम मेघवाल: बीएसएनएल के ऑपरेटर, फिर आरएएस का एग्जाम दिया
अर्जुनराम मेघवाल 1984 में बीएसएनल में ऑपरेटर थे। यहां उनका काम था लैंडलाइन और एक्सचेंज पर लाइनों का मेंटेनेंस करना।
उन्होंने कर्मचारियों के मुद्दों को लेकर भी खूब काम किया था। इसी की बदौलत उनका दखल बीएसएनएल की यूनियन में बढ़ता गया था। हालांकि इस काम में उनका मन नहीं लगा था।
1991 में आरएएस बने और 1993 में बाड़मेर में जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण में परियोजना निदेशक थे। सरकारी नौकरी में रहते हुए अर्जुनराम मेघवाल 1993 से 1998 तक तत्कालीन उप मुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा के निजी सचिव भी रहे। 2008 में आईएएस के पद पर प्रमोट हुए और 2009 में चूरू कलेक्टर लगाया गया था।
अर्जुनराम मेघवाल चौथी बार सांसद बने हैं। दिल्ली में सीएम भजनलाल शर्मा और प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी स्वागत करते हुए।
सुषमा स्वराज ने मौका दिया, रॉबर्ट वाड्रा की जमीनों का मुद्दा उठाया
आईएएस रहते उनका संपर्क सुषमा स्वराज से हुआ। वे उनके करीबी माने जाते थे। बताया जाता है कि सुषमा स्वराज ने ही मेघवाल की राजनीति में एंट्री करवाई। साल 2009 में जब बीकानेर लोकसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गया, तब उन्हें भाजपा ने यहां से प्रत्याशी बनाया। पहली बार में वे जीतकर संसद तक पहुंचे।
संसद में उन्होंने रॉबर्ट वाड्रा का मुद्दा उठाया। इसी से तत्कालीन गुजरात मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी प्रभावित हुए। मोदी ने अर्जुनराम से इस मुद्दे पर बातचीत की तो मेघवाल ने इससे जुड़े सभी डॉक्युमेंट मोदी को बताए। इससे मोदी भी प्रभावित हुए।
मोदी के पीएम बनने पर अर्जुनराम मेघवाल को संसदीय कार्यों में शामिल किया। बीकानेर के महाराजा डॉ. करणी सिंह के बाद मेघवाल ही लगातार चौथी बार सांसद बने हैं।
अब तक मंत्रालय
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में वो केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री के साथ केंद्रीय संस्कृति एवं संसदीय कार्य मंत्री रहे। वे पूर्व में केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री,केंद्रीय जल संसाधन मंत्री, और गंगा विकास मंत्री रह चुके हैं। मेघवाल ने पूर्व में मुख्य सचेतक की भूमिका निभाई थी। साल 2019 से 2021 तक भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम राज्य मंत्री, 2016 से 2017 तक वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के राज्य मंत्री और 2016 से 2017 तक जल संसाधन राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया।
मेघवाल को स्वतंत्र प्रभार मिला है। वे पूर्व मोदी सरकार में कानून मंत्री रह चुके हैं।
2013 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार
संसद में लगातार उपस्थित रहने के साथ ही सवाल पूछने और तथ्यों के साथ बात रखने के लिए अर्जुनराम मेघवाल को साल 2013 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार दिया गया था।
साइकिल वाले सांसद, भजन के शौकीन
अर्जुनराम मेघवाल सांसद बनने के बाद घर से संसद तक साइकिल पर जाने से भी चर्चा में आए। वे साइकिल से ही संसद जाते थे। इससे पर्यावरण प्रेम का नारा देने वाले सांसद के रूप में चर्चा में आए थे। मेघवाल की एक पहचान भजन गायकी के कारण भी है। वे बीकानेर के कई कार्यक्रमों में भजन गाते दिखाई देते हैं। खासकर लोक देवता बाबा रामदेव के भजन गाते हैं।
संगठन के मिस्टर भरोसेमंद हैं भूपेंद्र यादव, पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा
भूपेंद्र यादव पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़कर सांसद बने। अलवर सीट से जब टिकट दिया गया तो बाहरी का मुद्दा कांग्रेस ने उठाया, लेकिन इसके बाद भी जीत हासिल की।
