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सीकर के डार्क जोन में पहाड़ से 5000 फीट पानी की पाइप लाइन लाकर एक किसान ने खेतों को हरा भरा कर दिया। ड्रिप इरिगेशन से उसने खेत में ड्रैगन फ्रूट, पपीता और हल्दी समेत सीजनल सब्जियों की खेती की है। फल और सब्जियों से अब वह लाखों रुपए की कमाई कर रहा है।
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ये किसान हैं सीकर के महेश शर्मा (42) ने बताया- मैं गाय पालन के साथ ऑर्गेनिक खेती भी करता हूं। ताकि लोगों को बेहतर प्रोडक्ट मिल सकें। खेती के साथ पशुपालन और सिंचाई की उन्नत तकनीक का इस्तेमाल कर महेश शर्मा ने डार्क जोन को न केवल हरा-भरा कर दिया है, बल्कि अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं।
ड्रैगन फ्रूट की खेती दिखाते किसान महेश शर्मा।
म्हारे देस की खेती में आज बात सीकर के किसान महेश शर्मा की…
सीकर जिले के छोटे से गांव पलासरा के रहने वाले किसान महेश शर्मा 12वीं पास हैं। शेखावाटी जैसे शुष्क इलाके में बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति अपनाकर महेश ने ड्रैगन फ्रूट, पपीता, अमरूद, अनार, हल्दी और सब्जियों की खेती की है।
पलासरा गांव में उनका 5 एकड़ का फार्म अरावली की पहाड़ियों से घिरा है। पहाड़ के दूसरी तरफ भी उनकी 5 एकड़ जमीन है, जो बंजर है। वहां बोरवैल है। फार्म तक पानी लाने के लिए महेश ने पहाड़ के ऊपर से पाइप लाइन बिछाई और बूंद-बूंद सिंचाई की।
किसान महेश शर्मा ने खेतों में ड्रिप इरिगेशन तकनीक का इस्तेमाल किया है। खेतों में पाइप से बूंद बूंद सिंचाई करते हैं।
शुष्क जलवायु में ड्रैगन फ्रूट और पपीता लगाया किसान महेश शर्मा ने बताया- पपीते की खेती करने की परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है। इसके साथ-साथ परिवार परंपरागत खेती भी करता है। 2020 में यूट्यूब देखते हुए ड्रैगन फ्रूट की खेती करने का विचार आया। फिर इसके बारे में अधिक रिसर्च किया।
मैंने ड्रैगन फ्रूट की खेती करना तय कर लिया। इसके बाद हरियाणा से 84 पौधे ड्रैगन फ्रूट के लाया। खेत में ड्रैगन फ्रूट को पनपने के लिए सहारे की जरूरत पड़ती है। ऐसे में 21 पिलर बनाए और उनके सहारे पौधे लगाए। हर पोल के आस-पास 4 से 5 पौधे लगाए।
हर पौधे से 5 किलो तक ड्रैगन फ्रूट प्राप्त हो रहे हैं।
वर्तमान में एक पौधे पर 5 किलो फल लगे महेश ने बताया- नवंबर 2023 में ड्रैगन फ्रूट के पौधों पर फल लगना शुरू हो गए। अब हर पौधे से 5 किलो फल मिल रहे हैं। 84 पौधों पर 400 से अधिक फल लगे हुए हैं। पहले ही साल में ड्रैगन फ्रूट से 2 लाख रुपए की कमाई हुई। बाजार में ड्रैगन फ्रूट 300 रुपए किलो तक बिक रहा है। आसपास के व्यापारी खेत में ही आकर ताजा ड्रैगन फ्रूट ले जाते हैं। इसमें सीजन में 3 से 4 बार फल लगते हैं। ड्रैगन फ्रूट की पीक सीजन में एक पौधे पर 25 किलो तक फल आते हैं।
पीक समय में ड्रैगन फ्रूट के प्रति पौधे से 25 किलो तक फल मिलते हैं।
