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53 मिनट पहले
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तीसरे चरण की 14 हॉट सीटों पर एक नजर…
1. गांधीनगर, गुजरात
भाजपा की ओर से देश के गृह मंत्री अमित शाह यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर 30 सालों से भाजपा का कब्जा है। भाजपा के कई दिग्गज नेता 1989 से यहां से जीत रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार अमित शाह ने यहां से चुनाव लड़ा और करीब साढ़े पांच लाख वोटों से जीत हासिल की।
वहीं, कांग्रेस ने इस सीट से पार्टी की सचिव सोनल रमणभाई पटेल को मैदान में उतारा है। वे मुंबई और पश्चिमी महाराष्ट्र में पार्टी की सह प्रभारी हैं। साथ ही गुजरात महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। वे कह चुकी हैं कि उन्हें भाजपा के वरिष्ठ नेता के खिलाफ चुनाव लड़ने में बिल्कुल भी हिचक नहीं है।
2. पोरबंदर, गुजरात
महात्मा गांधी की जन्मस्थली से भाजपा ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया को उम्मीदवार बनाया है। पेशे से वेटरनरी डॉक्टर मंडाविया गुजरात से दो बार के राज्यसभा सांसद हैं। चुनाव प्रचार के लिए केंद्रीय मंत्री ने क्षेत्र में करीब 150 किमी. की पदयात्रा की है। भीड़भाड़ भरे रोड शो से दूरी बनाए रखते हुए उन्होंने प्रचार का यह पुराना तरीका अपनाया है।
इस सीट पर पाटीदार समुदाय का खासा प्रभाव है। यही कारण है कि कांग्रेस ने पूर्व विधायक और पाटीदार नेता ललित वसोया को अपना उम्मीदवार बनाया है। पाटीदार आरक्षण आंदोलन में सक्रिय रहे वसोया 2019 में भी कांग्रेस के प्रत्याशी थे, लेकिन भाजपा के रमेशभाई धाडुक से हार गए थे।
3. गुना, मध्य प्रदेश
ज्योतिरादित्य सिंधिया एक बार फिर अपनी पारंपरिक सीट से चुनाव मैदान में हैं। वे 2019 में अपने पूर्व सहयोगी केपी सिंह से चुनाव हार गए थे। हालांकि तब वे कांग्रेस में थे। हार से सबक लेते हुए सिंधिया ने इस बार मैदान में खूब मेहनत की। उनका बेटा और पत्नी भी उनके साथ चुनाव प्रचार में लगे थे।
वहीं, कांग्रेस ने सिंधिया परिवार के राजनीतिक विरोधी राव यादवेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है। राव 2023 तक भाजपा में थे। उनके पिता मुंगावली सीट से तीन बार भाजपा के विधायक रहे हैं। उन्होंने माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य के खिलाफ भी चुनाव लड़ा था। यादवेंद्र 2023 में कांग्रेस के टिकट पर सिंधिया के करीबी बृजेंद्र सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
4. विदिशा, मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश में मामा के नाम से मशहूर शिवराज सिंह चौहान करीब 20 साल बाद दोबारा विदिशा से चुनाव लड़ रहे हैं। 2005 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने से पहले वे यहां से पांच बार सांसद चुने जा चुके थे। वे अभी यहां की बुधनी विधानसभा सीट से विधायक हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और सुषमा स्वराज भी यहां से चुनाव जीत चुके हैं।
मामा के सामने कांग्रेस ने ‘दादा’ को उतारा है। दरअसल, कांग्रेस प्रत्याशी प्रतापभानु सिंह स्थानीय नेता हैं और दादा के उपनाम से जाने जाते हैं। भानु 1980 और 1984 में दो बार यहां से सांसद रह चुके हैं। वे मध्य प्रदेश यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष और 1980-84 तक रक्षा मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे हैं।
5. राजगढ़, मध्य प्रदेश
दिग्विजय सिंह ने करीब 32 साल बाद दोबारा राजगढ़ सीट पर वापसी की है। 1991 में दिग्विजय यहां से सांसद बने थे, लेकिन 1993 में मुख्यमंत्री बनने के बाद इस्तीफा दे दिया था। तब से 2004 तक उनके भाई लक्ष्मण सिंह इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों से सांसद रहे। 2019 में दिग्विजय सिंह ने भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा से हार गए।
