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Writer Pandit Mukhram Sharma: जिस तरह आज के समय में बाहुबली और आरआरआर की वजह से एस. एस. राजामौली को स्टार स्क्रीनप्ले राइटर का दर्जा हासिल है. या गुजरे जमाने में शोले, दीवार और जंजीर के लिए सलीम-जावेद को वो मुकाम मिला हुआ था. इन सब से कहीं पहले एक ऐसे स्क्रीनप्ले राइटर भी फिल्म इंडस्ट्री में थे, जिनके नाम से फिल्में बिका करती थीं. या यूं कहिए कि उनका नाम ही फिल्में बिकवाने की गारंटी था. ये थे मेरठ के पंडित मुखराम शर्मा, जिन्होंने ‘साधना’, ‘धूल का फूल’ और ‘हमजोली’ सहित 24 फिल्मों के लिए पटकथा लेखन का काम किया. वो उस समय फिल्मी दुनिया में कथा, पटकथा और संवाद लेखन के मामले में पहले नंबर पर थे. पूरे देश से फिल्म डिस्ट्रिब्यूटर मुखराम शर्मा को फोन करके पूछा करते थे कि उनकी अगली फिल्म कौन सी है और उसमें कौन एक्टर- एक्ट्रेस काम कर रहे हैं. उस समय मुखराम शर्मा का जवाब किसी फिल्म के सभी राइट्स रातोंरात बिकवाने की गारंटी हुआ करता था.
कौन थे पंडित मुखराम शर्मा
भारत डिस्कवरी के अनुसार मुखराम शर्मा का जन्म मेरठ जिले के परीक्षितगढ़ इलाके के गांव पूठी में 30 मई 1909 को हुआ था. पढ़ाई पूरी करने बाद वह मेरठ में टीचर बन गए. उनको पढ़ाने में मजा आता था, लेकिन फिर भी उन्हें एक कमी खटकती थी. दरअसल वह फिल्मों के काफी शौकीन थे. उन्हें प्रभात फिल्म कंपनी और न्यू थिएटर द्वारा बनाई गई फिल्में अच्छी लगती थीं. मुखराम शर्मा उस समय तक पत्र-पत्रिकाओं के लिए कहानी और कविताएं लिखने लगे थे. अब उन्होंने तय किया कि वह फिल्मों के लिए लिखने का काम करेंगे. 1939 में मुखराम शर्मा माया नगरी मुंबई आ गए.
1939 में पकड़ी मुंबई की राह
अपने दोस्त के बुलावे पर मुखराम शर्मा पत्नी और बच्चों के साथ मुंबई आ गए, लेकिन शुरुआत में उन्हें कोई काम नहीं मिला. निराश होकर वह पुणे चले गए. वहां उन्होंने वी. शांताराम की प्रभात फिल्म्स के आर्टिस्टों को मराठी सिखाने का काम किया. इस काम के लिए उन्हें 40 रुपये महीना मिलता था. फिल्मों में पहला काम साल 1942 में मिला जब उन्हें फिल्म दस बजे के लिए गीत लिखने को मिले. राजा नेने द्वारा डायरेक्ट की गई इस फिल्म में उर्मिला हीरोइन और परेश बनर्जी हीरो थे. फिल्म सुपरहिट हो गई. राजा नेने ने उन्हें अगली फिल्म तारामती की कहानी लिखने का मौका दिया. यह फिल्म राजा हरीशचंद्र और तारामती की प्रेम कहानी पर आधारित थी. अब तो सफलता मुखराम शर्मा के कदम चूमने लगी. उनकी लिखी अगली दो फिल्में ‘विष्णु भगवान’ और ‘नल-दमयंती’ भी हिट रहीं.
