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लोहरदगा जिले में विधानसभा की एक ही सीट है। यह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। लोहरदगा आदिवासी बहुल जिला और लोकसभा क्षेत्र भी है। अभी लोहरदगा लोकसभा और विधानसभा दोनों सीट पर कांग्रेस काबिज है। विधानसभा सीट पर आजसू से उसकी सीधी लड़ाई है। यहां बागी त
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यहां की राजनीति में जनजातीय समुदाय की निर्णायक भूमिका रहती है। चुनाव परिणाम को 15 प्रतिशत मुस्लिम और 25 फीसदी अन्य जाति के वोटर भी प्रभावित करते हैं। खनिज संपदा से परिपूर्ण इस जिले के लोग आज भी पलायन, बेरोजगारी, भुखमरी व भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फंसे हुए हैं।
लोहरदगा विधानसभा सीट पर अभी इंडिया ब्लॉक से कांग्रेस के डॉ. रामेश्वर उरांव विधायक हैं। कांग्रेस ने फिर उन्हें ही मौका दिया है। इस बार आजसू से गठबंधन होने के कारण भाजपा ने उम्मीदवार नहीं दिया है।
एनडीए ब्लॉक से आजसू के टिकट पर पूर्व विधायक कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत चुनाव लड़ रही हैं। 2019 के चुनाव में डॉ. उरांव ने भाजपा के सुखदेव भगत को 30 हजार से अधिक मतों से हराया था। जून में हुए लोकसभा चुनाव में लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र से इंडिया गठबंधन को 27,254 वोटों की लीड मिली थी।
डॉ. उरांव के लिए परेशानी की बात यह है कि इस बार उनके सामने भाजपा और आजसू अलग-अलग नहीं, बल्कि एकजुट हैं। जदयू भी इसमें शामिल है। लोकसभा चुनाव में मोदी के चेहरे पर वोट मांगने वाले भाजपाई थोड़े ढीले थे, लेकिन विधानसभा चुनाव में स्थिति उलट है। भाजपा और आजसू कार्यकर्ता कंधे से कंधे मिलाकर काम कर रहे हैं। यहां दोनों पार्टियों की बूथ स्तर तक पकड़ मजबूत है। डॉ. उरांव को इस बार एंटी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ सकता है।
राज्य गठन के बाद भाजपा लोहरदगा में कभी नहीं जीती
राज्य गठन के बाद हुए चार चुनावों में भाजपा ने लोहरदगा सीट कभी नहीं जीती है। 2005 में कांग्रेस से सुखदेव भगत जीते थे। 2009 में आजसू अकेले चुनाव लड़ी और उसके प्रत्याशी कमलकिशोर भगत विजयी हुए। 2014 में आजसू व भाजपा में गठबंधन था। उम्मीदवार कमल किशोर भगत ने फिर जीत हासिल की।
लेकिन, 2015 में कोर्ट से सजायाफ्ता होने के बाद उनकी सदस्यता चली गई। उपचुनाव में कांग्रेस के सुखदेव भगत ने जीत हासिल की। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लोहरदगा सीट पर करारी हार हुई। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव ने भाजपा के सुखदेव भगत को 30 हजार से अधिक मतों से हराया। 74,380 वोट पाकर डॉ. उरांव विधायक बने। कांग्रेस छोड़कर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े सुखदेव भगत को 44,230 वोट मिले थे।
आजसू उम्मीदवार नीरू शांति भगत 39,916 वोट के साथ तीसरे स्थान पर रही थीं। इस बार कमल किशोर भगत के छोटे भाई अनिल भगत भी निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। हालांकि, उनके चुनाव मैदान में उतरने से ज्यादा फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है। भाजपा नेता रमेश उरांव भी निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। लेकिन, उनका रिकार्ड रहा है कि पहले भी दो बार निर्दलीय नामांकन करने के बाद पर्चा वापस ले चुके हैं।
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