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श्री धर्म फाउंडेशन ट्रस्ट के तत्वावधान में जे.एल.एन. मार्ग स्थित विद्याश्रम स्कूल के महाराणा प्रताप सभागार में रविवार को ’घट-घट के वासी राम’ -राम से प्रभु श्रीराम तक की ज्ञान यात्रा- राम कथा का आयोजन हुआ। श्री धर्म फाउंडेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष सुधीर जै
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राम कथा के गूढ़ रहस्यों को समझाया
इस ज्ञान यात्रा में कथाकार ने भगवान श्रीराम के जीवन की विभिन्न लीलाओं पर प्रकाश डाला। कथाकार ने केवट प्रसंग के पीछे छिपे रहस्य को बताते हुए कहा कि एक बार क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेष शैया पर विश्राम कर रहे थे और लक्ष्मी जी उनके पैर दबा रही थीं। विष्णुजी के एक पैर का अंगूठा शैया के बाहर आ गया। क्षीरसागर में जब एक कछुए ने इस दृश्य को देखा तो उसके मन में विचार आया कि मैं यदि भगवान विष्णु के अंगूठे को अपनी जिह्वा से स्पर्श कर लूं तो मेरा मोक्ष हो जाएगा। यह सोचकर वह कछुआ भगवान विष्णु के चरणों की ओर बढ़ा। उसे भगवान विष्णु की ओर आते हुए शेषनाग ने देख लिया और उसे भगाने के लिए जोर से फुंफकारा। फुंफकार सुन कर कछुआ भाग कर छुप गया। कुछ समय बाद जब शेषजी का ध्यान हट गया तो उसने पुनः प्रयास किया। इस बार लक्ष्मी जी की दृष्टि उस पर पड़ गई और उन्होंने उसे भगा दिया। इस प्रकार उस कछुए ने अनेकों प्रयास किए पर शेष जी और लक्ष्मी माता के कारण उसे कभी सफलता नहीं मिली। यहां तक कि सृष्टि की रचना हो गई और सतयुग बीत जाने के बाद त्रेता युग आ गया। कछुए को पता था कि त्रेता युग में वही क्षीरसागर में शयन करने वाले विष्णु राम का, वही शेष जी लक्ष्मण का और वही लक्ष्मी देवी सीता के रूप में अवतरित होंगे और वनवास के समय उन्हें गंगा पार उतरने की आवश्यकता पड़ेगी इसीलिए वह भी केवट बनकर वहां आ गया था। एक युग से भी अधिक काल तक भगवान का चिंतन करने के कारण उसने प्रभु के सारे मर्म जान लिए थे इसीलिए उसने श्रीराम से यह कहा था कि मैं आपका मर्म जानता हूं। मानसकार गोस्वामी तुलसीदास भी इस तथ्य को जानते थे इसीलिए अपनी चौपाई में केवट के मुख से कहलवाया- ‘कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना।’
सीता के जन्म के पीछे का रहस्य
सीता के जन्म के पीछे का रहस्य बताते हुए ओझा ने कहा कि राजा जनक मिथिला के राजा थे। एक बार मिथिला में अकाल पड़ा। तब राजा जनक ने ऋषि, मुनियों और विद्वानों से सलाह ली। ऋषि मुनियों ने उनसे कहा कि राजा जनक यदि आप स्वयं हल से भूमि को जोतेंगे तब देवराज इन्द्र की कृपा से मिथिला का अकाल दूर हो सकता है। राजा जनक ने अपने राज्य से अकाल को खत्म करने के लिए और अपनी प्रजा के हित में स्वयं हल चलाने का निर्णय लिया। राजा जनक भूमि पर हल चला रहे थे। तभी हल जा कर एक जगह अटक गया। राजा जनक ने देखा तब हल की नोक एक स्वर्ण कलश में अटकी हुई थी। राजा जनक ने स्वर्ण कलश को निकाला। उस कलश में दिव्य ज्योति लिए एक नवजात कन्या थी। धरती मां की कृपा से प्राप्त हुई इस कन्या को राजा जनक ने अपनी बेटी मान लिया। कन्या कलश में हल लगने की वजह से राजा को मिली थी इसी कारण सीता नाम रखा। क्योंकि हल की नोक को सीत कहा जाता है।
इसी प्रकार कथाकार ओझा ने हनुमानजी और बाली का युद्ध, गिद्धराज जटायु और भीष्म पितामह का प्रसंग, 1 हजार अमर राक्षसों का वध हनुमानजी ने कैसे किया, राम की शक्ति पूजा, अंगद के पैर नहीं हिलने का कारण, मेघनाद के नागपास का रहस्य, माता सीता के वन गमन, भगवान राम के द्वारा राम सेतु को तोड़ देने का कारण आदि प्रसंगों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।
राजा दशरथ और श्रवण कुमार की कथा सुन हुए भावविभोर
विश्वामित्र जी द्वारा भगवान राम को लेकर जाने, अहिल्या उद्धार के पीछे के रहस्य, ताड़का वध, कैकई के वरदान मांगने, रावण के द्वारा धनुष नहीं उठा पाना और भगवान राम द्वारा फूल की तरह धनुष उठा लेने के पीछे छिपे रहस्य, स्वयंवर के समय राजा जनक द्वारा दशरथ को न्यौता नहीं भेजने का कारण, कैकई के वरदान मांगने के पीछे के कारण, उर्मिला का वनवास में नहीं जाना आदि प्रसंगों को भी रोचक तरीके से श्रोताओं को बताया। आज का दुख कल का सौभाग्य कैसे बनता है इस संबंध में राजा दशरथ और श्रवण कुमार की कथा सुन श्रोता भाव-विभोर हो गए।
मधुर स्वर लहरियां सुन श्रोता हुए श्रद्धा से सराबोर
संगीतमय कथा के दौरान भजनों और मानस की चौपाइयों की मधुर स्वर लहरियों ने छोटी काशी के रामभक्तों को श्रद्धा से सराबोर कर दिया।
प्रदेश के विभिन्न शहरों से आए श्रद्धालु
कार्यक्रम में प्रदेश के विभिन्न शहरों से अनेक संत, महंत, उद्यमी, व्यापारी, राजनेता, पुलिस और प्रशासन के अधिकारी, शिक्षक, प्रोफ़ेसर, पंडित, ज्योतिषि और विद्यार्थियों सहित बड़ी संख्या में मातृ शक्ति उपस्थित हुए। सभी लोगों ने कार्यक्रम की प्रशंसा की। आत्म गौरव, मनोबल, संस्कार, गुण, शील, विनय और मर्यादा, से परिपूर्ण कार्यक्रम में सभागार खचाखच भरा नजर आया।
कार्यक्रम में घट-घट के वासी राम आयोजन समिति के साथ श्री धर्म फाउंडेशन ट्रस्ट, अनासक्त चौतन्य ट्रस्ट, श्री जे.डी. माहेश्वरी का भी सराहनीय योगदान रहा। कार्यक्रम में संगीत छवि जोशी का रहा वहीं संगीत संयोजन और पखावज वादन मनभावन डांगी ने किया। वायलिन पर रमेश मेवाल, गायन और हारमोनियम दिनेश खींची, तबले पर हरीश गौतम, परकशन दीपेश, की-बोर्ड और कोरस तथा सिंगर के रूप में माधवी, राघवी और प्रियंका ने साथ दे कार्यक्रम में चार चांद लगाए। कार्यक्रम में श्रोताओं को 15 बड़े आर्टिस्ट्स की केनवास पर बनाई भगवान राम की पेंटिंग्स पर राम नाम लिखने के बाद ही प्रवेश दिया गया।
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