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पंकज पाठक| रांची45 मिनट पहले
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झारखंड की 14 लोकसभा सीटों पर चुनाव खत्म हो गया। अब चर्चा तेज है कि परिणाम क्या होंगे। कौन कितनी सीट जीतेगा? किन सीटों पर कड़ी टक्कर होगी और कौन-कौन सी ऐसी सीटें हैं जो पिछले बार के रिजल्ट पर असर डाल सकती है।
2019 की तरह एनडीए ने इसबार भी 13+1 के फॉर्मूले पर चुनाव लड़ा, जिसमें 13 सीटों में बीजेपी मैदान में रही, एक पर आजसू। वहीं इंडी गठबंधन में ये फॉर्मूला इस बार 7+5+1+1 का था। जिसमें कांग्रेस सात पर, जेएमएम पांच पर, राजद 1 पर और लेफ्ट 1 पर चुनावी मैदान में थे।
अब सवाल है कि क्या इंडिया गठबंधन नए फॉर्मूल से झारखंड में अपनी सीट का आंकड़ा बढ़ा पाएगी। क्या पिछली बार की तरफ एनडीए गठबंधन 12 सीट जीतने में सफल होगी या 400 पार का नारा झारखंड से ही कमजोर होगा।
एक्सपर्ट की मानें तो एनडीए गठबंधन के हिस्से 8 से 10 सीट आ सकती है। यूपीए के हिस्से 3 से 4 सीट जा सकती है। अगर इसे पार्टी के आधार पर समझने की कोशिश करें तो भाजपा- 09 – आजसू – 01, कांग्रेस-01, जेएमएम- 03 सीट पर कब्जा कर सकती है। पढ़िए झारखंड की 14 लोकसभा सीटों पर क्या होगा हार-जीत का गणित, कौन कितनी सीटें जीत सकता है…
2019 में मोदी फैक्टर एक बड़ी जीत के रूप में उभर कर सामने आया था। जेएमएम अपनी पारंपरिक सीट राजमहल बचाने में सफल रहा और कांग्रेस ने सिंहभूम सीट पर कब्जा किया था।
किसने लगाई चुनाव प्रचार में सबसे ज्यादा ताकत
झारखंड में चार चरण में लोकसभा के चुनाव हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छह बार झारखंड के दौरे पर आए। इन छह सभाओं में प्रधानमंत्री ने एक साथ दो लोकसभा क्षेत्र के लोगों को साधने की कोशिश की। नरेंद्र मोदी की तुलना में राहुल गांधी ने कम सभा की।
नरेंद्र मोदी के अलावा झारखंड में गृहमंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह सहित कई दिग्गज नेताओं ने चुनाव प्रचार किया। भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव में अपनी पूरी ताकत लगाई, प्रचार पर जोर दिया जबकि यूपीए गठबंधन अपने स्थानीय नेताओं के भरोसे रहे हालांकि इस बीच उलगुलान रैली और तेजस्वी यादव के पलामू दौरे की खूब चर्चा रही।
एक्सपर्ट बोले- पिछली बार से कम होगी एनडीए की सीट
वरिष्ठ पत्रकार आनंद कुमार झारखंड में हार जीत के आंकड़े पर कहते हैं दोनों ही पार्टियों का पलड़ा कई सीटों पर बराबर है। हालांकि वो यह भी कहते हैं कि झारखंड में जिस तरह से मतदान हुए हैं और राजनीतिक परिद्श्य बना है उसमें भाजपा नौ या 10 सीटें लाएगी। जबकि इंडिया गठबंधन को लेकर उनका मानना है कि इनकी चार या पांच सीटों पर जीत हो सकती है। वह मानते हैं कि लोहरदगा, खूंटी और सिंहभूम ऐसी सीटें हैं, जहां इंडिया गठबंधन मजबूत स्थिति में है। मतदान के आंकड़े के मुताबिक पलामू में भाजपा का पलड़ा भारी दिखाई देता है।
अगर दुमका, गोड्डा और राजमहल को देखें तो राजमहल जेएमएम के हिस्से आ सकता है। इसके पीछे का तर्क यह है कि इस इलाके में जेएमएम की चुनाव चिन्ह की पहचान है। दुमका में 50-50 की स्थिति है। गोड्डा के बारे उनका मानना है कि यहां निशिकांत की राह आसान नहीं है।
ऐसा इसलिए क्योंकि उनके सामने खड़े प्रदीप यादव जिस जाति से आते हैं उनकी काफी तादाद उस लोकसभा में है। आदिवासियों की अच्छी संख्या है। मुसलिम भी अपनी पकड़ रखते हैं। वह कहते हैं कि ओवरऑल देखें तो इस बार नौ के मुकाबले पांच का आंकड़ा हो सकता है।
क्या होगा हार-जीत का फैक्टर
इस बार झारखंड में मोदी फैक्टर का असर कम है। पिछली बार जीत की बड़ी वजह बनी इस बार कुछ सीटों के नुकसान का कारण बन सकती है। कई सीटों पर भाजपा के जीत का अंतर भी कम होने की पूरी संभावना है। कई भाजपा सांसदों के काम से जनता बहुत खुश नहीं है।
