राजेश गोस्वामी द्वारा संकलन
छठी मैया भगवान ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थी।
छठी मैया भगवान भोलेनाथ की पुत्रवधू एव जेष्ठ पुत्र कार्तिकेय की पत्नी थी।
छठी मैया भगवान सूर्य देव की बहन थी।
इस पर्व को मनाने का वैज्ञानिक कारण भी हैं।
त्रेतायुग एव द्वापर युग से इस पर्व का जिक्र पुराणों में मिलता हैं। कार्तिक मास के षष्ठी को विशेष महत्व है। लेकिन यह चार दिवसीय पर्व है। चतुर्थी ,पंचमी, षष्ठी एव सप्तमी
वैज्ञानिक कारण
बरसात के बाद जो भी फल सब्जी, (कोहड़ा, लौकी, मूली, गन्ना, सुथनी, हल्दी, अदरख, मुमफली, संतरा, निब्बू , सिंघडा, एव शकरकंद) आदि से भगवान सूर्य को शाम एव सुबह में अर्ध्य दिया जाता हैं। हे भगवान आपकी कृपा से यह फल पुष्प बचा है। इन्ही फल पुष्पों से आपको धन्यवाद स्वरूप अर्घ्य देते हैं।
कार्तिक मास के षष्ठी को व्रत रहकर सूर्य आराधना करने से पुत्ररत्न की प्राप्ति होती हैं।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक छठ मैया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री और भगवान सूर्य की बहन हैं. षष्ठी देवी यानी छठ मैया संतान प्राप्ति की देवी हैं और शरीर के मालिक भगवान सूर्य हैं. माना जाता है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना करते हुए खुद को दो भागों में विभाजित किया था. एक भाग पुरुष और दूसरा भाग प्रकृति के रूप में था.
त्रेतायुग में माता सीता और द्वापर युग में द्रौपदी ने भी रखा था छठ का व्रत रामायण की कहानी के अनुसार जब रावण का वध करके राम जी देवी सीता और लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या वापस लौटे थे, तो माता सीता ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को व्रत रखकर कुल की सुख-शांति के लिए षष्ठी देवी और सूर्यदेव की आराधना की थी
धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवसेना अर्थात छठी मैया का विवाह भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय से हुआ था। इस नाते से वह भगवान शिव की पुत्रवधू हुईं। वहीं कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया को सूर्य देव की बहन भी बताया गया है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, माता सीता ने सबसे पहला छठ पूजन बिहार के मुंगेर के गंगा तट पर किया था, जिसके बाद बिहार में छठ महापर्व की शुरुआत हुई थी.
छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस किवदंती के मुताबिक, जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है।
पूजन विधि
पहले शरीर को शुद्ध करने के लिए चतुर्थी को लौकी की सब्जी, चने का दाल एव भात खाकर पंचमी को ब्रत रखा जाता है। पंचमी के शाम को आम की लकड़ी पर नए चावल, नए गुड़ एव दूध से बने खीर खाकर शरीर को पूर्णतः शुद्ध कर षष्ठी को डूबते सूर्य को फल पुष्प से अर्ध्य दिया जाता हैं एव सप्तमी को सुबह उगते सूर्य को गाय के दूध फल ,एव घी से बने पकवान से अर्ध्य दिया जाता हैं।
छठ पूजा का विस्तार बहुत तेजी से हो रहा है बिहार, बंगाल, यूपी ,के साथ पूरे देश ही नही विदेशों में भी होने लगा है। ज्यादातर लोग पुत्र प्राप्ति के लिए इस व्रत को कर रहे हैं। जो भी सच्चे दिल से मनौती मांगता हैं ।अवश्य पूर्ण होता हैं।