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धरती आबा बिरसा मुंडा की जयंती पर 15 नवंबर 2000 को झारखंड का जन्म हुआ था।
14-15 नवंबर 2000 की दरमियानी रात, आज के युवा झारखंड का जन्म हुआ था। आधी रात को सड़कों पर वह थिरकन, नृत्य-संगीत और उल्लास, जिन्होंने देखा उनकी स्मृति में हैं। उन्हीं स्मृतियों से आपको रूबरू कर रहे हैं। इस कहानी के जरिए आपको फ्लैशबैक में ले चलते हैं….
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सबसे पहले कहानी उस दिन की जब राज्य गठन का रास्ता साफ हुआ
11 अगस्त 2000
11 अगस्त की शाम। दिल्ली से खबर आई कि राज्यसभा में झारखंड के गठन का विधेयक पास हो गया। यह सूचना आग की तरह फैल गई। लोग सड़कों पर उतर आए। रांची के फिरायाला चौक, अपर बाजार से लेकर सुजाता चौक तक होली-दिवाली का माहौल हो गया। रंग-अबीर, पटाखे, जिसको जो मिला वो छोड़ रहा था। छोटे-छोटे बच्चों को लोग कंधों पर लेकर जश्न मना रहे थे। ये थिरकन अपनी अलग पहचान की थी। राज्य के विकास की नई उम्मीद की थी।
उस दिन को याद कर सीनियर जर्नलिस्ट श्याम किशोर चौबे बताते हैं, ‘हमलोग फिरायालाल चौक पर थे। जैसे खबर मिली, कुछ देर तक समझ नहीं आया। 72 साल पुरानी मांग जो पूरी हुई थी। कुछ लोग तो उसे सपना ही मान रहे थे। देश में राज्य तो कई बने, लेकिन झारखंड उससे अलग था। इसकी लड़ाई लंबी चली थी।’
चौबे बताते हैं, ‘अमूमन रात 9 बजे तक सो जाने वाली रांची शायद पहली बार रात भर जगी होगी। सब सड़कों पर थे। एक-दूसरे के यहां आ जा रहे थे। उस वक्त बहुत कम लोगों के पास फोन और टीवी होता था। इसलिए जश्न घर-घर जाकर ही मना रहे थे। ये सिलसिला पूरे दो दिन तक चला।’
सीएम का नाम तय होने पर बाबूलाल दुमका पहुंचे तो मनी दिवाली
13 नवंबरः संथाल
सीनियर जर्नलिस्ट आरके नीरद बताते हैं, ‘बाबूलाल मरांडी दिल्ली से देवघर के जसीडीह रेलवे स्टेशन पर उतरे। वहां से उनको दुमका जाना था। रेलवे स्टेशन पर भारी भीड़ थी। जसीडीह-दुमका रोड पर जब उनका काफिला निकला तो गाड़ियों का रेला लगा था। आदिवासी महिलाएं उनका जगह-जगह अड़हूल के फूल से स्वागत कर रही थीं।’
वह बताते हैं, ‘दुमका में एक छोटा सा मंच बना था, जहां मरांडी को भाषण देना था। लेकिन भीड़ के धक्के से वह मंच से दूर हो गए। भाषण नहीं हो पाया।’
14 नवंबर की रात को याद कर नीरद बताते हैं, ‘संताल में उस दिन दिवाली जैसा माहौल था। पटाखे फूट रहे थे। लोगों ने अपने घरों को सजा रखा था। रात भर उस दिन जश्न मन रहा था।’
शपथ ग्रहण कार्यक्रम में उपस्थित तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीस, यशवंत सिन्हा, नीतीश कुमार व अन्य। (फोटो: प्रसार भारती)
जश्न के दिन राजभवन बन गया था राजनीतिक अखाड़ा
स्थानः रांची, 14 नवंबर रात 12 बजे
14-15 नवंबर 2000 की दरमियानी रात को अचानक राजभवन के वर्तमान गुलाब गार्डन में हलचल मचने लगी। क्या कर्मचारी और क्या अफसर तेजी से अंदर बाहर हो रहे थे। पहले से तैनात पुलिस वाले समझ नहीं पा रहे थे कि आधी रात को क्या हो रहा है। राजभवन में तिल रखने की जगह नहीं थी।