40 डिग्री तापमान सह लेता है ड्रैगन फ्रूट का पौधा कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रामनिवास पालीवाल ने बताया- ड्रैगन फ्रूट का पौधा शुष्क जलवायु में पनपता है। इस पौधे में 40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान सहने की क्षमता होती है। लंबे समय तक ठंड इसके लिए ठीक नहीं होती। इसलिए उद्यान विभाग ने ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए राजस्थान को उपयुक्त माना है।
ड्रैगन फ्रूट में तीन तरह के फल आते हैं। लाल रंग के फल का पल्प (गूदा) भी लाल होता है। दूसरा लाल रंग के फल में सफेद रंग का पल्प होता है और तीसरा पीले रंग के फल में सफेद रंग का पल्प होता है। आमतौर पर लाल पल्प वाला फल अधिक पसंद किया जाता है।
पहाड़ी के दूसरी तरफ भी महकश शर्मा की जमीन है। जहां से पानी लाकर वे इस फार्म की सिंचाई की व्यवस्था करते हैं।
जयपुर, भीलवाड़ा, कोटा, सीकर में खेती रामनिवास पालीवाल ने बताया- दक्षिण अमेरिका,भूटान और स्विट्जरलैंड में होने वाले ड्रैगन फ्रूट की खेती अब राजस्थान के सीकर, जयपुर, भीलवाड़ा, कोटा में भी होने लगी है। हालांकि इसकी शुरुआत 8 साल पहले जयपुर के बस्सी से हुई थी।ड्रैगन फ्रूट जैम, जैली, आइसक्रीम और वाइन बनाने के काम में लिया जाता है। यह फल डायबिटीज, कोलेस्टेरोल, अस्थमा में दवा के तौर पर भी काम आता है।
ड्रैगन फ्रूट एक विदेशी फल है जो एंटीऑक्सीडेंट, आयरन और फाइबर से भरपूर होता है। यह प्रतिरक्षा के निर्माण में सहायता करता है। डेंगू में यह रोगी के लिए लाभदायक है। डेंगू में तेजी से प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं। यह फल प्लेटलेट्स को बढ़ाने में मदद करता है। इसके अलावा ड्रैगन फ्रूट खाने से ऑक्सीडेटिव तनाव से लड़ने में मदद मिलती है।
पपीता के 800 पेड़, सब्जियों की खेती किसान महेश शर्मा ने बताया- डेढ़ एकड़ खेत में अभी पपीते के 800 पेड़ लगे हैं। इसके अलावा एक एकड़ में आम के 84 पेड़ लगे हैं। लीची, कटहल, नींबू, मौसमी, अमरुद और अनार के पौधे भी लगा रखे हैं। पपीते से सालाना 8 से 10 लाख की कमाई हो रही है। पपीते के पेड़ों को भी बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से पानी दे रहा हूं।
किसान महेश शर्मा के खेत में पपीते के पेड़।
इसके अलावा गोभी, ब्रोकली, आलू, गाजर, टमाटर, हल्दी, मूली, भिंडी, हरी मिर्च, प्याज, लौकी सहित अनेक प्रकार की सब्जियाें की भी खेती कर रखी है। यह सब्जियां और फल ऑर्गेनिक है। उन्होंने बताया- मेरे पास 8 गिर नस्ल की गायें हैं। जिनके गोबर और गोमूत्र से पंचामृत व जैविक खाद तैयार करता हूं। इसके इस्तेमाल से फलों और सब्जियों के मूल तत्व बने रहते हैं।
सिंचाई के लिए करनी पड़ी कड़ी मशक्कत किसान ने बताया- यहां तक पानी लाना बड़ी कठिन काम रहा। इसके लिए मैंने पहाड़ पर 140 पाइप लगाए। यह दूरी 5 हजार फीट पड़ गई। लेकिन इससे यह इलाका लाभदायक बन गया। पानी बचाने के लिए पाइप को ड्रिप इरिगेशन से जोड़ा।
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