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महोत्सव में राजस्थान के लोक नाटक, विभिन्न राज्यों की लोक कला प्रस्तुतियों और दस्तकारों के उत्पादों को खूब सराहना मिल रही है।
जवाहर कला केन्द्र की ओर से आयोजित 27वें लोकरंग महोत्सव का सोमवार को चौथा दिन रहा। महोत्सव में राजस्थान के लोक नाटक, विभिन्न राज्यों की लोक कला प्रस्तुतियों और दस्तकारों के उत्पादों को खूब सराहना मिल रही है। शिल्पग्राम के मुख्य मंच पर हेला ख्याल, मांड
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असम के तिवा नृत्य, तमिलनाडु के कड़गम-कावड़ी, महाराष्ट्र के सोंगी मुखवटे और गुजरात रास की प्रस्तुति हुई।
लोकरंग का रंग अब परवान चढ़ने लगा है। मध्यवर्ती में अब ठंडी हवाएं अब दस्तक देने लगी है, लोक कलाकारों की जोश और उत्साह भरी प्रस्तुतियां नयी ऊर्जा और उमंग से कला प्रेमियों को सराबोर कर रही है। सोमवार को मध्यवर्ती में पहली आई प्रस्तुतियां और अरसे बाद यहां आई कलाओं को भी मंच मिला। मध्य प्रदेश मालवा की कलाकारों ने मटकी नृत्य के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की। मालवा का यह प्रसिद्ध नृत्य हर मांगलिक अवसर पर किया जाता है। ढोल की थाप पर पारंपरिक लोक गीतों पर महिलाएं नृत्य करती हैं। गुजरात का केरबा नो वेश नृत्य ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया जब नर्तक ने नाचते हुए कपड़े से आकृतियां साकार की। धार्मिक अनुष्ठान में यह नृत्य किया जाता है। कलाकार कपड़े से घोड़ा, तोता व अन्य जीवों की आकृति बनाती है जिससे जीव संरक्षण का संदेश दिया जाता है। जेकेके में पहली बार अरुणाचल प्रदेश के रिखमपदा नृत्य की प्रस्तुति हुई। अरुणाचल प्रदेश में बहुतायत में रहने वाली निशि जनजाति की महिलाएं समारोह में स्वागत के लिए यह नृत्य करती हैं। मधुर गीतों पर पारंपरिक परिधान में होने वाले नृत्य में युवतियां अपने प्रेमी को प्रणय निवेदन स्वीकार करने के लिए आमंत्रित करती हैं।
मधुर गीतों पर पारंपरिक परिधान में होने वाले नृत्य में युवतियां अपने प्रेमी को प्रणय निवेदन स्वीकार करने के लिए आमंत्रित करती हैं।
गोवा के कलाकारों ने मधुर गीतों पर देखणी नृत्य प्रस्तुत किया। महिलाएं नाविक से नदी पार करवाने की अपील करती हैं। उत्तराखंड के छपेली और मिजोरम के चैरो नृत्य के बाद असम के कलाकारों ने तिवा नृत्य पेश किया। यह विधा भी पहली बार यहां प्रस्तुत हुई। 5 से 7 साल के अंतराल पर फसल काटने से पूर्व होने वाले ‘बारात उत्सव’ में यह नृत्य किया जाता है। युवतियां उत्सव में पूजन करती है उसके बाद यह नृत्य होता है। तमिलनाडु के कड़गम कावड़ी नृत्य ने सभी में जोश भर दिया। नादस्वरम, पम्बई, तविल जैसे वाद्य यंत्रों से प्रांगण गूंज उठा। महोत्सव का हिस्सा होने वाले नृत्य में कलाकार सिर पर कलश और लकड़ी की कावड़ रखकर बेहतर संतुलन को दर्शाते हैं। महाराष्ट्र से आए कलाकारों की सोंगी मुखवटे प्रस्तुति ने सभी को रोमांचित किया। चैत्र पूर्णिमा पर कोंकणा जनजाति की ओर से यह नृत्य किया जाता है। मुखौटे का अद्भुत प्रयोग इस नृत्य को खास बनाता है। काल भैरव और बेताल इसके मुख्य पात्र होते हैं। तीव्र लय पर किए जाने वाले नृत्य में सिंह व अन्य पात्रों का स्वांग रचा जाता है। अंत में हुई वीर रस से सराबोर तलवार रास की प्रस्तुति ने सभी को जोश से भर दिया। तलवार और डाल हाथ में लेकर रण कौशल दिखाते कलाकारों ने यह नृत्य पेश किया। कृषि करने वाले महर समुदाय के लोग यह नृत्य करते हैं। वीर रस से ओत-प्रोत तलवार रास महर समुदाय के जीवन का हिस्सा बन गया है, हर मांगलिक उत्सव यथा नवरात्रि, शादी, होली में खुशी जाहिर करने के लिए यह नृत्य किया जाता है।
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