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मध्यप्रदेश में सड़कों को गड्ढामुक्त करने के अभियान के दौरान पीडब्ल्यूडी के 10 जिलों के इंजीनियरों ने ठेकेदारों से मिलीभगत कर क्लीन चिट दे दी थी। बाद में जब विभाग ने 10 हजार किमी सड़कों की जांच कराई तो इनमें 1362 गड्ढे पाए गए। इसके बाद विभाग ने इन जिल
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पीडब्ल्यूडी के अफसर और ठेकेदारों की मिलीभगत का ये कोई पहला मामला नहीं है। इस समय मंत्रालय में ऐसा ही 10 साल पुराना मामला सुर्खियों में है। विभाग ने जांच कर 23 अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के लिए मंत्री को फाइल भेजी है।
ये मामला उज्जैन के पंचक्रोशी मार्ग की 96 किमी लंबी सड़क से जुड़ा है। अफसरों ने ठेकेदार की परफॉर्मेंस गारंटी की राशि लौटाने के लिए एक के बाद एक प्रस्ताव भेजे जबकि हाईकोर्ट खुद ठेकेदार की परफॉर्मेंस गारंटी की राशि का मामला खारिज कर चुका था। आखिर कैसे विभाग ने अधिकारियों और ठेकेदार की इस मिलीभगत को उजागर किया…पढ़िए ये रिपोर्ट
5 पॉइंट्स में जानिए, क्या है पूरा मामला
- 28 फरवरी 2009 को राजू कंस्ट्रक्शन कंपनी एंड शेल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड को निर्माण का ठेका दिया गया। नियम के मुताबिक, पीडब्ल्यूडी ने 10% परफॉर्मेंस गारंटी के रूप में 4 करोड़ 84 लाख रुपए इस कंपनी से जमा कराए ।
- कंपनी ने सड़क का निर्माण कार्य 31 जनवरी 2012 को पूरा किया। कार्यपालन यंत्री ने कार्य पूर्णता का सर्टिफिकेट 23 मई 2012 को जारी किया था। परफॉर्मेंस गांरटी की अवधि 3 साल यानी 30 जनवरी 2015 तक निर्धारित थी।
- निर्माण के एक साल बाद ही सड़क उखड़ना शुरू हो गई। साल 2014 आते-आते सड़क का ज्यादातर हिस्सा खराब हो गया। सड़क परफॉर्मेंस गारंटी में थी लेकिन ठेकेदार ने सड़क की मरम्मत नहीं की।
- साल 2016 में सिंहस्थ का आयोजन होना था। समय कम था इसलिए पीडब्ल्यूडी विभाग ने बिना टेंडर जारी किए 6 करोड़ 90 लाख रुपए में सड़क का निर्माण श्रीजी कंस्ट्रक्शन कंपनी से कराया।
- नियमानुसार परफॉर्मेंस गारंटी की राशि 4 करोड़ 96 लाख रु. राजसात होकर सरकार के खजाने में जमा होनी थी। कार्यपालन यंत्री ने 27 सितंबर 2014 को परफॉर्मेंस गारंटी की राशि का नकदीकरण कराकर डिपॉजिट में रख ली।
ठेकेदार ने काम पूरा किया नहीं, हाईकोर्ट में याचिका लगाई सड़क परफॉर्मेंस गारंटी में थी, इसके बाद भी ठेकेदार ने काम नहीं किया। दूसरी तरफ, परफॉर्मेंस गारंटी की राशि को वापस लेने के लिए सितंबर 2014 में हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में याचिका दायर कर दी। याचिका में कहा कि रोड का कुछ हिस्सा दूसरे ठेकेदार ने बनाया था। उसके ऊपर नई सड़क का निर्माण किया गया था।
ये भी तर्क दिया कि ज्यादा ट्रैफिक की वजह से सड़क उखड़ गई। निर्माण में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं थी। हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश में 30 अक्टूबर 2014 को राशि वापस लेने पर रोक लगा दी। इसके बाद 27 मार्च 2015 को ठेकेदार की तरफ से दायर याचिका को खारिज कर दिया।
अब जानिए, कैसे हुई अधिकारियों और ठेकेदार की मिलीभगत जब याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी तो ठेकेदार ने अधिकारियों से साठगांठ कर परफॉर्मेंस गारंटी की राशि वापस लेने की कोशिश की। तत्कालीन मुख्य अभियंता एमपी सिंह जो 30 सितंबर 2022 को रिटायर हो चुके हैं, उन्होंने रिटायरमेंट से पहले 28 मार्च 2022 को परफॉर्मेंस गारंटी लौटाने के लिए प्रस्ताव भेजा।
उन्होंने इस प्रस्ताव में मध्यप्रदेश आरबिट्रेशन ट्रिब्यूनल के मामले राधेश्याम त्रिपाठी बनाम मप्र शासन का जिक्र किया। जिसमें परफॉर्मेंस गारंटी की राशि सरकार ने ठेकेदार को वापस की थी।