ट्रिपल तलाक, राम मंदिर, सर्जिकल स्ट्राइक, कश्मीर का मुद्दा झारखंड पर असर तो डाल रहा है लेकिन झारखंड की 75.95 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती। इन मुद्दों का असर शहरी क्षेत्रों में तो है लेकिन ग्रामीण इलाकों में जातीय समीकरण, आदिवासी, सरना, ईसाई, मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव है।
भाजपा ने हजारीबाग, लोहरदगा, चतरा, सिंहभूम, धनबाद, और दुमका में उम्मीदवार बदला। इन छह सीटों पर भाजपा ने बड़ा दांव खेला। सिंहभूम सीट पर पिछली बार की कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा ने पाला बदला जबकि दुमका में सोरेन परिवार में टूट की वजह बनी सीता सोरेन। एक्सपर्ट मानते हैं कि इन दो सीटों पर जीत आसान नहीं होगी।
निर्दलीय बिगाड़ रहे हैं हार-जीत का खेल
झारखंड की 14 लोकसभा सीटों पर यूपीए और एनडीए के बीच कड़ी टक्कर है लेकिन निर्दलीय इस चुनाव में खेल बिगाड़ रहे हैं। निर्दलीय हार और जीत में बड़ी भूमिका निभायेंगे। झारखंड की किसी भी सीट से किसी निर्दलीय के जीतने की संभावना कम है लेकिन चुनाव के परिणाम में यह बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
गिरिडीह से जयराम महतो और रांची से देंवेंद्र नाथ महतो महतो वोटबैंक पर कब्जा कर रहे हैं। इसका नुकसान सीधे भाजपा को हो सकता है। जातीय समीकरण गिरिडीह की लोकसभा सीट में एक अहम भूमिका निभाती रही है। चंद्रप्रकाश चौधरी इस वोट बैंक के जरिए ही जीत हासिल करते रहे हैं लेकिन इस बार जयराम इस सीट पर बड़ी भूमिका में है।
वहीं राजमहल में जेएमएम के बागी लोबिन हेंब्रम विजय हांसदा के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं। जेएमएम के कट्कर समर्थक और पारंपरिक वोटर्स लोबिन की तरफ मुड़ सकते हैं। लोहरदगा में चमरा लिंडा कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं। चुनाव के परिणाम में इनकी भूमिका बेहद है।
दोनों ही पार्टियों ने मुद्दे लोगों तक पहुंचाए
वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ चौधरी कहते हैं कि इस बार का लोकसभा चुनाव साल 2014 और 2019 के मुकाबले कई मायने में अलग रहा है। ऐसे में नतीजे भी अलग होंगे। बीते दो चुनाव में भाजपा की स्थिति लगभग एक समान थी। इस बार ऐसा नहीं है। इस बार ज्यादातर सीटों पर आमने-सामने का मुकाबला है।
इस एक बात जो देखने को मिली है वह यह कि इस बार इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने एकजुटता दिखाई है। इसका असर परिणाम पर भी दिख सकता है।
इस बार के चुनाव में आप देखेंगे कि दोनों ही पार्टियों ने मुद्दे को लोगों के बीच तक पहुंचाया। इंडिया गठबंधन ने आदिवासी और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को भुनाने की कोशिश की तो वहीं एनडीए ने भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया।
राजनीतिक पार्टियों के अपने दावे
झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता डॉ तनुज खत्री कहते हैं, गर्मी के मौसम में कमल का फूल मुरझा गया है। सभी की सभी 14 लोकसभा सीटों पर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों की जीत होगी। भाजपा के बड़े-बड़े नेता हारेंगे। प्रधानमंत्री ने दस सालों तक झूठ बोला। झारखंड की जनता ने हिसाब ले लिया है, अब चार तारीख को बड़ी घोषणा होगी। झारखंड इंडिया गठबंधन की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएगा और झारखंड का नेतृत्व भी दिखेगा।
वहीं भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता प्रत्तुल शाहदेव ने कहा कि आज संथाल में चुनाव संपन्न हो गया। हम तीनों सीट पर विजय हासिल करेंगे। शिबू सोरेन के नाम पर वोट मांगते हैं लेकिन वहां से खुद वह हार गए थे। हमने झारखंड में गांडेय विधानसभा सीट को जोड़कर 15- 0 का लक्ष्य रखा है वो हम आसानी से हासिल करेंगे।
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