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5 साल में इंदौर में खेतों की मेढ़ों से डेढ़ लाख छायादार पेड़ कट चुके हैं। देशभर में यह आंकड़ा 53 लाख है। इन पेड़ों में ज्यादातर नीम, जामुन, महुआ और आम के हैं। कोपेनहेगन विश्वव द्यालय से जुड़े शोधकर ्ताओं ने इंदौर सहित देश के प्रमुख शहरों में सर्वे कर रिपोर
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शहर से बाहर निकलते ही खेत नजर आते थे तो उनकी मेढ़ पर कभी नीम, महुआ, जामुन जैसे पेड़ों की बहार हुआ करती थी, सावन के झूले नजर आते थे। लोग महुआ चुनते। नीम, पीपल की पूजा होती, जामुन पकते तो खाने के लिए पक्षियों और मवेशियों का मेला सा लग जाता था, लेकिन कहीं न कहीं पेड़ों के साथ यह सब भी गायब होता जा रहा है।
- 3889 वर्ग किमी इंदौर वन मंडल
- 710 वर्ग किमी में जंगल यानी पेड़
तेजी से सिमट रहा हमारे जंगलों का दायरा
इंदौर वन मंडल की बात की जाए तो 3889 वर्ग किमी की वन भूमि इंदौर, महू, मानपुर और चोरल रेंज को मिलाकर है। इसमें से वन भूमि पर जंगल यानी पेड़ों की बात की जाए तो यह महज 710 वर्ग किमी ही बचा है। इसमें भी चोरल रेंज में जंगल ठीक स्थिति में है, लेकिन यहां पर जंगल को साफ कर खेतों में तब्दील करने का काम तेजी से चल रहा है।
घना जंगल अब किसी भी रेंज में नहीं
अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं, उनसे पता चला है कि करीब 11 फीसदी बड़े छायादार पेड़ 2018 तक गायब हो चुके थे। इंदौर की बात की जाए तो चारों में से किसी रेंज में घना जंगल नहीं है। घने जंगल का मतलब यह है कि दोपहर 12 बजे जब सूरज सिर पर हो तो जंगल में धूप नजर नहीं आना चाहिए। घनी छांव होना चाहिए। केवल चोरल और मानपुर में ही कुछ हिस्सा मध्यम स्तर के जंगल का बचा है। इस दौरान कई हॉटस्पॉट ऐसे भी दर्ज किए गए, जहां खेतों में मौजूद आधे (50 फीसदी) पेड़ गायब हो चुके हैं।
वहां प्रति वर्ग किलोमीटर औसतन 22 पेड़ गायब होने की जानकारी मिली है। इस बीच कुछ ऐसे छोटे हॉटस्पॉट क्षेत्र भी उभरे हैं, जिनमें पेड़ों का काफी नुकसान हुआ है। इनमें पूर्वी मध्यप्रदेश में इंदौर के आसपास का क्षेत्र शामिल है। 2018 से 2022 के बीच बड़ी संख्या में पेड़ खेतों से अदृश्य थे। मतलब इस दौरान हर किलोमीटर क्षेत्र से औसत 2.7 पेड़ नदारद मिले।
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