यादव की पहचान संगठन में चुनावी मैनेजमेंट गुरु के तौर पर हैं। यादव को लेकर कहा जाता है कि बिहार में प्रदेश प्रभारी के नाते JDU के साथ दोबारा गठबंधन करके शीट शेयरिंग के मुद्दे को हल किया था। इसी के बाद भाजपा को बिहार में जेडीयू के मुकाबले भी मजबूती से सत्ता में लेकर आए। इसके अलावा तेलंगाना जैसे राज्य में भी भाजपा के जनाधार को बढ़ाने और पार्टी को मजबूत करने का वहां काम किया।
भूपेंद्र यादव मोदी और शाह के करीबी माने जाते हैं। पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा।
राम मंदिर केस में यादव की प्रमुख भूमिका
भूपेंद्र यादव सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं। यादव वकालत के दौरान BJP के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री दिवंगत अरुण जेटली के संपर्क में आए थे। इसके बाद यादव का राजनीतिक सफर शुरू हुआ था। जेटली ने ही राम मंदिर केस से संबंधित जिम्मेदारी यादव को सौंपी, इस केस में यादव ने खूब मेहनत की थी। राम मंदिर केस में सबूत जुटाने के साथ मजबूत पैरवी की थी। 2010 में वे BJP के राष्ट्रीय मंत्री बनाए गए, फिर 2012 में राजस्थान से राज्यसभा में भेजे गए, 2018 में राजस्थान से ही दोबारा राज्यसभा सांसद बने।
4 जून को परिणाम के बाद जब यादव अलवर आए थे तो कार्यकर्ताओं की ओर से इस अंदाज में उनका स्वागत किया गया था।
हरियाणा के रहने वाले हैं यादव, पार्टी ने दो राज्यों को साधा
यादव मूल रूप हरियाणा से हैं। अजमेर के सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय से LLB की डिग्री हासिल की थी। भूपेंद्र यादव ने भाजपा में रहते हुए कई अहम पद संभाले। साल 2000 में ABVP के महासचिव बने। इसके अलावा साल 2010 में वे भाजपा के राष्ट्रीय सचिव भी नियुक्त हुए थे। 2013 में उन्होंने राजस्थान में बीजेपी के प्रदेश प्रभारी कप्तान सिंह सोलंकी के साथ सह प्रदेश प्रभारी का दायित्व भी संभाला था और तब वसुंधरा राजे सरकार को जबरदस्त बहुमत मिला था।
यादव अकेले छात्रसंघ उपाध्यक्ष जीते, बाकी पैनल हार गया अजमेर में कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही यादव पॉलिटिक्स में खासे एक्टिव थे। वो स्टार्टिंग से ही ABVP से जुड़े हुए थे। उन्होंने ABVP से छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के लिए टिकट मांगा, लेकिन उन्हें अध्यक्ष की बजाय उपाध्यक्ष का टिकिट दिया गया। इसके बाद जब छात्र संघ के चुनाव हुए और परिणाम आए तो ABVP का पूरा पैनल चुनाव हार गया लेकिन उपाध्यक्ष के पद पर खड़े भूपेंद्र यादव बड़े मार्जिन से चुनाव जीत गए।
अजमेर में पत्रकारिता भी कर चुके यादव
अजमेर में कॉलेज की पढ़ाई के दिनों में ही भूपेंद्र यादव ने पत्रकारिता में भी हाथ आजमाए थे। उन दिनों उन्होंने राजस्थान के कुछ लोकल दैनिक अखबारों में फ्रीलांसर के तौर पर काम किया था।
वहीं बाद में बीजेपी का बड़ा नेता बनने के बाद यादव ने ‘The Rise of the BJP’ और ‘Supreme Court on Forest Conservation’ नाम से दो किताबें भी लिखी है।
अलवर नहीं भिवानी से लड़ने वाले थे चुनाव, कार्यालय तक खोल लिया था
भूपेंद्र यादव अलवर से पहले हरियाणा की भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे। यादव के समर्थकों ने महेंद्रगढ़ में कार्यालय खोल प्रचार भी शुरू कर दिया था। हालांकि हरियाणा के कई नेताओं के विरोध के बाद यादव ने अपना मन बदल लिया। राज्यसभा सांसद रहते हुए यादव ने पहले अजमेर और बाद में अलवर के कई गांवों को सांसद आदर्श गांव योजना के तहत गोद लिया था। मंत्री रहते हुए भी अलवर में कई महत्वपूर्ण काम करवाए।
