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मंदिर के गर्भगृह में महालक्ष्मी के साथ गणेश और सरस्वती माता भी विराजित हैं।
रतलाम के महालक्ष्मी मंदिर में देशी-विदेशी नोट और आभूषणों के साथ महालक्ष्मीजी के दर्शन होंगे। मंदिर का कोना-कोना, दीवार नकदी और जेवरात से सजाई गई है। रतलाम में भारत का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां दीपावली पर्व पर करोड़ों रुपए के साथ ही इसे आभूषणों से
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दीपावली के पांच दिन बाद भाईदूज पर प्रसादी के रुपए में वापस भक्तों को अपने नोट व आभूषण लौटा दिए जाते है। अभी तक मंदिर में नगदी 1 करोड़ 47 रुपए की गिनती हो चुकी है, जबकि आभूषणों का अनुमान लगाया जा रहा है कि वह 3 करोड़ से ज्यादा के हैं।
रतलाम के माणक चौक स्थित लक्ष्मी मंदिर में धनतेरस के पहले हर साल गुजरात, महाराष्ट्र, यूपी, राजस्थान से भक्त जमा पूंजी रखने मंदिर पहुंचे थे। नोटों व आभूषणों से सजावट की शुरुआत इस बार 14 अक्टूबर शरद पूर्णिमा से हुई थी। इस दिन से भक्त मंदिर में आकर अपनी श्रद्धानुरूप नगदी व आभूषण सजावट के लिए लेकर आने लगे थे। मंदिर में भक्त निशुल्क सेवा भी देते हैं। कोई नोटों की लड़िया बनाता है तो कोई नोट लेकर आने वाले श्रद्धालुओं की इंट्री करता है। कुछ भक्त दिन से लेकर रात तक सजावट में लगे रहते है।
1 से लेकर 500 रुपए के नोटों से सजाया
महालक्ष्मी मंदिर में 1 रुपए से लेकर 20, 50, 100 और 500 रुपए के नए नोटों से मंदिर को सजाया जाता है। मंदिर में एक और दो रुपए के नोटों की गड्डी भी आती है। सजावट के लिए रतलाम के अलावा मंदसौर, नीमच, इंदौर, उज्जैन, नागदा, खंडवा, देवास समेत राजस्थान के कोटा से आए भक्तों ने अपनी श्रद्धानुसार राशि जमा कराई है।
20, 100 और पांच सौ के नोटों के बंदनवार बनाकर मंदिर में लगाए गए हैं।
नोटों के बनाए वंदनवार
मंदिर की सजावट को लेकर कई भक्त तो ऐसे भी जो कि एक साथ 5 लाख रुपए तक मंदिर में रख कर जाते है। श्रद्धालुओं द्वारा दिए जाने वाले नोटो की लड़िया बनाकर वंदनवार के रूप में मंदिर में लगाकर सजाया जाता है। महालक्ष्मी का आकर्षक श्रृंगार कर गर्भगृह को खजाने के रूप में सजाया जाता है। मंदिर परिसर कुबेर के खजाना के रूप में दिखाए देता है। कई भक्त तो ऐसे जो कि अपने घरों की नोटों व आभूषणों से भरी तिजोरी तक मंदिर में सजावट के लिए रखकर जाते है।
पांच-पांच सौ के नोटों के बंदनवार और महालक्ष्मी के सामने नोटों से सजाया गया है।
आज तक एक रुपए का हेरफेर नहीं हुआ
मंदिर में सजावट के लिए दिए जाने वाले रुपयों में आज तक कभी एक रुपए हेरफेर नहीं हुआ। नगदी व आभूषण देने वाले भक्तों का नाम, पता व मोबाइल नंबर एक रजिस्टर में लिखा जाता है। साथ में एक पासपोर्ट फोटो संबंधित के नाम के नाम के आगे चस्पा किया जाता है। जो राशि दी जाती है उसका उल्लेख किया जाता है। बदले में मंदिर से एक टोकन दिया जाता है। उस टोकन को संभालकर रखना पड़ता है।
