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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने देश के राजनीतिक हालात पर कभी लिखा था, “जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।” उनकी ये बात आज के राजनीतिक परिदृश्य में सच साबित हो रही है और हालिया लोकसभा चुनावों में देश की जनता-जनार्दन ने वैसे तटस्थ दलों के अपराध की लकीर खींचते हुए उन्हें करारा झटका दिया है। हालिया लोकसभा चुनावों के दौरान देश में दो तरह की सियासी बयार बह रही थी। इनमें एक केंद्र की सत्ताधारी NDA के पक्ष में थी तो दूसरी विपक्षी इंडिया अलायंस के पक्ष में। लिहाजा, जो दल इन दोनों गठबंधनों से अलग यानी तटस्थ रहे, उसे जनता ने ठुकरा दिया है। इनमें राष्ट्रीय पार्टी से लेकर कई क्षेत्रीय दल भी शामिल हैं।
नवीन पटनायक की BJD जीरो पर आउट
हैरत की बात है कि पब्लिक ने जिन दलों को लोकसभा चुनावों में ठुकराते हुए जीरो पर आउट किया है, उनमें आधा दर्जन ऐसी पार्टियां हैं, जो या तो मौजूदा समय में किसी ना किसी राज्य में सत्तासीन थीं या पहले सरकार चला चुकी हैं। ऐसे दलों में सबसे बड़ा और चौंकाने वाला नाम नवीन पटनायक की अध्यक्षता वाली बीजू जनता दल है। ओडिशा में पिछले 24 सालों से सत्ता में काबिज इस दल को लोकसभा चुनावों में जीरो सीट मिली है। हालांकि, राज्य में उसे 37.53 फीसदी वोट मिले हैं। बीजद किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं था।
लोकसभा के साथ-साथ ओडिशा में विधानसभा चुनाव भी हुए थे। उसमें भी पटनायक की पार्टी को करारी शिकस्त मिली है। 147 सदस्यीय विधानसभा में बीजू जनता दल को 51 सीटों से संतोष करना पड़ा है। खुद मुख्यमंत्री पटनायक को भी एक सीट पर हार का स्वाद चखना पड़ा है। वहां अब भाजपा की सरकार बनने जा रही है। भाजपा को 78 सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस को 14 सीटें मिली हैं। बीजू जनता दल को कुल 62 सीटों का नुकसान हुआ है।
मायावती की बसपा का बुरा हाल
उत्तर प्रदेश में 2019 में सपा के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव लड़ने वाली मायावती की बहुजन समाज पार्टी को तब 10 सीटें मिली थीं लेकिन इस बार वह दोनों गठबंधनों में से किसी में शामिल नहीं हुईं। लिहाजा, उनकी पार्टी बसपा को जीरो सीट मिली है। उन्हें कुल 10 सीटों का नुकसान हुआ है। हालांकि, बसपा को यूपी में कुल 9.39 फीसदी वोट मिले हैं। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी बसपा अकेला चुनाव लड़ी थी। उन चुनावों में उसे सिर्फ एक सीट पर जीत मिली थी।
तेलंगाना में KCR का जादू खत्म
दक्षिणी राज्य तेलंगाना में पिछले साल यानी नवंबर 2023 में अपनी दस साल पुरानी सत्ता गंवाने वाले चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिति (BRS) को भी करारा झटका लगा है। राज्य की कुल 17 लोकसभा सीटों में से उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिल सकी है। राज्य में आठ सीटों पर भाजपा और आठ पर सत्ताधारी कांग्रेस की जीत हुई है। हालांकि, AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी इन दोनों गठबंधनों से इतर रहने के बावजूद अपनी हैदराबाद सीट बचाने में कामयाब रहे हैं। राज्य में कांग्रेस को 40.10% वोट मिले हैं, जबकि भाजपा को 35.08% और AIMIM को 3.02% वोट मिले हैं।
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तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक भी लूजर
एक और दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के पूर्ववर्ती सत्ताधारी दल और राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी यानी AIADMK को भी लोकसभा चुनावों में जीरो सीट पर संतोष करना पड़ा है। हालांकि, पार्टी को कुल 20.46 फीसदी वोट मिले हैं। AIADMK ने किसी भी अलायंस से गठबंधन नहीं किया था, जबकि वह लंबे समय से एनडीए गठबंधन की सहयोगी रही है।
महबूबा मुफ्ती खुद भी हारीं, पार्टी भी हारी
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती भी चुनाव हार गईं हैं। वह अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही थीं। उन्हें नेशनल कॉन्फ्रेन्स के मियां अल्ताफ ने हराया। राज्य में नेशनल कॉन्फ्रेन्स और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जबकि पीडीपी ने अकेले चुनाव लड़ा था। राज्य की कुल पांच लोकसभा सीटों में से पीडीपी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिल सकी। हालांकि उसे 8.48 फीसदी वोट मिला है।
हवा में उड़ गया हरियाणा में चौटाला परिवार
हरियाणा के सबसे बड़े राजनीतिक खानदान और पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के चौटाला परिवार की दो पार्टियों इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था लेकिन दोनों ही दलों को जीरो पर संतोष करना पड़ा है। हिसार लोकसभा सीट पर तो चौटाला परिवार के ही तीन उम्मीदवार खड़े थे। इनमें से दो इनेलो और जजपा की प्रत्याशियों सुनैना चौटाला और नैना चौटाला जमानत भी नहीं बचा पाईं। राज्य में कभी इनेलो की तूती बोलती थी और ओम प्रकाश चौटाला की सरकार रह चुकी है। जजपा के दुष्यंत चौटाला हाल तक भाजपा संग सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे हैं।
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इसी तरह महाराष्ट्र में प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी को भी जीरो सीट से समझौता करना पड़ा है। प्रकाश आंबेडकर लंबे समय तक इंडिया अलायंस से सीट बंटवारे पर तोलमोल करते रहे लेकिन मनमाफिक समझौता नहीं होने पर उन्होंने अकेले चुनावों में उतरने का फैसला किया था। प्रकाश आंबेडकर खुद अकोला सीट पर हार गए। इनके अलावा कभी कांग्रेस के साथी रहे असम की AIUDF को भी जीरो पर आउट होना पड़ा है। इस पार्टी के नेता बदरुद्दीन अजमल अपनी धुबरी सीट भी नहीं बचा पाए। गोवा में क्रांतिकारी गोवा पार्टी को भी एक भी सीट नहीं मिल सकी है।
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