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फिल्में हुईं हिट तो क्या जगी इच्छा
लेखक के तौर पर सफल होने के बाद मुखराम शर्मा की दिली इच्छा थी कि वो किसी सामाजिक विषय पर बनने वाली फिल्म की कहानी लिखें. यह मौका भी उन्हें जल्द ही मिल गया. यह मौका भी उन्हें राजा नेने ने ही दिया. लेकिन मराठी में बनी यह फिल्म चली नहीं. लेकिन उनकी अगली मराठी फिल्म ‘स्त्री जन्मा तुझी कहानी’ हिट हो गई. यह फिल्म बाद में हिंदी में ‘औरत तेरी यही कहानी’ नाम से बनाई गई. इसके बाद मुखराम शर्मा इतने मशहूर हो गए कि पुणे में उनके घर पर फिल्म बनाने वालों की लाइन लग गई. यही वो वक्त था जब उन्होंने फिर से मुंबई जाने का फैसला किया.
‘औलाद‘ की सफलता के बाद चढ़ते गए सफलता की सीढ़ियां
पुणे से मुंबई आने के बाद उनकी पहली फिल्म औलाद‘ थी. यह फिल्म जबर्दस्त सफल रही. साल 1955 में उन्हें पहली बार फिल्म फेयर अवार्ड मिला. लेखक के रूप में सफल होने के बाद उन्होंने फिल्मों का निर्माण भी किया. 1958 में मुखराम शर्मा ने ‘तलाक’ और ‘संतान’ सहित आधा दर्जन फिल्में बनाईं. वह अपनी फिल्म में सामाजिक विषयों को उठाते थे. इसी वजह से उनकी फिल्में काफी पसंद की जाती थी.
‘साधना’ ने दी उन्हें अलग पहचान
‘साधना’ मुखराम शर्मा की मशहूर फिल्मों में से एक थी. इस फिल्म में उन्होंने वेश्या की जिंदगी के बारे में रोशनी डाली है. इस फिल्म की सफलता ने यह बताया कि मुखराम शर्मा दर्शकों की नब्ज समझने में माहिर थे. इस फिल्म से जुड़ा एक रोचक किस्सा भी है. मुखराम शर्मा चाहते थे कि विमल राय इस फिल्म का निर्देशन करें, लेकिन विमल राय इसका अंत बदलना चाहते थे. विमल राय का कहना था कि दर्शक इसका अंत स्वीकार नहीं करेंगे. लेकिन मुखराम शर्मा यह बात सुनकर उनकी चलती कार से उतर गए और बी. आर. चोपड़ा के पास गए. बी. आर. चोपड़ा उनकी कहानी को बिना बदलाव फिल्माने के लिए तैयार थे. इसके बाद दोनों ने लंबे समय तक साथ में काम किया. बी. आर. चोपड़ा उन्हें ‘ऑथर ऑफ अवर सक्सेस’ कहा करते थे. दोनों के बीच दोस्ती का रिश्ता जीवन पर्यंत बना रहा.
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साउथ में भी बने स्टार राइटर
मुखराम शर्मा ने साउथ फिल्म इंडस्ट्री में भी काम किया. वहां भी उनको स्टार राइटर का दर्जा हासिल था. वहां उन्होंने नायडू के लिए’ देवता’ और एल.वी. प्रसाद के लिए एक के बाद कई फिल्में लिखीं. इनमें ‘दादी मां’, ‘जीने की राह’, ‘मै सुंदर हूं’ और ‘राजा और रंक’ मुख्य हैं. इसके अलावा उन्होंने अन्य निर्माता- निर्देशकों के लिए दो कलियां, घराना, गृहस्थी, प्यार किया तो डरना क्या और हमजोली जैसी फिल्में लिखीं. यह सभी फिल्में अपने समय की हिट फिल्मों में शुमार की जाती हैं. साल 1980 में उन्होंने ‘नौकर’ और ‘सौ दिन सास के’ फिल्में कीं और उसके बाद अपने शहर मेरठ लौट आए. साल 2000 में उन्होंने अपनी अंतिम सांस लीं.
तीन बार मिला फिल्मफेयर अवार्ड
मुखराम शर्मा ने 1950 से 1970 के बीच अपने शानदार काम के लिए तीन बार फिल्मफेयर अवार्ड जीता. 1961 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. फरवरी 2000 में उनके देहांत से पहले उन्हें जी लाइफटाइम अवार्ड से भी नवाजा गया.
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FIRST PUBLISHED : May 30, 2024, 16:14 IST
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