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विधानसभा क्षेत्रों के नक्शों में मतदान केंद्रों के लोकेशन पर सियासी बिसात पर सत्ता के समीकरण साधने के लिए जोड़-घटाव चल रहे हैं। मतदान केंद्रों की जियो टैगिंग ने इस काम को ऑनलाइन प्लान के लिए भी आसान कर दिया है। लेकिन, मतदान केंद्रों के भूगोल चुनावी अ
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विधानसभा क्षेत्रों की सीमा-रेखा में मतदान केंद्रों की स्थिति झारखंड के सामाजिक-आर्थिक बदलाव का नजारा भी दिखा रही हैं। भारत सरकार की ओर से तय इलाकाई विकास के मानकों में शहरीकरण का पैमाना भी अहम है। झारखंड में इसकी रफ्तार काफी धीमी है।
प्रदेश के 32 विधानसभा क्षेत्रों में एक भी मतदान केंद्र शहरी इलाके में नहीं है। संथालपरगना के आठ विधानसभा क्षेत्रों में तो शहरीकरण बिल्कुल भी नहीं है। इनमें बरहेट, लिट्टीपाड़ा, महेशपुर, शिकारीपाड़ा, नाला, जामा, सारठ और पोरेयाहाट है। यानी ये इलाके अभी भी विकास के निचले पायदान पर हैं। उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के कई विधानसभा क्षेत्र भी शहरी बूथों से बिल्कुल वंचित हैं।
राज्य में धीमी है शहरीकरण की रफ्तार
झारखंड के मंत्रिमंडलीय निर्वाचन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के 29,562 मतदान केंद्रों में केवल 5042 शहरी हैं। बाकी मतदान केंद्र ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। साफ है कि निर्वाचन विभाग का यह आकलन नगर निकाय के तहत आने वाले मतदान केंद्रों और ग्राम-पंचायतों की सीमा में आने वाले मतदान केंद्रो को लेकर है।
भारत सरकार का जनगणना निदेशालय तो पांच हजार से अधिक आबादी वाले ऐसे किसी भी स्थान, जहां जनसंख्या घनत्व प्रति वर्ग किलोमीटर 400 से अधिक हो और पुरुष कार्यबल का 75 फीसदी से अधिक गैर कृषि कार्यों में संलग्न हो, शहर मानता है। इन्हें सेंसस टाउन का दर्जा देता है। एक अनुमान के मुताबिक, अगर 2021 में जनगणना हुई होती तो लगभग 100 से अधिक सेंसस टाउन यानी शहर बनते इलाकों की पहचान की जा सकती थी।
चार विस क्षेत्रों से गांव की झलक गायब
झारखंड के चार ही विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से शहरी हैं। इन क्षेत्रों में एक भी मतदान केंद्र ग्रामीण इलाकों में नहीं हैं। सभी नगर निकायों की सीमा के तहत आते हैं। ये विधानसभा क्षेत्र रांची, जमशेदपुर पूर्वी, जमशेदपुर पश्चिमी और झरिया हैं। विकास की तेज रफ्तार ने इन विधानसभा क्षेत्रों के बीचोंबीच बसे गांवों पर भी शहर का पर्दा डाल दिया है।
झरिया में कोयले की खदान के कारण देश के अलग-अलग हिस्सों से आए लोगों ने बिल्कुल ग्रामीण आबादी वाले इस इलाके को वहां नगर निकाय बनने के बाद शहर की पहचान दी है। वहीं जमशेदपुर में हुए औद्योगिक विकास ने यहां के दो विधानसभा क्षेत्रों से ग्रामीण परिवेश को बिल्कुल ही दूर कर दिया है। रांची में राजधानी बनने के बाद नए बसने वालों की बाढ़ के कारण यह बदलाव हुआ है।
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