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Haryana Chunav Result: हरियाणा चुनाव के नतीजों ने एग्जिट पोल की तमामत भविष्यवाणियों को झुठला दिया। भाजपा 48 सीटों पर जीत दर्ज करके लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। भाजपा को पिछले चुनाव में 40 सीटों से संतोष करना पड़ा था। सरकार बनाने के लिए उसे गठबंधन करना पड़ा था। तमाम एग्जिट पोल में कांग्रेस की जितनी शानदार जीत का अनुमान लगाया गया था, नतीजे इसके उलट रहे। अब भाजपा की जीत के कारणों पर चर्चा होने लगी है। पीएम मोदी की लोकप्रियता, भाजपा की सधी हुई रणनीति, ऐसे तमाम पहलुओं पर चर्चा की जा रही है। आइए जानते हैं कि भाजपा की इस ऐतिहासिक जीत के 5 बड़े कारण क्या-क्या रहे।
1. गैर-जाट वोटों का ध्रुवीकरण
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हरियाणा में भाजपा की रणनीति 2014 से ही स्पष्ट है। उस चुनाव में भगवा पार्टी चार से अचानक 47 सीटों पर पहुंच गई थी। भाजपा ने पंजाबी खत्री मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री नियुक्त किया था। पार्टी ने ओबीसी वोट को सुरक्षित करने पर ध्यान केंद्रित किया, जो कि आबादी का लगभग 40 प्रतिशत है। इस साल मार्च में नायब सिंह सैनी को खट्टर की जगह सीएम बना दिया गया, जो कि ओबीसी समुदाय से आते हैं। चुनाव के दौरान भी भाजपा ने सैनी की सीएम कैंडिडेट बतायाथ
हरियाणा की राजनीति में मुख्यमंत्री अक्सर उच्च जाति के जाट समुदाय से होते थे। हरियाणा में इनकी आबादी महज 25 प्रतिशत है। भाजपा ने 75 प्रतिशत गैर-जाट मतदाताओं को लुभाकर अपनी जीत पक्की कर ली। इसके अलावा, भाजपा ने अनुसूचित जाति (एससी) के मतदाताओं को भी साधा। भाजपा ने गांवों में महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से दलित परिवार तक पहुंच बनाई। इसमें ‘लखपति ड्रोन दीदी’ ने काफी मदद की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनमें से कई को व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित भी किया।
2. हरियाणा में उम्मीदवारों का चयन
भूपेंद्र हुड्डा जैसे कांग्रेस नेताओं ने अपनी पार्टी में अपने खेमे के उम्मीदवारों के लिए जोर दिया। वहीं, भाजपा ने एक अलग दृष्टिकोण अपनाया। सत्ता विरोधी भावना से निपटने के लिए 60 नए चेहरे चुने। पार्टी ने पूर्व सीएम खट्टर को भी हटा दिया। उनपर घमंडी होने के आरोप लगते थे। भाजपा ने इसके जवाब में अधिक मिलनसार नायब सिंह सैनी को मैदान में उतारा। कांग्रेस ने अपने प्रदेश अध्यक्ष उदयभान सहित ऐसे 17 उम्मीदवारों को फिर से टिकट दिया, जो पहले हार गए थे।
3. डीबीटी और विकास
भाजपा ने अपना अभियान बहुत पहले शुरू कर दिया था। जनवरी की शुरुआत में ही अभियान को तेज कर दिया था और गांवों में मोदी की गारंटी वैन का दौरा किया। इन वैन ने सरकारी योजनाओं के बारे में लोगों को बताया। ग्रामीणों को अपने परिवार पहचान पत्र में समस्याओं को सुधारने में मदद की। पार्टी ने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के साथ अपनी सफलता पर भी जोर दिया। इसके बाद कल्याणकारी घोषणाओं की झड़ी लग गई, जो चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद ही बंद हुई।
अंबाला से दिल्ली तक फैले जीटी रोड निर्वाचन क्षेत्रों में विकास एक और केंद्र बिंदु था। यहां के छह जिलों और 25 सीटों पर काफी काम हुए। मतदाताओं ने काम के बदले ईवीएम से इसका जवाब दिया। भाजपा ने अपराध को कम करने के अपने प्रयासों पर भी जोर दिया।
4. बिखरा हुआ विपक्ष
लोकसभा चुनावों के विपरीत इस मुकाबले में कांग्रेस और आप अलग-अलग लड़े। भारतीय राष्ट्रीय लोकदल ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था। जेजेपी ने आज़ाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था। विपक्षी खेमा काफी बिखरा हुआ था। कई स्वतंत्र उम्मीदवार भी मैदान में उतरे। इससे भाजपा विरोधी वोट बंट गए। नतीजों में कई सीटों पर इसका असर देखने को मिला।
5. चुनावी रणनीति और मशीनरी
भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी। 150 से ज़्यादा रैलियां कीं। कई सीटों पर प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने संबोधित किया। वहीं, कांग्रेस ने लगभग 70 रैलियां कीं। भाजपा का चुनावी संदेश कांग्रेस के संदेश से बिल्कुल अलग था। राहुल गांधी ने किसानों पर ध्यान केंद्रित किया और उन्हें अंबानी और अडानी जैसे उद्योगपतियों के खिलाफ खड़ा किया। उनकी समाजवादी बयानबाजी शायद व्यापारिक समुदाय और ऊपर की ओर बढ़ते मतदाताओं को पसंद नहीं आई।
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