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झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि ट्रेन से गिरकर मौत होने के बाद यात्री के पास से टिकट नहीं मिलने से यह साबित नहीं होता है कि वह वैध यात्री नहीं था। इसके साथ ही कोर्ट ने मृत यात्री की पत्नी को आठ लाख रुपये मुआवजा और ब्याज भुगतान करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने रेलवे कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें यात्री को वैध नहीं मानते हुए मुआवजा देने से इनकार कर दिया था।
जस्टिस सुभाष चंद की अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि भले ही मृतक की जांच रिपोर्ट तैयार करते समय उसके पास से टिकट बरामद न हुआ हो। दावेदार की ओर से हलफनामा दाखिल करना ही यह अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त है कि मृतक वास्तविक यात्री था। रेलवे की ओर से न तो मौखिक और न ही कोई दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए गए हैं, जिससे पता चले कि मृतक वास्तविक यात्री नहीं था।
चलती ट्रेन से गिरने से हुई थी मौत
कविता देवी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि 7 जून 2017 को उसके पति शंभु सहनी पीरपैंती स्टेशन की यात्रा के लिए खरीदे गए वैध द्वितीय श्रेणी के टिकट के साथ साहिबगंज जंक्शन पर हावड़ा-गया एक्सप्रेस में सवार हुए थे। दरवाजे के पास यात्रियों की भीड़ जमा होने के कारण धक्का-मुक्की होने लगी, जिससे सहनी का संतुलन बिगड़ गया और वह अम्मापाली हॉल्ट और पीरपैंती स्टेशन के बीच चलती ट्रेन से गिर गया। उसे गंभीर चोटें आईं और मौके पर ही उसकी मौत हो गई।
टिकट अप्रिय घटना के दौरान खो गया था
घटना की सूचना मिलने पर पत्नी और परिवार के सदस्यों ने शंभू सहनी के शव की पहचान की। स्थानीय रेल पुलिस ने अप्राकृतिक मौत (यूडी) का मामला दर्ज किया। उसने अपने हलफनामे में कहा कि उसके मृत पति का वैध टिकट इस अप्रिय घटना के दौरान खो गया था। इसके बाद पत्नी ने रांची के रेलवे कोर्ट में मुआवजा के लिए आवेदन दिया, लेकिन रेलवे की ओर से कहा गया कि मृत यात्री के पास से टिकट नहीं मिला। इसके बाद रेलवे दावा न्यायाधिकरण रांची पीठ ने मुआवजे के लिए उसके दावे को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रतिवादी के लिखित बयान में दावा किया गया था कि मृतक की मौत रेलवे ट्रैक पार करते समय हुई थी, जबकि रेलवे द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेजी साक्ष्य से पता चलता है कि यह अप्रिय घटना तब हुई, जब मृतक साहिबगंज और पीरपैंती स्टेशन के बीच चलती ट्रेन से गिर गया। न्यायाधिकरण ने कहा कि मृतक शंभू साहनी वास्तविक यात्री नहीं था और यह घटना रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 123(सी)(2) के तहत अप्रिय घटना नहीं थी।
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