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दिल्ली में पिछले 14 दिनों से अनशन पर बैठे लद्दाख के जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक का कहना है कि केवल चुनाव कराने से ही किसी देश का लोकतंत्र नहीं बनता, बल्कि लोकतंत्र तभी बनता है जब लोगों की आवाज सुनी जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि निर्दयी व्यवहार से लोगों का मनोबल प्रभावित हो सकता है और उनकी देशभक्ति प्रभावित हो सकती है। वांगचुक ने यह बात पीटीआई-भाषा को दिए इंटरव्यू में कही।
लेह से पदयात्रा करके दिल्ली तक आने वाले वांगचुक बीती 6 अक्टूबर से अनशन पर बैठे हुए हैं, और तब से सिर्फ खारे पानी के घोल पर जी रहे हैं। कई दिनों के अनशन के बाद कमजोर हो चुके वांगचुक ने शनिवार को बिना किसी लाग-लपेट के बात की।
‘दिल्ली आने के बाद जो कुछ हुआ वह लोकतंत्र नहीं’
वांगचुक ने कहा कि दिल्ली आने के बाद से उनके साथ जो कुछ हुआ, उसे लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा, ‘यह लोकतंत्र के लिए दुखद है कि देश के एक कोने से, बॉर्डर एरिया से 150 लोग राष्ट्रीय राजधानी में आए, जिनमें 80 साल से अधिक उम्र के लोग, महिलाएं और भारत की सीमा की रक्षा करने वाले सेवानिवृत्त सैनिक भी शामिल हैं। दिल्ली आने के बाद उन्हें हिरासत में लिया गया और फिर उन्हें अनशन पर बैठने के लिए मजबूर किया गया।’
‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए दुखी हूं’
उन्होंने कहा, ‘इतना कुछ होने के बावजूद वे (सरकार) सुनने को भी तैयार नहीं हैं। मैं नहीं जानता कि मैं इसे लोकतंत्र कैसे कहूं, केवल चुनाव किसी देश को लोकतांत्रिक नहीं बनाते, आपको अपने लोगों और लोगों की आवाज का सम्मान करना होगा। मैं लोकतंत्र के लिए दुखी हूं, वह भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए।’
‘ऐसे व्यवहार से लोगों की देशभक्ति प्रभावित हो सकती है’
वांगचुक ने कहा, ‘लोकतंत्र में सरकार को इतना निर्दयी नहीं होना चाहिए, खासकर तब जब बात सीमावर्ती क्षेत्र से आए लोगों की हो। हमने 5-6 युद्धों में वर्षों तक अपनी सीमाओं की रक्षा की है। इस तरह के व्यवहार से लोगों का मनोबल प्रभावित हो सकता है और उनकी देशभक्ति प्रभावित हो सकती है।’ इस बीच उन्होंने लोगों को संदेश देते हुए कहा कि उन्हें डरना नहीं चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘लोगों से मैं यही कहूंगा कि डरें नहीं, आप लोकतंत्र में रह रहे हैं, सिर झुकाकर न जिएं, यह घृणित है।’ लद्दाख और यहां के विरोध प्रदर्शन में अंतर के बारे में पूछे जाने पर वांगचुक ने कहा कि लद्दाख में कम से कम कोई प्रतिबंध नहीं है। उन्होंने कहा, ‘यह राष्ट्रीय राजधानी है और हम यह देखकर हैरान हैं।’
‘लोगों को पार्क में भी नहीं आने दिया जा रहा’
वांगचुक ने कहा, ‘जैसा कि आप देख सकते हैं, यहां (लद्दाख भवन में) लोगों को रोका जा रहा है। वे इस बात को नियंत्रित कर रहे हैं कि कौन अंदर आ सकता है और कौन नहीं। वे यहां पार्क में भी लोगों को इकट्ठा नहीं होने दे रहे हैं। शायद हमें मिल रहे समर्थन से उन्हें कुछ डर है। वे उन लोगों से डरे हुए हैं जो चुपचाप अनशन पर बैठना चाहते हैं।’
बता दें कि वांगचुक को पिछले महीने उनके कई समर्थकों के साथ हिरासत में लिया गया था, जिन्हें बाद में रिहा कर दिया गया। तब से वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने की मांग को लेकर अपने करीब दो दर्जन समर्थकों के साथ लद्दाख भवन में अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे हैं। हालांकि किसी भी तरह की मुलाकात को लेकर सरकार से अभी तक कोई सूचना नहीं मिली है।
सोशल मीडिया पर हो रहे हमलों को लेकर उन्होंने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लोग देशभक्त हैं उन्हें राष्ट्र-विरोधी कहा जा रहा है। इसके बजाय उन्हें उन लोगों को देशभक्त बनाने पर काम करना चाहिए जो राष्ट्र-विरोधी हैं। यह बेमतलब की मेहनत है।’
30 सितंबर को वांगचुक को 150 अन्य लोगों के साथ दिल्ली के सिंघु बॉर्डर से हिरासत में लिया गया था। करीब दो दिन तक हिरासत में रखने के बाद उन्हें 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन राजघाट ले जाया गया और बाद में शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात का आश्वासन देकर रिहा कर दिया गया। हालांकि, जब ऐसी कोई मुलाकात नहीं हुई तो वांगचुक ने अनिश्चितकालीन अनशन की घोषणा कर दी, लेकिन उन्हें दिल्ली में विरोध प्रदर्शन की आम जगह जंतर-मंतर पर बैठने की अनुमति नहीं मिल सकी।
केंद्रीय गृह मंत्रालय पहले लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के प्रतिनिधियों के एक समूह के साथ उनकी मांगों पर बातचीत कर रहा था, जिसमें छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा उपाय शामिल हैं। प्रदर्शनकारी लद्दाख को राज्य का दर्जा देने, लद्दाख के लिए एक लोक सेवा आयोग और लेह और कारगिल जिलों के लिए अलग-अलग लोकसभा सीटों की मांग कर रहे हैं।
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