वहीं, दूसरी तरफ भाजपा ने दो बार से सांसद रोडमल नागर को तीसरी बार भी मैदान में उतारा है। पिछले दो चुनावों में आसानी से जीत हासिल करने वाले नागर के लिए इस बार चुनौती कड़ी है। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस इतने कद्दावर नेता को उतारेगी। इसी वजह से नागर प्रधानमंत्री मोदी की छवि के सहारे चुनाव लड़ रहे हैं।
6. बारामती, महाराष्ट्र
बारामती सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प है। पिछले साल एनसीपी में दो फाड़ होने के बाद यहां इमोशनल मुद्दे पर चुनाव लड़ा जा रहा है। चुनाव में शरद पवार की बेटी और बहू के आमने-सामने होने और परिवार टूटने का मुद्दा बड़ा है। मोदी की गारंटी और राम मंदिर जैसे मुद्दे यहां गायब हैं। एक तरफ सुप्रिया सुले एनसीपी (शरद पवार गुट) से मैदान में हैं तो उनकी भाभी और महाराष्ट्र के डिप्टी CM की पत्नी सुनेत्रा पवार एनसीपी से उन्हें टक्कर दे रही हैं।
1960 में भी ऐसा ही मुकाबला देखने को मिला था, जब शरद पवार अपने बड़े भाई वसंतराव के खिलाफ उतरे थे। तब उनके भाई चुनाव हार गए थे। यह सीट एनसीपी का गढ़ मानी जाती है। शरद पवार यहां से छह बार सांसद रह चुके हैं। अजीत पवार भी यहां से एक बार सांसद रह चुके हैं, जबकि पिछले तीन बार से सुप्रिया यहां से सांसद चुनी जा रही हैं।
7. सातारा, महाराष्ट्र
भाजपा इस सीट पर पहली बार कमल खिलने की आस लगाए बैठी है। भाजपा ने आज तक कभी भी यह सीट नहीं जीती, लेकिन पार्टी को छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज छत्रपति उदयनराजे भोसले से पूरी उम्मीद है। भोसले 2004 से 2014 तक तीन बार यहां से सांसद रह चुके हैं। 2019 का चुनाव भी उन्होंने ही जीता था, लेकिन भाजपा जॉइन करने के बाद उन्हें इस सीट से इस्तीफा देना पड़ा। इसी साल हुए उपचुनाव में एनसीपी के श्रीनिवास पाटिल से चुनाव हार गए।
वहीं, दूसरी तरफ एनसीपी (शरद पवार गुट) ने ट्रेड यूनियन के नेता रहे और चार बार के विधायक रहे शशिकांत शिंदे को मैदान में उतारा है। शिंदे 2019 का विधानसभा चुनाव हार गए थे और अभी विधान परिषद के सदस्य हैं। सातारा शरद पवार का गृह जिला है और एनसीपी (शरद पवार गुट) की यहां गहरी पैठ है, इसलिए यहां मुकाबला टक्कर का है।
8. रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग, महाराष्ट्र
केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री नारायण राणे यहां से भाजपा के उम्मीदवार हैं। राज्यसभा सांसद राणे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। वे सिंधुदुर्ग की कुडाल सीट से छह बार विधायक रहे हैं। शिवसेना से राजनीति शुरू करके राणे मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे, लेकिन 2005 में उद्धव ठाकरे से विवाद के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए थे। फिर 2017 में कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाई और 2019 में भाजपा में पार्टी का विलय कर दिया। लंबे राजनीतिक अनुभव वाले राणे के खिलाफ इंडी गठबंधन की ओर से शिवसेना (उद्धव गुट) के विनायक राउत मैदान में हैं। वे पिछले दो लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं।
9. आगरा, उत्तर प्रदेश
भाजपा ने आगरा लोकसभा सीट से केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतारा है। बघेल ने अपने करियर की शुरुआत बतौर पुलिस सब इंस्पेक्टर की। इसके बाद वे आगरा कॉलेज में मिलिट्री साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर भी रहे। अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत उन्होंने समाजवादी पार्टी से की और बसपा से होते हुए 2014 में भाजपा का हिस्सा बन गए। वे चार बार सांसद और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं।
समाजवादी पार्टी ने सीट के 30% दलित वोटर्स को साधने के लिए सुरेश चंद कर्दम को उतारा है। वे उसी समुदाय से आते हैं, जिससे बसपा सुप्रीमो मायावती आती हैं। यहां हैरानी की बात यह है कि बड़ी संख्या में दलित वोटर होने के बाद भी बसपा का कोई भी उम्मीदवार आज तक यहां से जीत नहीं सका है।