मंदिर परिसर में छत सहित दिवारों को भी नोटों के बंदनवार से सजाया गया है।
पांच दिन तक संपदा माता लक्ष्मी के हवाले महालक्ष्मी मंदिर में गणेश जी, लक्ष्मी जी और सरस्वती माता की प्रतिमाएं हैं। लक्ष्मी माता की मूर्ति के हाथ में धन की थैली रखी हुई है, जो दिवाली वाले दिन वैभव का प्रतीक है। मान्यता है कि करीब 200 वर्ष पूर्व राजा रतन सिंह माता की कुल देवी के रूप में पूजन करते थे। उस दौरान राजा वैभव, निरोगी काया और प्रजा की खुशहाली के लिए पांच दिन तक अपनी संपदा मंदिर में रख कर पूजन करवाते थे। तभी से ये परंपरा चली आ रही है, जिसका निर्वहन आज भी किया जा रहा है।
मां लक्ष्मी की प्रतिमा के दो स्वरूप
- गजलक्ष्मी
- धनलक्ष्मी
मंदिर में 8 स्वरूपों में महालक्ष्मी विराजित की गई हैं।
8 रूपों में विराजमान हैं महालक्ष्मी
- श्री अधी लक्ष्मी मां
- श्री धान्य लक्ष्मी मां
- श्री लक्ष्मीनारायण
- श्री धन लक्ष्मी मां
- श्री विजयालक्ष्मी मां
- श्री वीर लक्ष्मी मां
- श्री संतान लक्ष्मी मां
- श्री ऐश्वर्य लक्ष्मी मां
सरस्वती मां व गणेश जी भी विराजमान
मंदिर के गर्भ गृह में महालक्ष्मी जी के साथ भगवान गणेश और मां सरस्वती भी विराजित हैं। रिद्धि-सिद्धि के दाता के साथ मां लक्ष्मी की संपन्नता और विद्या की देवी सरस्वती मां का आशीर्वाद भक्तों को मिलता है।
मंदिर की सजावट के लिए नोटों की लड़िया बनाता भक्त रविंद्र शर्मा।
सजावट में सभी का सहयोग
महालक्ष्मी मंदिर शहर के मध्य प्रमुख बाजार माणकचौक में स्थित है। मंदिर की सजावट में मंदिर के आसपास के कई व्यापारी अपनी बारी-बारी से सेवा देते है। मंदिर की सजावट में हाथ बटाते है। हर बार दीपावली के एक सप्ताह पूर्व सजावट को लेकर तैयारी की जाती है। लेकिन इस बार 16 अक्टूबर शरद पूर्णिमा से मंदिर की सजावट को लेकर राशि लेने का क्रम शुरू हो गया था। जैसे-जैसे नोट आते गए मंदिर की सजावट अंतिम समय धनतेरस की पूर्व देर रात तक होती रही। मंदिर के अंदर चारों तरफ रंग-बिरंगे नोट अपनी एक अलग ही छटा बिखेर रहे है।
यह है मान्यता
मान्यता है कि जिस किसी का धन महालक्ष्मी के श्रृंगार के लिए लगता है, उसके घर में सुख समृद्धि बनी रहती है। सजावट के लिए दी गई राशि व आभूषण भाई दूज के बाद पुन: प्रसादी के रूप में लौटा दिए जाते है। मान्यता है कि महालक्ष्मी जी के श्रृंगार की राशि व आभूषण घर की अलमारी व तिजोरी में रखने से सुख समृद्धि बनी रहती है।
मंदिर की सजावट को लेकर एक भक्त ने विदेशी मुद्रा भी हमेशा के लिए मंदिर में भेंट कर दी।
पुलिस की रहती है निगरानी
महालक्ष्मी के दरबार में सजने वाले कुबेर के खजाने की सुरक्षा के लिए बंदूकधारी 1-4 का गार्ड तैनात रहता है। मंदिर में सीसीटीवी से भी निगरानी की जाती है। मंदिर के पीछे ही माणक चौक पुलिस थाना है। जहां 24 घंटे फोर्स तैनात रहती है।
मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त सजावट के लिए नोट देकर गए हैं।
मंदिर में पहली बार प्रशासन ने लगाया था ताला
मंदिर में काफी सालों से पूजा कर रहे संजय पुजारी को लेकर इस बार विवाद भी सामने आया। संजय पुजारी पर आरोप लगे कि उनके भाई का निधन होने के बाद सूतक होने के कारण वह परिवार समेत मंदिर में पूजा-पाठ कर रहे है। तब शहर के श्रीमाली ब्राह्मण समाज ने आपत्ति जताई। कलेक्टर को शिकायत हुई। पुजारी को मंदिर से हटा दिया। नए पुजारी के रूप में सत्यनारायण व्यास को आगामी आदेश तक पूजा-अर्चना करने के लिए नियुक्त किया। फिर भी संजय पुजारी मंदिर में आना-जाना कर रहे थे। तब श्रीमाली ब्राह्मण समाज ने जमकर विरोध जताया। विवाद बढ़ने पर प्रशासन ने पहली बार मंदिर में ताला लगाया। करीब 12 घंटे तक मंदिर के पट बंद रहे। अगले दिन श्रीमाली ब्राह्मण समाज द्वारा मंदिर का गंगाजल से शुद्धिकरण कर आरती आरती की। प्रशासन ने नए पुजारी को कार्यभार सौंपा।
श्रीमाली ब्राह्मण समाजजनों को कहना था कि मां महालक्ष्मी श्रीमाली ब्राह्मण समाज की कुलदेवी है। मंदिर में समाज की सती माता का भी स्थान है। ऐसे में सूतक में जाना हिंदू धर्म में पाप है। मंदिर की सजावट में श्रीमाली ब्राह्मण समाज भी अपनी सेवा दे रहा है। इसके अलावा जो शुरू से मंदिर में सजावट करता आ रहा है उनका भी पूरा सहयोग लिया गया।
मंदिर की सजावट के लिए पहली बार नोटों के बुके (गुलदस्ते) बनाए गए।
एक करोड़ 47 लाख से अधिक के आए नोट
मंदिर की सजावट को लेकर अब तक लगभग 1 करोड़ 47 लाख रुपए से अधिक आए है। इसके अलावा बड़ी संख्या में सोने-चांदी के आभूषण भी आए है। इस बार मंदिर में नोटों के वंदनवार से मंदिर को अलग तरह से सजाया गया है। पहली बार नोटों के बुके (गुलदस्ता) भी बनाए है।
मंदिर में नोटों से भरी पेटी व अन्य बर्तन।
श्रीमाली ब्राह्मण समाज श्रृंगार के लिए देता था आभूषण
श्रीमाली ब्राह्मण समाज के सचिव कुलदीप त्रिवेदी ने बताया कि रियासत काल से परिवार के चंद्रभान त्रिवेदी द्वारा नवरात्रि में मातारानी के श्रृंगार के लिए आभूषण दिए जाते थे और दीपावली के बाद पुन: ले लिए जाते है। पिछले 8 साल पहले संजय पुजारी को 13 नग आभूषण दिए थे ताकि महालक्ष्मी जन्मोत्सव व दीपावली पर्व पर मातारानी को धारण करवा सके। लेकिन पिछले कुछ सालों से वह मातारानी को आभूषण नहीं चढ़ा रहे थे। आर्टीफिशीयल मुकुट पहना रखे थे। 21 अक्टूबर को चार्ज सौंपते समय उनसे आभूषण लेकर पुन: मंदिर में मातारानी के श्रृंगार के लिए भेंट किए है। आभूषण में लक्ष्मी जी के छत्र. मुकुट, कलंगी, कान के दो कुंडल झुमके, दो पायजेब, चारों हाथों के कड़े, दो हाथ के पांव के पायजेब शामिल है।
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