[ad_1]
1981 में हुई थी मां विध्यवासिनी के मंदिर की स्थापना, अघोर साधना का केंद्र है आश्रम
.
शारदीय नवरात्र में महाष्टमी की रात, स्थान जयप्रकाश नगर स्थित सर्वेश्वरी आश्रम, यहां अलग ही नजारा है। रात के 12 बजे हैं… शहर के पूजा-पंडालों में श्रद्धालुओं की भीड़ है। लाउड स्पीकर पर माता रानी के भजन बज रहे हैं। वहीं सर्वेश्वरी आश्रम परिसर में हवन की तैयारी चल रही है। हवन कुंडों के पास आसनी आैर हवन सामग्री रखी जा रही है। पुरुष उजला कुर्ता पायजामा या अन्य किसी भी सफेद वस्त्र में ही नजर आ रहे हैं। वहीं महिलाएं साड़ी व अन्य साधारण कपड़ों में हैं। हां, सभी ने अपने बाल जरूर कवर कर रखे हैं। दरअसल, नवरात्र की महाष्टमी पर यहां अन्य पूजा पद्धतियों से भिन्न अघोर पद्धति से महानिशा पूजन की परंपरा है।
पशु आैर नींबू या नारियल की दी जाती है बली
भगवान तिवारी आैर अनुज कुमार बताते हैं कि अघोर पद्धति से पूजन ही यहां की पूजा की विशेषता है। सबसे पहले संध्या में मां का शृंगार होता है। अष्टमी के दिन ही मध्य रात्रि में महानिशा पूजा होती है। छाग (बकरा) की बली होती है। फिर रात्रि में हवन होता है। इसमें नींबू या नारियल बली की दी जाती है। समय के अनुसार कुछ वर्षों पहले प्रसाद के रूप में शराब को प्रतिबंधित कर दिया गया। हवन के बाद भक्त महाप्रसाद ग्रहण करते हैं।
फोटो : धर्मेंद्र पांडेय, सुभोजित घोषाल।
श्री सर्वेश्वरी आश्रम में महाअष्टमी की मध्यरात्रि होता है विशेष अनुष्ठान, श्वेत वस्त्र में अपने इस्ट मंत्र के साध हवन करते हैं साधक
पूजा में तंत्र से संबंधित होती है अर्चना
भगवान तिवारी बताते हैं कि निशा पूजन सर्वेश्वरी समूह के आश्रमों में पूर्णत: रात्रि में ही होता है। इस पूजा में तंत्र से संबंधित अर्चना की जाती है। शिष्य अपने-अपने इस्ट मंत्र से हवन करते हैं, जो अन्य पद्धतियों से भिन्न होता है। मां विंध्यवासिनी के मंदिर की स्थापना यहां वर्ष 1981 में हुई थी। तब से यह परंपरा यहां चली आ रही है। हर साल चैत्र आैर आश्विन रात्र में पूरी निष्ठा आैर तय नियमों का पालन करते हुए पूजा होती है।
[ad_2]
Source link