[ad_1]
राज्य के विधानसभा क्षेत्रों का हिसाब-किताब अजीब है। किसी में मतदाताओं की संख्या बहुत अधिक है तो किसी में बहुत कम। मसलन, बोकारो विधानसभा क्षेत्र में मनोहरपुर की तुलना में तीन गुना वोटर हैं। भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र में लिट्टीपाड़ा से दोगुना ज्यादा वोट
.
ऐसा इसलिए कि झारखंड में परिसीमन लागू नहीं हुआ। यह परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर हुआ था। परिसीमन आयोग की अधिसूचना 17 अगस्त 2007 को निकली थी। जो यह बताती है कि झारखंड में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों के स्वरूप परिवर्तन के दौरान कैसे वह रांची और बोकारो जिले में होने वाली सार्वजनिक बैठकें, राज्य में पनपे आक्रोश और संभावित हिंसा की वजह से क्यों नहीं हो पाईं। दरअसल, परिसीमन आयोग की रिपोर्ट में आदिवासी सीटों की संख्या घटने की भनक लगते ही राज्य में बड़ा विरोध शुरू हुआ, नतीजा हुआ कि परिसीमन आयोग की अनुशंसा झारखंड में लागू ही नहीं हुई, तब कुछ साल के लिए टाल दिया गया।
क्यों लागू नहीं हुआ झारखंड में परिसीमन…
लोकसभा व विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन प्रस्तावों पर आपत्ति और सुझाव के लिए आयोग ने 14 मई 2007 की तारीख तय की। फिर इसे बढ़ाकर 22 मई किया। इससे पूर्व 12 मई 2007 को मीडिया के माध्यम से इसे प्रचारित किया। बोकारो और रांची में सार्वजनिक बैठकें होनी थीं। लेकिन अनुसूचित जन जाति की सीटों के घटने से पनपे राज्यव्यापी आक्रोश और संभावित हिंसा को देखते हुए इसे रद्द कर दिया। फिर जनता से सुझाव मांगे। 15 दिन का समय दिया। लेकिन, इसमें कुछ खास बदला नहीं। तत्कालीन राज्य सरकार ने केंद्र को राज्य की स्थिति से अवगत कराया। प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने झारखंड में आयोग की रिपोर्ट लागू करने पर 2026 तक रोक लगा दी।
[ad_2]
Source link