वहीं महंत बालकनाथ के तिजारा से विधायक बनने के बाद अलवर की खाली हुई सीट से उन्हें इस बार टिकट मिला और वो जीतकर लोकसभा सांसद बन गए।
गजेंद्र सिंह शेखावत: स्टूडेंट राजनीति से सांसद बने, पूर्व सीएम के बेटे को हराकर चर्चा में आए
जोधपुर से लगातार तीसरी बार सांसद चुने गए गजेंद्र सिंह शेखावत के राजनीति सफर की शुरुआत जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी से हुई थी। कॉलेज के समय वे एबीवीपी में सक्रिय रहे और इसके बाद चुनाव लड़ा। ये चुनाव वे जीत गए और 1992 में यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट बने। इसके बाद शेखावत को भाजपा की किसान शाखा, भाजपा किसान मोर्चा का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया गया था।
2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें पहली बार टिकट दिया था। जोधपुर पूर्व राजघराने की सदस्य चंद्रेशकुमारी को 4.10 लाख वोटों से हराया और चर्चा में आए। 2017 में केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री का दायित्व मिला।
शेखावत को फिर से कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। वे तीसरी बार सांसद बने।
इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर से पार्टी ने भरोसा जताया और दूसरी बार टिकट दिया। इस बार उनके सामने थे पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत। उस समय गहलोत राजस्थान के सीएम थे।
गहलोत के सीएम रहते हुए उन्होंने वैभव को 2.74 लाख वोट से हराया। पहले पूर्व राजघराने की सदस्य और फिर पूर्व सीएम के बेटे को हराकर संगठन का भरोसा जीता। इसी का नतीजा रहा कि मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट जल जीवन मिशन की जिम्मेदारी शेखावत को सौंपी गई और जल शक्ति मंत्री बनाया।
शपथ से पहले रविवार को गजेंद्र सिंह शेखावत के समर्थक दिल्ली स्थित उनके आवास पहुंचे और स्वागत किया।
सरकार गिराने का आरोप लगा, गहलोत ने संजीवनी घोटाले में शेखावत के खिलाफ मोर्चा खोला
शेखावत पहली बार जब सांसद बने तब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। वसुंधरा राजे के कार्यकाल के दौरान जब प्रदेश में संगठन बदलाव को लेकर चर्चा चल रही थी, उस समय शेखावत का नाम सबसे आगे चल रहा था। अचानक से शेखावत के नाम को रिप्लेस किया गया। इसके बाद राजे और उनके बीच अच्छे संबंध नहीं रहे।
इधर, 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद शेखावत पर गहलोत सरकार को गिराने का आरोप लगा। कथित फोन टैप के आधार पर उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। गहलोत सरकार लगातार इस मुद्दे को लेकर शेखावत की घेराबंदी करती रही।
इस बीच विधानसभा चुनाव से पहले गहलोत ने फिर संजीवनी घोटाले का मुद्दा उठाया और इसका आरोप शेखावत पर लगाया। गहलोत खुद इस मुद्दे को लेकर लगातार आरोप लगाते रहे और कहा भी 2 लाख परिवारों का पैसा डूब गया। हालांकि इस मामले में जब गहलोत ने शेखावत के परिवार पर आरोप लगाए तो उनकी ओर से मानहानि का केस किया गया।
राजस्थान मूल के वैष्णव भी कैबिनेट मंत्री
राजस्थान मूल के अश्विनी वैष्णव को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। पिछली सरकार में वे रेल मंत्री थे और ओडिशा से राज्यसभा में भेजे गए थे।
वैष्णव का पैतृक गांव पाली जिले के जीवंद कलां में है। पाली जिले के खैरवा गांव में उनका ननिहाल है, जहां उनका जन्म हुआ था। अभी पूरा परिवार उनका जोधपुर रहता है। एमबीएम इंजीनियरिंग यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमटेक की पढ़ाई पूरी की थी।
साल 1994 में वे आईएएस बने और 2010 में 16 साल की नौकरी के बाद वीआरएस ले लिया था।
इनपुट- बीकानेर से अनुराग हर्ष, अजमेर से सुनिल कुमार जैन
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