वे भी जानते थे कि अब झारखंड राज्य बन चुका है। बस औपचारिकताएं बाकी हैं, लेकिन सबसे बड़ी औपचारिकता सरकार बनाने की थी। ये माना जा रहा था कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन ही झारखंड के पहले CM होंगे।
श्याम किशोर चौबे अपनी किताब ‘झारखंड एक बैचेन राज्य का सुख’ में लिखते हैं, ‘14 नवंबर की आधी रात को घड़ी की तीनों सुइयां मिलीं। कैलेंडर में तारीख बदलकर 15 नवंबर हो गई। इस दिन झारखंड की आजादी की लड़ाई के नायक ‘धरती आबा बिरसा मुंडा’ की जयंती है। लोगों को नई सरकार का इंतजार है।’
इससे पहले 31 अक्टूबर को केंद्रीय कैबिनेट सचिव पद से रिटायर हुए प्रभात कुमार को राष्ट्रपति ने राज्यपाल बनाकर भेजा था। उन्हें कलकत्ता हाईकोर्ट से ट्रांसफर होकर आए झारखंड हाईकोर्ट के कार्यकारी चीफ जस्टिस वीके गुप्ता ने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। सामने केंद्रीय मंत्री लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज, यशवंत सिन्हा सहित कई वरिष्ठ नेता बैठे थे।
इधर प्रभात कुमार को राज्यपाल की शपथ दिलाई गई और उधर उन्होंने तुरंत मंच छोड़ा और राजभवन की ओर तेजी से निकले। वहां मौजूद पत्रकारों को आश्चर्य जरूर हुआ, लेकिन वे समझ गए है कि कुछ तो गड़बड़ है।
प्रभात कुमार वहां पहुंचे तो पता चला कि JMM, कांग्रेस, RJD आदि गठबंधन वाले नेता CM के तौर पर शिबू सोरेन को शपथ दिलाने की मांग कर रहे थे। हालांकि, राज्यपाल ने उनके दावों को खारिज कर दिया। और रात एक बजकर पांच मिनट पर बाबूलाल मरांडी को पहले CM के रूप में शपथ दिला दी।
लालू होटल में कर रहे थे विधायकों का जुगाड़
14 नवंबर की रात राजद प्रमुख लालू यादव रांची के होटल में थे। वो शिबू सोरेन के लिए विधायकों की जुगाड़ कर रहे थे। उनकी मंशा थी कि किसी तरह भाजपा को सरकार में आने से रोका जाए।
JMM 12, कांग्रेस 11, RJD 9, CPI 3 और CPI(M) 1 सहित कुछ 36 विधायक थे। उनका कहना था कि नौ और विधायक को जोड़ लिया जाएगा। वहीं, भाजपा के पास अपने 32, समता पार्टी के 5, JDU के 3, UGDP के 2 और दो निर्दलियों को मिलाकर 44 विधायक थे। बहुमत के लिए 41 ही चाहिए था।
आडवाणी और गोविंदाचार्य के चहेते बाबूलाल को मिली सत्ता
सीनियर जर्नलिस्ट बैजनाथ मिश्रा कहते हैं, ‘बाबूलाल मरांडी को तत्कालीन पार्टी महासचिव केएन गोविंदाचार्य का आशीर्वाद हासिल था। वह लालकृष्ण आडवाणी के चहेते थे। मरांडी के खुरपेंची जमात के अगुआ सरयू राय थे। विधायकों को लादकर दिल्ली पहुंचा दिया गया।’
उन्होंने बताया कि कड़िया मान रहे थे कि फैसला अटल जी करेंगे और वह हमारे हक में होगा। अटल जी को जब तक नए खेल का पता चलता, मरांडी से केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिलवा दिया गया। वह उस समय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री थे। भाजपा मुख्यालय में बैठक हुई, लेकिन यह महज फर्ज अदायगी थी।
कड़िया मुंडा को बाबूलाल की जगह केंद्र में मंत्री बनाने की पेशकश हुई, लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया। 12 नवंबर को बाबूलाल पूरी ठसक के साथ रांची पहुंचे और विधायक दल की बैठक में नेता चुन लिए गए।
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