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Chabahar Port Deal: भारत और ईरान ने चाबहार बंदरगाह के मैनेजमेंट के लिए हाल ही में 10 साल के समझौते पर हस्ताक्षर किए. ये डील भारत की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी महत्वाकांक्षाओं में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होने वाली है. ईरान के मकरान के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित चाबहार बंदरगाह भारत के लिए अत्यधिक रणनीतिक महत्व रखता है. ये ईरान, मध्य एशिया और रूस के साथ व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में काम करता है.
इसके अलावा, बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हालांकि, चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के भारत के प्रयासों पर संयुक्त राज्य अमेरिका का ध्यान नहीं गया. अमेरिका ने लंबे समय से ईरान के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगा रखे हैं. चाबहार समझौते पर हस्ताक्षर होने के कुछ ही घंटों बाद, अमेरिका ने एक कड़ी चेतावनी जारी की, जिसमें तेहरान के साथ व्यापारिक लेनदेन में शामिल किसी भी व्यक्ति के लिए “प्रतिबंधों के संभावित जोखिम” पर जोर दिया गया.
अमेरिका ने धमकी देने से पहले नहीं दिया इस ओर ध्यान
चाबहार बंदरगाह परियोजना न केवल एक आर्थिक अवसर देती है बल्कि व्यापार मार्गों में विविधता लाने और दुश्मन देशों के गलियारों पर निर्भरता को कम करने के लिए एक रणनीतिक जरूरत है. पाकिस्तान में कराची और ग्वादर के बंदरगाहों को दरकिनार करके, भारत अपने आर्थिक स्थिति को मजबूत करते हुए, मध्य एशिया और रूस के साथ व्यापार के नए रास्ते खोल सकता है.
ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, INSTC 2018-19 से चालू है, जिससे भू-राजनीतिक प्रतिकूलताओं के बीच भी छोटे शिपमेंट की सुविधा मिल रही है. हालांकि प्रतिबंधों से पैदा व्यवधान के जोखिम को कम करने के लिए, भारत सरकार को चाबहार और आईएनएसटीसी में संचालित अपनी कंपनियों की सुरक्षा के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करनी होगी.
संयुक्त राज्य अमेरिका को चाबहार बंदरगाह और आईएनएसटीसी के साथ भारत की भागीदारी का समर्थन करना चाहिए, क्योंकि यह मध्य एशिया और ईरान में चीनी आधिपत्य का मुकाबला करने में मदद कर सकता है.
चीन को चुनौती देता चाबहार बंदरगाह
ईरान के साथ सहयोग की सुविधा देकर, INSTC न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करता है, बल्कि क्षेत्र में चीनी प्रभुत्व के खिलाफ एक सुरक्षा कवच के रूप में भी सामने आता है. इसके अलावा, चाबहार बंदरगाह में चीनी प्रवेश की संभावना एक रणनीतिक चुनौती है, जो संभावित रूप से भारत के हितों को कमजोर कर रही है और क्षेत्र में चीनी प्रभाव को मजबूत कर रही है.
यहां ध्यान देनी वाली बात ये है कि चाहबहार बंदरगाह और ग्वादर दोनों शुरू में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) की मूल योजना का हिस्सा थे. ऐसे में चाबहार को आईएनएसटीसी में शामिल करके ईरान के साथ सहयोग को मजबूती देकर, भारत मकरान तट पर चीनी प्रभुत्व का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सकता है और धीरे-धीरे ईरान को चीन पर पूर्ण निर्भरता में पड़ने से रोक सकता है.
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