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झारखंड विधानसभा चुनाव की सभी 81 सीटों पर चुनावी बिगुल बज गया है। केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को नई दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर चुनावी तिथि की घोषणा कर दी। इसके साथ ही राज्य में आदर्श आचार संहिता लग गई है। चुनाव में सभी राजनीतिक दल अब अपने-अपने जीत का दावा करते दिख रहे हैं। इस बीच अगर पिछले पांच साल (जनवरी 2020 से अक्तूबर 2024 तक) में प्रदेश में हुए सियासी समीकरण पर नजर डालें तो झारखंड कई सियासी उठापटक का गवाह रहा है।
पूरे पांच साल में दो चेहरे (हेमंत सोरेन और चंपाई सोरेन) ने तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इनमें से एक को (हेमंत सोरेन) गिरफ्तारी होने पर कुर्सी छोड़नी पड़ी तो दूसरे ने (चंपाई सोरेन) कुर्सी से हटाए जाने के बाद दल बदल लिया। इन तमाम घटनाक्रमों के केंद्र में भूमि घोटाला था। इसके अलावा कोरोना महामारी ने भी राज्य के आर्थिक विकास पर ब्रेक लगाने का काम किया। इस महामारी के कारण वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार के शुरुआती दो साल काफी संघर्षपूर्ण रहा। सरकार के समक्ष कई चुनौतियां आईं।
● अपने कमजोर गढ़ को मजबूत करने के लिए दल-बदल का सहारा
इन पांच सालों में सभी राजनीतिक पार्टियां प्रमंडलवार अपने मजबूत गढ़ पर विशेष फोकस करते दिखी, तो कमजोर हिस्से को मजबूत करने में जुटी रही। इसी रणनीति के तहत लोकसभा चुनाव के समय से ही बड़े-बड़े दिग्गजों को दूसरे दल से लाने का काम राजनीतिक दलों द्वारा किया गया, जो हाल फिलहाल तक चलता रहा। कुल सात विधायक पार्टी छोड़ दूसरे दल में शामिल हुए। इसमें विधायक जयप्रकाश भाई पटेल, सीता सोरेन, गीता कोड़ा, लोबिन हेम्ब्रम, अमित कुमार यादव, कमलेश कुमार सिंह जैसे बड़े नेताओं का नाम शामिल है। लेकिन इस सूची में सबसे बड़ा नाम पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन आता है। हाल ही में इन्होंने झामुमो छोड़कर भाजपा की सदस्यता ले ली।
● सरकार बचाने के लिए दो बार लिया गया रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का सहारा
इन पांच सालों में झारखंड में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स भी देखने को मिला। साल 2022 में जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला सामने आया, तो प्रदेश में राजनीतिक अनिश्चितता का माहौल बन गया। जब हेमंत सोरेन की विधायकी और सीएम की कुर्सी पर सवाल उठने लगा तो झामुमो नेतृत्व वाले गठबंधन ने अपने विधायकों को छत्तीसगढ़ शिफ्ट कर दिया। उस समय छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी। इसी साल जब मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन को ईडी ने गिरफ्तार किया, तब भी रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का सहारा लिया गया। झामुमो, कांग्रेस और राजद ने कथित तौर पर ऑपरेशन लोटस की आशंका को देख अपने 35 विधायकों को हैदराबाद शिफ्ट कर दिया। बता दें कि राज्य गठन के बाद से ही देशभर में सबसे ज्याद रिसॉर्ट पॉलिटिक्स की घटनाएं झारखंड में ही देखने को मिली है।
● उपचुनाव से सोरेन परिवार के दिग्गजों ने की राजनीति में एंट्री
इन्हीं पांच सालों में कुल सात सीटों पर उपचुनाव भी हुए। इसमें बेरमो, मधुपुर, डुमरी (विधायकों के निधन के बाद) और मांडर, रामगढ़ (हाईकोर्ट से विधायकों को सजा मिलने के बाद) और दुमका, गांडेय सीट (झामुमो विधायक हेमंत सोरेन और डॉ. सरफराज अहमद के इस्तीफे के बाद) उपचुनाव कराए गए। इन उपचुनावों से प्रदेश की राजनीति में कई बड़े चेहरे उभरे। दिग्गज सोरेन परिवार के दो सदस्य पहली बार राजनीति में उतरे। इसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन का नाम सबसे आगे है। दूसरा नाम पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के सबसे छोटे बेटे बसंत सोरेन का है।
● कल्पना ने संभाली झामुमो की बागडोर
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद कल्पना सोरेन ने अप्रत्यक्ष तौर पर पार्टी की बागडोर पूरी तरह से संभाल ली। कई बड़े-बड़े चुनावी कार्यक्रम को उन्होंने ही लीड किया। विशेषकर मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना को धरातल तक उतारने में उनकी भूमिका सबसे अधिक मानी गई। साल 2019 के चुनाव में हेमंत सोरेन बरहेट और दुमका सीट से जीते थे। चुनाव बाद उन्होंने दुमका सीट छोड़ दी, जहां हुए उपचुनाव में बसंत सोरेन ने जीत दर्ज की। इसी तरह मांडर और डुमरी सीट पर हुए उपचुनाव में दो महिला विधायक बनीं। बेरमो और मधुपुर सीट पर कांग्रेस और झामुमो के दिग्गज नेता रहे क्रमश: राजेंद्र प्रसाद सिंह और हाजी हुसैन अंसारी के बेटों ने उपचुनाव जीता।
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