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12वीं सदी में मिली भगवान सूर्य की प्रतिमा।
सूर्य ऊर्जा के स्रोत हैं। अपनी किरणों से जग को रोशन करते हैं। पौधों को बढ़ने व फूलों को खिलने में मदद करते हैं। यही कारण है कि मनुष्य आदिकाल से भगवान सूर्य की उपासना करते रहे हैं। झारखंड के सभी क्षेत्रों में सूर्य उपासना का बहुत महत्व रहा है। कारण यह
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पुरातत्वविद डॉ. हरेन्द्र सिन्हा बताते हैं कि झारखंड में जो प्रतिमाएं मिली हैं, उनमें भगवान सूर्य को खड़ी स्थिति में दर्शाया गया है। उनके दोनों हाथों में कमल के फूल हैं, जो कंधों के ऊपर तक जाते हैं। उनके पीछे दो अनुचर खड़े दिखाए देते हैं। प्रतिमा में सामने के निचले हिस्से में सात घोड़े भी उकेरे गए हैं। ये बताते हैं कि सूर्य हमेशा गतिमान हैं। बिहार और झारखंड में पुरातत्ववेत्ताओं को भगवान सूर्य की ऐसी ही कई प्रतिमाएं मिली हैं।
संग्रहालय में 10वीं व 12वीं शताब्दी की प्रतिमाएं हैं
संग्रहालय की गाइड निर्मला तिर्की ने बताया कि संग्रहालय में 10वीं से 12वीं शताब्दी की लगभग 100 प्राचीन प्रतिमाएं हैं। इनमें भगवान सूर्य की 7 प्रतिमाएं हैं, जो 12वीं सदी की हैं। ब्लैक बेसाल्ट से बनी प्रतिमाएं पाल-कालीन कलाकृति का सुंदर नमूना हैं। भगवान विष्णु, मां दुर्गा, मां पार्वती, भगवान गणेश आदि की भी प्रतिमाएं संग्रहालय में हैं। ये प्रतिमाएं पूर्वी सिंहभूम के ईचागढ़, साहिबगंज, रांची, लोहरदगा आदि स्थानों पर खुदाई में मिली हैं।
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