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नरेंद्र मोदी आज शाम 7:15 बजे तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। शपथ ग्रहण समारोह राष्ट्रपति भवन (रायसीना हिल्स) में आयोजित किया जाएगा।
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330 एकड़ में बना राष्ट्रपति भवन दुनिया की सबसे भव्य इमारतों में शुमार है और वास्तु कला का अद्भुत नमूना माना जाता है।
देश ही नहीं दुनिया भर के लोगों की नजरें आज जिस रायसीना हिल्स और भारत के राष्ट्रपति भवन में नरेंद्र मोदी के शपथग्रहण समारोह पर टिकी हैं।
स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए रायसीना हिल्स और राष्ट्रपति भवन के बनने के पीछे राजस्थान के योगदान की कहानी…
7 जून को नरेंद्र मोदी को तीसरी बार एनडीए के संसदीय दल का नेता चुना गया। इसके बाद वे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलने पहुंचे। इसके बाद राष्ट्रपति भवन के बाहरी परिसर में जयपुर कॉलम के सामने मीडिया ब्रीफ दी।
जयसिंहपुरा था रायसीना हिल्स का नाम
इतिहासकार और लेखक डी. के. तकनेट ने अपनी किताब ‘जयपुर जेम ऑफ़ इंडिया’ में लिखा है कि दिल्ली की रायसीना हिल्स को पहले जयसिंहपुरा के नाम से जाना जाता था।
ये पूरी जमीन जयपुर के महाराजा के अधीन थी, जिसे उन्होंने दिल्ली को हिन्दुस्तान की नई राजधानी बनाने और देश में कई सर्वोच्च संस्थाएं बनाने के लिए डोनेट कर दिया था।
इसी जमीन पर बाद में राष्ट्रपति भवन व संसद भवन का निर्माण करवाया गया था।
वहीं जयपुर की ही इतिहासकार रीमा हूजा का कहना है कि रायसीना हिल्स का इलाका पहले जयपुर के महाराजा सवाईसिंह द्वितीय के हिस्से में था।
यही वजह है कि इसे जयसिंहपुरा भी कहा जाता था। अंग्रेजों ने जब वहां नया शहर बसाया तो ये सारी जगह जयपुर के महाराजा ने ही उन्हें दी थी। इसी की याद में वहां जयपुर कॉलम बनवाया गया था।
रायसीना हिल की पहाड़ी को समतल करने से निकली चट्टानों को वायसराय के निवास और कार्यालय भवनों के निर्माण के लिए नींव में काम में लिया गया था।
क्यों किंग्सवे कैम्प की जगह रायसीना हिल्स पर बना राष्ट्रपति भवन?
rashtrapatibhavan.gov.in पर दी गई जानकारी के अनुसार 12 दिसंबर 1911 को आयोजित दिल्ली दरबार, किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक का प्रतीक था।
इस दरबार में ब्रिटिश भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने की सबसे महत्वपूर्ण घोषणा को लगभग एक लाख लोगों ने देखा-सुना था।
तब कलकत्ता को फाइनेंस सेंटर माना जाता था। दूसरी ओर दिल्ली देश में शक्ति और गौरव का प्रतीक थी। दरबार में हुई घोषणा के बाद, दिल्ली में एक शाही निवास की तलाश शुरू कर दी गई।
ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियंस को भारत की नई राजधानी की प्लानिंग बनाने के लिए कहा गया था। वे दिल्ली टाउन प्लानिंग कमेटी का भी हिस्सा थे, जिस पर साइट और लेआउट के निर्णय लेने की भी जिम्मेदारी थी।
वायसराय हाउस के लिए नए शहर के उत्तरी किनारे पर किंग्सवे कैंप सबकी पहली पसंद था। लुटियंस और उनके सहयोगियों को ये जगह बाढ़ के लिहाज से सुरक्षित नहीं लगी, क्योंकि यमुना नदी के पास में थी।
