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लोकसभा चुनाव के बाद अब झारखंड की सभी राजनीतिक पार्टियां विधानसभा चुनाव में जाने की तैयारी में जुट गईं हैं। विधानसभा चुनाव इसी साल नवंबर-दिसंबर में होना है। विधानसभा चुनाव में जीत तय करने में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की भूमिका सबसे अहम होगी। इसको ध्यान में रखकर ही झामुमो और इंडिया गठबंधन नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में उतरने जा रहा है।
पिछले दो दिनों में झामुमो की बयानबाजी से भी इस बात की जानकारी मिलती है। फादर स्टेन स्वामी की मौत और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को आपस में जोड़ना, सरना धर्म कोड और मणिपुर हिंसा की बात इसी कड़ी का हिस्सा है। ये ऐसे मुद्दे हैं जो सीधे-सीधे जनजाति बहुल क्षेत्रों के आदिवासी वोट बैंक को प्रभावित करते हैं। आदिवासी समाज की बहुप्रतीक्षित सरना धर्म कोड की मांग को भी लोकसभा चुनाव परिणाम के ठीक बाद झामुमो ने उठाया है।
आरक्षित सीटों पर जीत का अनुपात 93 प्रतिशत
स्टेन स्वामी दशकों से झारखंड के आदिवासी, मूलवासी के अधिकारों के लिए काम करने के लिए जाने जाते थे। अक्तूबर 2019 में एनआईए ने कई गंभीर मामलों में उन्हें गिरफ्तार किया था। माना जाता है कि उनकी गिरफ्तारी के बाद आदिवासी क्षेत्र में काफी नाराजगी थी। गिफ्तारी के तत्काल बाद हुए नवंबर-दिसंबर विधानसभा चुनाव में आदिवासी आरक्षित सीटों पर झामुमो-कांग्रेस को बड़ा फायदा मिला। आरक्षित सीटों पर दोनों पार्टियों की जीत का आंकड़ा 93 प्रतिशत था। उनकी मौत जेल में जुलाई 2021 को हो गई थी। दो दिन पहले ही हेमंत सोरेन के फेसबुक वॉल पर लिखा गया कि जिस तरह सबसे कमजोर वर्ग के लिए आवाज उठाने वाले फादर स्टेन को अन्याय से चुप कराया गया, आज उसी तरह का जुल्म हेमंत सोरेन पर हो रहा है।
आदिवासी वोटरों को साधने में फेसबुक की मदद
फेसबुक वॉल पर यह भी लिखा गया कि आज हर झारखंडी को हेमंत सोरेन के पक्ष में मजबूती के साथ खड़ा होने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं होता है तो ये झारखंड को मणिपुर बनाने से बाज नहीं आएंगे। मणिपुर राज्य में आदिवासियों की संख्या करीब 45 है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बात भी आदिवासी वोटरों को साधने करने के लिए लिखा गया।
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