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देश में महिलाओं के मालिकाना हक वाले खेतों की संख्या 14% ही है। राजस्थान में तो यह आंकड़ा और भी कम है। यहां 10.12% ही कृषिजोत महिलाओं के नाम हैं। जबकि लिंगानुपात को लेकर सर्वाधिक संघर्ष करने वाले हमारे पड़ोसी राज्य हरियाणा में यह संख्या तकरीबन 15% है।
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यहां भी राष्ट्रीय औसत से कम अधिकार
यदि राष्ट्रीय औसत (14 फीसदी) से भी तुलना करें तो राजस्थान के कई जिले (पुरानी व्यवस्थानुसार) इस आंकड़े से पीछे हैं। महिलाओं के हक वाले कृषिजोतों का प्रतिशत- जोधपुर में 7.24, झुंझुनूं 7.45, सिरोही 7.75, कोटा 7.85, दौसा 8.17, बाड़मेर 8.54, बांसवाड़ा 8.59, टोंक 8.97, करौली 9.22, पाली 9.27, बूंदी 9.69, राजसमंद 9.74, भरतपुर 10.43, अलवर 10.45, सीकर 10.49, बारां 10.58, धौलपुर 10.6, स.माधोपुर 10.8, चुरु 10.96, नागौर 11.33, चित्तौड़गढ़ 11.59, झालावाड़, 11.79, प्रतापगढ़ में होना पाया गया है।
महिलाओं के हिस्से जो जमीन, वह कुल में से 8% भी नहीं
प्रदेश में 10 हेक्टेयर से ज्यादा के भूखंड यानी बड़े भूखंडों की संख्या 4.04 लाख है, जिसमें से महिलाओं के पास केवल 21 हजार ही हैं। यानी बड़े भूखंडों का सिर्फ 6.4 फीसदी। भूखंडों के स्थान पर यदि क्षेत्रफल के लिहाज से देखें तो महिलाओं की स्थिति और खराब दिखाई देती है। राज्य में 2.08 करोड़ हेक्टेयर कृषिभूमि में से महिलाओं के अधिकार वाली सिर्फ 16.55 लाख हेक्टेयर ही है। यानी जिन 10 फीसदी महिलाओं के पास कृषिभूखंड हैं, उन सभी के भूखंडों का क्षेत्रफल कुल मिलाकर आठ फीसदी से भी कम।
स्रोतः कृषि जनगणना 2015-16 तथा सस्टेनेबल डेवलपमेट गोल्स इंडेक्स 2023-24
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