रायसीना हिल उन्हें वायसराय हाउस के लिए सबसे ठीक जगह लगी। इसकी वजह भी बिलकुल साफ़ थी कि ये काफी ऊंचाई पर थी, जो बेहतर जल निकासी के लिए उपयुक्त थी। इसी के चलते उन्होंने तब रायसीना हिल को फाइनल किया।
ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियंस ने राष्ट्रपति भवन का ले आउट तैयार किया था।
निर्माण में 4 की जगह 17 साल लगे
रायसीना हिल की पहाड़ी को समतल करने से वहां से निकली चट्टानों को वायसराय के निवास और कार्यालय भवनों के निर्माण के लिए नींव में काम में लिया गया था। एक रेलवे लाइन डालकर यहां निर्माण सामग्री को पहुंचाया गया था।
लॉर्ड हार्डिंग के कार्यकाल के दौरान शुरू किए गए राष्ट्रपति भवन के निर्माण में सत्रह साल से अधिक का समय लगा, जबकि इसके महज चार साल में पूरा होने की उम्मीद थी।
प्रथम विश्व युद्ध के कारण इसे पूरा होने में ज्यादा टाइम लगा था। वायसराय इरविन अप्रैल 1929 में नवनिर्मित वायसराय हाउस के पहले निवासी बने थे।
लॉर्ड हार्डिंग के कार्यकाल के दौरान शुरू किए गए राष्ट्रपति भवन के निर्माण में सत्रह साल से अधिक का समय लगा, जबकि तब उन्हें इसके महज चार साल में पूरा होने की उम्मीद थी।
जयपुर महाराजा माधो सिंह ने बनवाया जयपुर कॉलम
जब राष्ट्रपति भवन (वायसराय हाउस) बनकर तैयार हुआ तो सबसे आगे के हिस्से में खासतौर से एक 145 फीट ऊंचा कॉलम (स्तंभ) लगाया गया, जिसे ‘जयपुर कॉलम’ कहा जाता है।
इसे जयपुर के महाराजा सवाई माधो सिंह ने गिफ्ट किया था। साल 1912 में जयपुर के महाराजा माधो सिंह द्वितीय ने दिल्ली दरबार और भारत की राजधानी को कलकत्ता से नई दिल्ली ट्रांसफर करने की याद में इसका निर्माण कराने की पेशकश की थी।
जयपुर कॉलम का डिजाइन एडविन लुटियंस ने तैयार किया था और इसे बनाने में लगा पूरा खर्च जयपुर के तत्कालीन महाराजा माधोसिंह ने उठाया था। यह कॉलम राष्ट्रपति भवन के गेट से 555 फीट दूर है।
साल 1912 में जयपुर के महाराजा माधो सिंह द्वितीय ने 1911 के दिल्ली दरबार और भारत की राजधानी को कलकत्ता से नई दिल्ली ट्रांसफर करने की याद में जयपुर कॉलम का निर्माण कराया था।
फूल और स्टार का वजन 5 टन
‘जयपुर कॉलम’ मुख्यत क्रीम कलर के सेंड स्टोन से बना है, जिसके आधार में लाल रंग का सेंड स्टोन लगा है। इसमें सबसे ऊपर अंडानुमा आकृति बनी है जिस पर कांसे का कमल का फूल बना है और इसके ऊपर एक स्टार बना है। दोनों का वजन 5 टन है।
15 दिसंबर 1911 में बने इस कॉलम का फाउंडेशन ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम ने और उनकी पत्नी रानी मैरी ने 15 दिसंबर 1911 को रखा गया था, वहीं ये कॉलम धौलपुर के पत्थरों से बना हुआ है।
चार मंजिला राष्ट्रपति भवन में 340 कमरे
राष्ट्रपति भवन की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक राष्ट्रपति भवन चार मंजिला है और इसके अंदर छोटे-बड़े कुल 340 कमरे हैं। यह करीब 2 लाख स्क्वायर फीट में फैला है।
भवन की इमारत में 70 करोड़ से ज्यादा ईटें और तीन मिलियन क्यूबिक फीट पत्थर लगा है। भवन के निर्माण में कुल 23000 मजदूर लगे थे, जिसमें से 3000 तो अकेले पत्थर काटने वाले थे।
चलते-चलते 3 तस्वीरों में देखिए राष्ट्रपति भवन की भव्यता…
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