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संसद से झारखंड विधेयक पास होते ही खुटचालों का दौर शुरू हो गया। यह दो स्तरों पर हुई। पहले भाजपा में खेमेबंदी हुई। धारणा यह थी कि भाजपा की सरकार बनने पर कड़िया मुंडा मुख्यमंत्री होंगे। वह वरीयतम भाजपाई आदिवासी थे। अजातशत्रु, स्वच्छ छवि, साधु चरित्र के ध
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उधर, विपक्षी खेमा शिबू सोरेन के नेतृत्व में अपनी सरकार बनाने की उधेड़बुन में लग गया। शिबू सोरेन को लग रहा था कि अलग राज्य उनके संघर्षों का प्रतिफल है। इसलिए सत्ता का प्रथम स्वाद चखने का स्वाभाविक अधिकार उन्हें है। वह आधे-आधे समय के फार्मूले के लिए भी तैयार थे, लेकिन संख्या उनके खिलाफ थी। उनके पास अपने 12 ही विधायक थे, जबकि भाजपा के पास 32 विधायक थे। भाजपा के साथ समता पार्टी के पांच और जदयू के तीन विधायक भी थे। यह संख्या 40 तक पहुंच गई थी। दोनों निर्दलीय विधायक समरेश सिंह और माधवलाल सिंह का झुकाव भी इधर ही था। यूजीडीपी के दो विधायक जोबा मांझी और सुदेश महतो भी अपना फायदा इधर ही देख रहे थे। लेकिन, शिबू सोरेन मैया मोहिं चंद खिलौना लैहों की जिद पर अड़े थे। शिबू की योजना का खुलासा हुआ 14-15 नवंबर 2000 की आधी रात को। यह आजादी की लड़ाई के नायक धरती आबा बिरसा मुंडा की जयंती का दिन है। इसी दिन इसी समय नए राज्य की नई सरकार शपथ लेनेवाली थी। राजभवन के गुलाब उद्यान में। मैदान में तिल रखने की जगह नहीं थी। देशभर के पत्रकार-छायाकार पहुंचे थे। शेष पेज 10 पर
बाबूलाल को देना पड़ा इस्तीफा और अर्जुन मुंडा कैसे बने सीएम
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भाग
6
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