ठेकेदार ने काम नहीं किया तो विभाग ने मेंटेनेंस किया तत्कालीन प्रमुख अभियंता नरेंद्र कुमार ने 11 अप्रैल 2022 को ठेकेदार को परफॉर्मेंस गारंटी की राशि वापस देने का प्रस्ताव आगे बढ़ाया। इस पर विभाग को संदेह हुआ। विभाग ने 30 जुलाई 2024 को उज्जैन के पीडब्ल्यूडी के मुख्य अभियंता को पत्र लिखा।
इस पत्र के बाद उज्जैन के मुख्य अभियंता ने 29 अगस्त 2024 को नया प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव में लिखा कि परफॉर्मेंस गारंटी के तहत रोड के मेंटेनेंस का काम ठेकेदार को किया जाना था। ठेकेदार ने काम नहीं किया तो विभाग ने मेंटेनेंस का काम किया।
ऐसे में सड़क बनाने में हुए विभाग के खर्च को ठेकेदार की परफॉर्मेंस गारंटी की राशि से एडजस्ट करना था। उसके बाद ठेकेदार को परफॉर्मेंस गारंटी की राशि वापस की जानी थी लेकिन कार्यपालन यंत्री ने ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की।
विभाग ने जांच में की कार्रवाई की अनुशंसा उज्जैन के मुख्य अभियंता की तरफ से अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराए जाने के बाद विभाग की ओर से टीप लिखी गई कि 28 मार्च और 11 अप्रैल 2022 के पत्रों में कार्यपालन यंत्री को ठेकेदार की जमा राशि को सड़क बनाने के खर्च से एडजस्ट नहीं किया गया। वहीं, ठेकेदार को परफॉर्मेंस राशि का भुगतान करने के लिए पत्र लिख दिया गया।
इससे ये साफ होता है कि अधिकारियों की ठेकेदार से मिलीभगत रही है। सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई है। अधिकारियों ने घोर लापरवाही बरती है। दोषी अफसरों के खिलाफ कारण बताओ नोटिस या आरोप पत्र देने से पहले मंत्री का प्रशासकीय अप्रूवल लेना उचित होगा।
इसे लेकर जब भास्कर ने पीडब्ल्यू़डी के प्रमुख अभियंता आरके मेहरा से बात की तो उन्होंने कहा कि तत्कालीन प्रमुख अभियंता नरेंद्र कुमार ने ठेकेदार को परफॉर्मेंस गारंटी की राशि वापस करने पर सहमति दी थी। लेकिन शासन की नए सिरे से कराई गई जांच में कुछ खामियां सामने आई हैं।
एक महीने से मंत्री के कार्यालय में फाइल पीडब्ल्यूडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस पूरे मामले की जांच रिपोर्ट के साथ दोषी इंजीनियरों के खिलाफ एक्शन लेने के लिए फाइल विभागीय मंत्री राकेश सिंह के कार्यालय को भेजी गई है। लेकिन 9 अक्टूबर तक फाइल वापस नहीं लौटी है।
जब इस बारे में भास्कर ने पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह से बात की तो उन्होंने कहा कि इस तरह के दो-तीन मामले संज्ञान में आए हैं। उज्जैन की पंचक्रोशी सड़क के मामले में परीक्षण के बाद नियमानुसार एक्शन लिया जाएगा।
टीकमगढ़ में दो बार बन गई सड़क साल 2018 में नगर पालिका ने टीकमगढ़ की मुख्य वीआईपी सड़क (अस्पताल चौराहे से अंबेडकर तिराहे तक ) 3 करोड़ लागत से बनाई थी। इसे 2020 में पीडब्ल्यूडी को हैंड ओवर कर दिया गया था। यह सड़क 5 साल में ही उखड़ने लगी। 2023 में यह सड़क बिल्कुल जर्जर हो गई जबकि गारंटी पीरियड में थी।
सूत्रों का कहना है कि इसके बाद इस सड़क के ज्यादा खराब हिस्से (सिंधी धर्मशाला से दरवाजा बरैया तक) की मरम्मत कराई गई। जिस ठेकेदार को काम दिया था, उसने कंक्रीट सड़क के ऊपर डामर की परत चढ़ा दी। उसे नई सड़क निर्माण का भुगतान किया गया।
इस बारे में जब पीडब्ल्यूडी के कार्यपालन यंत्री इंद्र कुमार शुक्ला से बात की तो उन्होंने बताया कि टीकमगढ़ से छतरपुर तक सड़क का निर्माण आरडीसी ने कराया है। इस सड़क के शहरी हिस्से के निर्माण की जिम्मेदारी नगर पालिका को सौंपी गई थी।
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