10. मैनपुरी, उत्तर प्रदेश
मुलायम सिंह यादव की विरासत लिए उनकी बहू डिंपल यादव मैनपुरी से चुनाव मैदान में हैं। 2019 के चुनाव में मुलायम सिंह यहां से सांसद चुने गए थे। 2022 में उनकी मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में डिंपल सांसद चुनी गईं। इससे पहले वे उत्तर प्रदेश की कन्नौज सीट से दो बार सांसद रह चुकी थीं, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा के सुब्रत पाठक से हार गई थीं।
भाजपा ने डिंपल के सामने योगी सरकार में पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह को उतारा है। जयवीर मैनपुरी सदर से विधायक हैं। वे कुल तीन बार विधायक और दो बार एमएलसी रह चुके हैं। साथ ही 1999 से 2008 तक तीन बार जिला सहकारी बैंक फिरोजाबाद के अध्यक्ष भी रहे हैं।
11. उत्तर गोवा, गोवा
केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाइक उत्तर गोवा सीट से भाजपा के उम्मीदवार हैं। वे लगातार पांच बार से यह सीट जीतते आ रहे हैं। वे 1988 में भाजपा के राज्य महासचिव बनाए गए और 1990 में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। 1994 में विधायक और 1999 में सांसद चुने गए। वे तभी से लगातार सांसद चुने जा रहे हैं। नाइक मोदी मंत्रिमंडल में आयुष मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और रक्षा राज्य मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं।
वहीं, कांग्रेस ने राज्य के उपमुख्यमंत्री रहे रमाकांत खलप को उम्मीदवार बनाया है। वे छह बार विधायक रहे हैं। 1996 में सांसद चुने जाने के बाद केंद्रीय विधि राज्य मंत्री रहे।
12. बेलगाम, कर्नाटक
भाजपा ने बेलगाम सीट से कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे जगदीश शेट्टार को उम्मीदवार बनाया है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से राजनीति शुरू करने वाले शेट्टार संघ से भी जुड़े रहे हैं। हालांकि, पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में टिकट न दिए जाने पर नाराज होकर कांग्रेस में चले गए और चुनाव लड़ा। हारने के बाद दोबारा भाजपा में आ गए। इस सीट पर 2004 से ही भाजपा का कब्जा है। 2020 में मृत्यु तक अंगदी सुरेश चन्नबसप्पा इस सीट से सांसद रहे। इसके बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी मंगला सुरेश ने यहां से जीत दर्ज की थी।
कांग्रेस ने इस सीट पर मृणाल हेब्बलकर को उतारा है। वे राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी हेब्बलकर के बेटे हैं और पिछले सात-आठ साल से पार्टी में सक्रिय हैं। लक्ष्मी बेलगाम ग्रामीण सीट से विधायक भी हैं।
13. हावेरी, कर्नाटक
भाजपा ने हावेरी सीट से लिंगायत नेता बसवराज बोम्मई को मैदान में उतारा है। जनता दल से राजनीति की शुरुआत करने वाले बसवराज 2008 में भाजपा में शामिल हुए थे। उसी साल शिग्गांव सीट से विधायक चुने गए और येदियुरप्पा सरकार में मंत्री रहे। वे बीएस येदियुरप्पा के करीबी हैं और उनके बाद दूसरे बड़े लिंगायत नेता हैं। इसी कारण 2021 में येदियुरप्पा के बाद बोम्मई राज्य के मुख्यमंत्री बने। उनके पिता बीएस बोम्मई भी राज्क् मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
कांग्रेस ने बोम्मई के सामने आनंदस्वामी गद्दादेवर्मथ को उतारा है। वे राजनीति का बहुत चर्चित चेहरा नहीं हैं। हालांकि, यह उनका पहला चुनाव नहीं है, हालांकि इससे पहले लड़े दोनों चुनाव वे हार गए थे।
14. धारवाड़, कर्नाटक
2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट पर भाजपा के प्रल्हाद जोशी लगातार जीतते आ रहे हैं। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री जोशी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनके पास कोयला मंत्रालय की भी जिम्मेदारी है। वहीं कांग्रेस ने उनके सामने विनोद आसुती को उतारा है। वे पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं।
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